‘बाहुबली’ से बांदा जेल तक-मुख्तार अंसारी की कहानी

एक वक्त था जब पूर्वांचल की गलियों से लेकर सत्ता के गलियारों तक उसकी धमक थी. एक वक्त था जब पूर्वांचल की गलियों से लेकर यूपी में सत्ता के गलियारों तक उसकी धमक थी. अब वो बांदा जेल की एक कोठरी में कैद है. लोगों का कहना है की वो सहमा हुआ . समर्थक उसकी सलामती की दुआएं मांग रहे हैं. परिवार सुरक्षा की गुहार लगा रहा है..बाहुबली से बांदा जेल का कैदी बन गए इस शख्स का नाम है मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) और इसकी कहानी में बॉलीवुड क्राइम-पॉलिटिकल थ्रिलर के सारे मसाले मौजूद है.

मुख्तार अंसारी सिर्फ नाम नहीं है, अपने आप में पूरी बॉलीवुड थ्रिलर स्टोरी है। लेकिन उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसके बाहुबल और दबदबे के बाद उसे इस तरह मजाक का पात्र बना दिया जाएगा. पंजाब की जेल से यूपी लाए जाने के वक्त की तस्वीरें देख किसी ने कहा कि डर के मारे व्हीलचेयर पर बैठ गया तो कोई बोला यूपी आने से खौफ खा रहा था.

चलिए पहले जानते हैं मुख्तार अंसारी को जिसके दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी आजादी से पहले कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे थे. जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्यों में से भी रहे हैं. वहीं नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान अंसारी महावीर चक्र से सम्मानित थे. अब सवाल यह है की ऐसे परिवार से आने वाला मुख्तार जुर्म की दुनिया में कैसे पहुंचा?

बात 80 के दशक की है जब मुख्तार ने इस काली दुनिया में एंट्री ली. आपने तमाम बॉलीवुड फिल्मों में एक डायलॉग सुना ही होगा कि अंडरवर्ल्ड की दुनिया में एंट्री तो आसान है लेकिन एग्जिट बहुत मुश्किल. शुरुआत एक गिरोह से की फिर खुद का गिरोह बना लिया और एक दूसरे गैंग के बृजेश सिंह के साथ कॉन्ट्रैक्ट के कारोबार में कंपटीशन और हिंसा शुरू हो गई.

गाजीपुर के आसपास से ये धंधा शुरू हुआ और इसका कनेक्शन धीरे-धीरे पूरे पूर्वांचल में हो गया. शराब का कारोबार, रेलवे की ठेकेदारी, खनन, ऐसे कई वैध-अवैध धंधों के जरिए पैसे और रसूख बनाने की जुगत में मुख्तार जुटा रहा.

अब पैसे तो बन रहे थे रसूख के लिए पॉलिटिकल चोला ओढ़ने की जरूरत थी. मुख्तार साल 1996 में बीएसपी के टिकट पर विधायक बना. इन सबके बीच बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी गैंग के बीच कई गैंगवार हुए और दोनों ही पक्षों को नुकसान उठाना पड़ा. इसके अलावा कृष्णानंद राय, त्रिभुवन सिंह जैसे बाहुबली मुख्तार के रास्ते में कंपटीशन बढ़ाते गए

मुख्तार मऊ से पांच बार विधायक रह चुका है, इसमें से दो बार इंडीपेंडेंट जीता और तीन मौके पर तो जेल में ही रहकर मुख्तार जीत चुका है. उसके भाई अफजाल अंसारी भी कई बार विधायक रह चुके हैं.

जब वो सियासत की सीढ़ियों पर तेजी से चढ़ रहा था, उस वक्त मुख्तार के रास्ते में बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की चुनौती आई. राय के कैंपेन को मुख्तार के कंपटीटर सपोर्ट कर रहे थे. 2002 में मोहम्मदाबाद से मुख्तार के भाई और कई बार के विधायक अफजाल अंसारी को राय ने हरा दिया तो ये दुश्मनी और बढ़ गई.

फिर नवंबर, 2005 में वो हत्याकांड हुआ जिसे पूर्वांचल अब तक नहीं भूल सका है. गाजीपुर की बात है, कृष्णानंद राय एक क्रिकेट प्रतियोगिता कार्यक्रम से वापस लौट रहे थे, रास्ते में ही घात लगाए बैठे हमलावरों ने उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. सैंकड़ों राउंड गोलियां चली और कृष्णानंद राय समेत 7 लोगों की मौत हो गई. इस हत्या का आरोप मुख्तार अंसारी पर है.

साल 2005 में हिंसा को भड़काने के मामले में मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार किया गया था तब से वो जेल में ही कैद है. अंसारी पर यूपी में और बाहर 52 मामले दर्ज हैं, जिनमें से 15 मामले तो कोर्ट में चल रहे हैं. अंसारी औऱ उसके गुर्गों की 150 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति राज्य सरकार ने जब्त की है. उसके कई सहयोगियों की धरपकड़ की गई. इन आरोपों पर मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी कहते हैं कि ज्यादातर मामलों में मुख्तार को आपराधिक साजिश के लिए गिरफ्तार किया गया और राजनीतिक कारणों से उसके खिलाफ मामले दर्ज किए गए.

अब सवाल यहाँ यह उठता है की यूपी की जेल में कैद मुख्तार पंजाब कैसे पहुंच गया. दरअसल, ये मामला था एक बिल्डर से वसूली का, जिसमें मुख्तार अंसारी पर आरोप था कि उसने रंगदारी मांगने के लिए पंजाब के बिल्डर को फोन कराया था. पंजाब पुलिस ने इस शिकायत पर मामला दर्ज कर अपनी एक टीम को वारंट के साथ मुख्तार को लाने यूपी भेजा. इस तरह से मुख्तार यूपी से पंजाब की जेल में आ गया.

अब पंजाब सरकार और वहां की जेल पर यूपी की तरफ से आरोप लगे कि उसे बचाने की कोशिश हो रही है. उसकी शिफ्टिंग को लेकर यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कई गंभीर अपराधों का सामना कर रहे अंसारी को पंजाब सरकार उत्तर प्रदेश को न सौंपकर उसकी रक्षा कर रही है.

26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अंसारी को पंजाब की जेल से यूपी की जेल में जल्द से जल्द शिफ्ट कर दिया जाए और अब यूपी की बांदा जेल का बैरक नंबर 15 उसका ठिकाना होगा. कुल मिलाकर ये कहानी एक ऐसे विधायक और अपराधी की है जो अब अर्श से फर्श पर आ गया है, लेकिन सियासत और अपराध का कॉकटेल कब क्या रंग ले ले, क्या पता?

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