औरंगाबाद का कर्मा लहंग गांव वही गांव है जहां साल 2012 के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड का एक आरोपित अक्षय ठाकुर पला-बढ़ा। लोगों को यह तकलीफ साल रही कि यहां के वाशिंदे के अपराध ने पूरे गांव को शर्मसार किया है। वहां हर नजर झुकी दिख रही है और चेहरे पर खामोशी।
अक्षय सहित चारों की मौत की सजा पर अंतिम मुहर लगने के बाद सोमवार को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट जारी कर दिया। अगर उपरी अदालत से इस पर स्टे नहीं लगाया गया तो चारों को 22 जनवरी की सुबह फांसी पर लटका दिया जाएगा।
अक्षय ठाकुर का कर्मा लहंग गांव औरंगाबाद जिला के टंडवा थाना क्षेत्र में पड़ता है। वहां सरयू सिंह की गृहस्थी राजी-खुशी चल रही थी। तीन बेटों में अक्षय सिंह ठाकुर से उन्हें कुछ खास उम्मीद थी। भाइयों के साथ अक्षय रोजी-रोटी के जुगाड़ में दिल्ली गया और वहां ऐसी साथ-संगत कर बैठा कि निर्भया कांड का गुनहगार बन गया। अब जबकि डेथ वारंट जारी हो चुका है तो स्वजनों के लिए कोई चारा भी नहीं। हालांकि, वे आखिरी क्षण तक अक्षय की जिंदगी के लिए प्रार्थना और प्रयास करते रहेंगे।
दूसरी ओर कर्मा लहंग गांव का दूसरा कोई वाशिंदा इस मसले पर बात करना भी नहीं चाहता। गांव के लोग बहुत कुरेदने पर महज इतना कहते हैं कि कानून को अपना काम करना है। अदालत का फैसला शिरोधार्य। गांव में रहने तक अक्षय तो भला ही था, दिल्ली जाकर जाने क्या हो गया! एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि गांव के लोग घटना से दुखी हैं। सरयू सिंह के परिवार से सहानुभूति है, वे लोग दुख में सहभागी हो सकते हैं, लेकिन कुकर्म और पाप में शरीक नहीं हो सकते।
पिता सरयू सिंह जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर हैं। आस-औलाद के लिए मोह-माया से वे भी परे नहीं, लेकिन समाज-सरकार का वास्ता भी है। वैसे उन्होंने ही टंडवा थाने में 21 दिसंबर, 2012 को अक्षय का आत्मसमर्पण कराया था। वहां से दिल्ली पुलिस उसे अपने साथ ले गई थी। सामूहिक दुष्कर्म का दोष सिद्ध हो जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। स्वजनों ने क्षमा याचिका दायर की, जिसे अदालत खारिज कर चुकी है। अब 22 जनवरी के लिए डेथ वारंट जारी हो चुका है।
बहरहाल सरयू सिंह के घर चूल्हा-चौका की भी किसी को फिक्र नहीं। कातर आंखों से महिलाएं दुहाई दे रहीं कि ऐसी विपत्ति से किसी का वास्ता नहीं हो। सरयू सिंह की आंखों के आंसू भी एकधार हो चले हैं। कितना हूक है कलेजे में! फिर भी जुबान पाबंद हैं।
अक्षय के अपराध के समय उसके दोनों भाई भी दिल्ली में ही रहते थे। लेकिन उस अपराध के कारण दोनों भाइयों को दिल्ली से तड़ीपार होना पड़ा। जिस कंपनी में मुलाजिम थे, उसने काम से बेदखल कर दिया। अब वे खेती-किसानी के भरोसे गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे। फांकाकशी की नौबत तो कभी नहीं रही, लेकिन सरयू सिंह की साढ़े चार एकड़ जमीन से पूरे परिवार के लिए खुशहाल जिंदगी का भरोसा भी नहीं कर सकते।