इस बार छठ पर्व पर अर्घ्य देने वालों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि राजधानी में 60 से अधिक घाटों पर गंदगी का अंबार लगा हुआ है। सूर्य उपासना के कठिन पर्व छठ पूजा में अब सिर्फ तीन दिन बाकी हैं, 31 अक्टूबर को नहाय खाय और 1 नवंबर को खरना है, साथ ही 2 नवंबर को पहला अर्घ्य लोग डूबते हुए सूर्य को अर्पित करेंगे, वहीं 3 नवंबर को उगते हुए भगवान सूर्य और छठी माता की अराधना की जायेगी, अब ऐसे में इतने कम वक्त में इन घाटों की कितनी सफाई हो पाएगी इस बात का अंदाजा खुद लगाया जा सकता है।
दशहरा पर मां दुर्गा की प्रतिमाएं घाटों में विसर्जित की गयीं, अब दीपावली बाद लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां सभी घाटों में विसर्जित की जा रही हैं, प्रदूषण घटाने और सफाई के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते हुए आम जन ही घाटों पर ये सभी गंदगी फैलाने वाली चीजें डाल रहे हैं, और पूछने पर कहते हैं कि ये तो सिर्फ मिट्टी है इससे घाट गंदे थोड़े ही होते हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि इन सार्वजनिक घाटों पर गंदगी फैलने के लिए हम अपने आप को कितना दोषी मानते हैं।
दशहरा समाप्त होने के बाद से ही नगर निगम की तरफ से घाटों की साफ-सफाई के लिए निगम कर्मियों को लगाया गया है, मगर जितनी सफाई हो रही है, उससे अधिक कूड़ा-कचड़ा लोग नदी, तालाबों और घाटों में डाल रहे हैं। डोरंडा के बटम तालाब की बात करें तो लगभग आधा तालाब कमल के फूल से भरा हुआ है, एक तरफ धोबी कपड़े धो रहे हैं तो दूसरी तरफ लोग यहां आ कर खुलेआम मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां और पूजन सामग्रियां विसर्जित कर रहे हैं।
नगर निगम की तरफ से पांच-छह महिला सफाई कर्मियों को लगाया गया था जो मूर्तियों को निकालने और तालाब को साफ करने में व्यस्त थी, महिला सफाई कर्मियों का कहना था कि मना करने पर भी लोग यहां आकर सबकुछ डाल रहे हैं।
इस तालाब से रोजना दो से तीन ट्रैक्टर गंदगी निकाल कर झिरी भेजी जा रही है मगर इसके बावजूद गंदगी है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही। कमोबेश यही स्थिति जगन्नाथपुर के दो तालाबों की भी दिखी, जहां तालाब का पानी तक महक रहा था, तालाब गंदगी और जलकूंभी से भरा था बावजूद इसके किनारे थोड़े से पानी में लोग मूर्तियां और अन्य समान विर्सजित करने में लगे थे। कुछ ऐसे ही हालात छोटे डैम के भी दिखे, सीआरपीएफ कैंप से सटे डैम में पानी तो है, पर किनारे पर गंदगी काफी है।
Courtesy:- Renuka Trivedi (Bureau Chief)