बिहार में हुआ ‘खेला’ तो टूट जाएगा तेजस्वी यादव का सपना, नीतीश का ‘गेम प्लान फिक्स’

महागठबंधन की सरकार चला रहे बिहार के सीएम नीतीश कुमार क्या तेजस्वी यादव को कभी सीएम नहीं बनने देंगे? ऐसी चर्चा अब बिहार के राजनीतिक गलियारे में होने लगी है। नीतीश कुमार के हालिया कुछ काम ऐसे रहे हैं, जिससे लगता है कि अगर उनके मन मुताबिक सब नहीं हुआ तो वे एक बार फिर पाला बदल सकते हैं। महिला आरक्षण बिल पर बिना शर्त सरकार को समर्थन देना या राष्ट्रपति के डिनर के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी से हंस-हंस कर बतियाना, इसी ओर इशारा करता है। और तो और, बिहार में विधानसभा चुनाव समय से पहले कराने की बात कह कर नीतीश ने किसी बड़े खेल का संकेत दे दिया है। आश्चर्य यह कि बिहार में समय पूर्व चुनाव को लेकर जो बात नीतीश कुमार ने तीन महीने पहले कही थी, अब वही बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी दोहराने लगे हैं। इससे लगता है कि बिहार की सियासत में लोकसभा चुनाव के पहले कोई बड़ा खेल हो सकता है।

नीतीश ने ‘इंडिया’ छोड़ा तो क्या होगा असर

अगर नीतीश कुमार ने फिर एनडीए में लौटने का फैसला किया तो इसका असर बिहार की राजनीति पर क्या होगा ? इसका सबसे बड़ा असर तेजस्वी यादव के राजनीतिक करियर पर होगा, जो सीएम बनने का सपना संजोए हुए हैं। नीतीश के अलग होते ही दो स्थितियां बनेंगी। पहला यह कि सरकार के मुखिया नीतीश कुमार बने रह सकते हैं। ऐसे में तेजस्वी और उनके भाई बेरोजगार हो जाएंगे। हालांकि यह काम शायद नीतीश कुमार न करें, या करें भी तो विपक्षी गठबंधन में अपने लिए कोई सम्मानजनक संभावनाओं के न होने पर ही वे ऐसा करें।

खिचड़ी’ पकने की स्थिति में एक संभावना ये भी बनती है कि नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दें। इससे लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त हो जाए। दूसरी बात की संभावना अधिक दिखती है, क्योंकि नीतीश समय पूर्व चुनाव की आशंका जता चुके हैं। अमित शाह ने भी उन्हीं की तर्ज पर इसे दोहराया भी है।

नीतीश को भरोसा- चुनाव हुए तो जनादेश पक्ष में आएगा

नीतीश कुमार को बिहार में किए गए अपने कामों से पक्का भरोसा है कि अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें इसका उचित फल मिलेगा। लोकसभा चुनाव की बात हो या समय पूर्व विधानसभा चुनाव की चर्चा, नीतीश अपने किए कामों का अक्सर उल्लेख करते हैं। अपने अधिकारियों को सरकारी योजनाओं के काम जल्द पूरा करने का निर्देश देते हैं। महिला आरक्षण बिल पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने अपनी सरकार की ओर महिलाओं के लिए किए जा रहे कार्यों की फेहरिस्त गिनाई। उन्होंने आधी आबादी पर पकड़ बनाए रखने के लिए पंचायत और निकाय चुनावों में उनके लिए 50 फीसद आरक्षण का कानून बनाया। सरकारी नौकरियों में महिलाओं का आरक्षण 35 प्रतिशत किया।

नीतीश ने शिक्षक नियुक्ति की चल रही प्रक्रिया में राज्य सरकार ने 50 फीसद महिला आरक्षण का प्रावधान किया है। वैसे भी माना जाता है कि नीतीश कुमार ने महिलाओं को अपने पाले में करने के लिए देश में सबसे पहले इस तरह के प्रवाधन किए हैं। केंद्र या दूसरी राज्य सरकारों ने बाद में इस पर अमल शुरू किया। यानी इस मामले में नीतीश काफी दूरदर्शी हैं।

नीतीश ने कहा था- 2025 का चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में

नीतीश के महागठबंधन के साथ जाने के बाद चर्चा यही थी कि आरजेडी नेता और बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव बिहार की सत्ता संभालेंगे और नीतीश कुमार केंद्रीय राजनीति में जाएंगे। वे विपक्ष की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी होंगे। इसमें पहली बात का संकेत खुद नीतीश कुमार ने ही दिया था, जब उन्होंने घोषणा की कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। पीएम पद की दावेदारी से नीतीश ने सार्वजनिक तौर पर बाद में इनकार भी कर दिया। इसी आधार पर वे विपक्षी एकता के प्रयास में जुटे। इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली, लेकिन बाद में कांग्रेस ने पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया। नीतीश किनारे रह गए। शायद यही वजह है कि अब उनके विपक्षी गठबंधन से नाराज रहने की चर्चा होने लगी है।

तेजस्वी को CM बनाने की हड़बड़ी में दिखते हैं RJD नेता

तीश कुमार के महागठबंधन के साथ आने के बाद आरजेडी के नेताओं का उत्साह इस कदर दिखता रहा है कि अब तेजस्वी की ताजपोशी चंद दिनों की ही बात है। जैसे ही नीतीश ने पीएम पद की दावेदारी से इनकार किया और 2025 में तेजस्वी के नेतृत्व में 2025 के विधानसभा चुनाव होने की बात कही, आरजेडी कैंप में हड़बड़ी दिखने लगी। नीतीश कुमार को नीचा दिखाने के लिए आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के विधायक बेटे सुधाकर सिंह ने हल्ला बोल अभियान छेड़ दिया। हालांकि नीतीश से उनकी खुन्नस की मूल वजह यह थी कि सीएम की नाराजगी पर उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उसके बाद नीतीश के खिलाफ व्यंजनात्मक शैली में आरजेडी के एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने भी कैंपेन चलाया। आरजेडी के एक विधायक तो तेजस्वी की ताजपोशी की तिथि भी बताने लगे।

नीतीश एनडीए में लौटे तो किन नेताओं को होगी परेशानी

नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ जाने और तेजस्वी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद जेडीयू के सीनियर लीडर रहे उपेंद्र कुशवाहा ने बगावती तेवर अपना लिए थे। आखिरकार उन्होंने विरोधस्वरूप जेडीयू छोड़ अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बना ली और अब एनडीए के साथ हैं। नीतीश पर तोहमत लगा कर पूर्व सीएम और हम (HAM) के संरक्षक जीतन राम मांझी ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया। उनके बेटे संतोष सुमन ने मंत्री पद से भी इस्तीफा भी दे दिया। अब वे भी एनडीए के साथ हैं। लोक जनशक्ति पार्टी- आर (LJP-R) के नेता चिराग पासवान की नीतीश से दुश्मनी तो जगजाहिर है। नीतीश भी कहते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की वजह से जेडीयू को तीन दर्जन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। अगर नीतीश की एनडीए में वापसी होती है तो ऐसे लोगों के सामने भी मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी।

नीतीश को अपनाने में भाजपा को नहीं होगी कोई मुश्किल

नीतीश के एनडीए छोड़ने के बाद भाजपा के नेता अक्सर यह बात कहते रहे कि उनकी लिए अब एनडीए में दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। अमित शाह और भाजपा के दूसरे शीर्ष नेता भी अपने बिहार दौरे में यही बात कहते रहे, लेकिन यह सभी जानते हैं कि राजनीति में ऐसी बातें कोई मायने नहीं रखतीं। बीजेपी ने सीटों के बंटवारे के लिए जो फार्मूला तैयार किया है, उसमें 30 सीटें अपने लिए रखी हैं। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने बराबर (17-17) सीटों पर चुनाव लड़ा था। जेडीयू ने इनमें 16 सीटें जीतीं तो भाजपा ने सभी सीटें जीत ली थीं। माना जा रहा है कि अगर नीतीश की एनडीए में पुनर्वापसी होती है तो बीजेपी अपने कोटे की सीटों में उन्हें बराबर का हिस्सा दे सकती है।

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