‘शिव’ गए और ‘मोहन’ आये, मध्यप्रदेश से बीजेपी ने साध लिया यूपी-बिहार

छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरे वाले विष्णुदेव साय को सीएम बनाया गया है जबकि मध्य प्रदेश में एक यादव को सीएम बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 की पटकथा लिख दी है. बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा कड़ी चुनौती बिहार और यूपी से मिल सकती है.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद से ही इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि शिवराज सिंह चौहान को 2024 तक के लिए मुख्यमंत्री पद सौंपा जा सकता है. हालांकि कई लोगों के नाम सीएम पद की रेस में आगे चल रहे थे, लेकिन एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने सभी को चौंकाते हुए मोहन यादव को मध्य प्रदेश सीएम पद की कमान सौंप दी है.

छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरे वाले विष्णुदेव साय को सीएम बनाया गया है जबकि मध्य प्रदेश में एक यादव को सीएम बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 की पटकथा लिख दी है. बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा कड़ी चुनौती बिहार और यूपी से मिल सकती है. इसी को देखते हुए पार्टी ने एक यादव को सीएम बनाकर दोनों प्रदेशों में एक बेहतर जातिगत कॉर्ड खेला है.

कहते हैं दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है और ऐसे में चौधरी हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्य तिथि के अवसर पर एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आभासी संबोधन को यादवों के बीच बीजेपी की पहुंच में बारे में देखा जा सकता है. पूर्व सांसद और समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी हरमोहन सिंह यादव महासभा के संस्थापक भी थे. 1989 में जब मुलायम यूपी के मुख्यमंत्री बने तो हरमोहन सिंह का प्रभाव बढ़ गया. लोग हरमोहन सिंह को ‘मिनी सीएम’ और मुलायम खुद उन्हें ‘छोटे साहब’ कहकर संबोधित करते थे.

यूपी में यादवों की हिस्सेदारी 9 से 10 फीसदी है

यूपी की 24 करोड़ आबादी में यादवों की हिस्सेदारी करीब 9-10 फीसदी है. इसके साथ ही प्रदेश में 54 जिले हैं और इनमें से 12 जिलों में यादवों की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है, जिसमें आज़मगढ़, देवरिया, गोरखपुर, बलिया, ग़ाज़ीपुर, बनारस, जौनपुर, बदायूं, मैनपुरी, एटा, इटावा और फर्रुखाबाद और कुछ अन्य जिलों में यादवों का दबदबा है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा किए गए एक चुनावी अध्ययन में कहा गया है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में 83% यादवों ने एसपी को वोट दिया.

2022 में यादवों पर भी चला था मोदी का मैजिक

हालांकि इसके बावजूद 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने आठ जिलों-मैनपुरी, इटावा, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, औरिया, कन्नौज और फर्रुखाबाद में फैली यादव भूमि की 29 सीटों में से 18 सीटें जीतीं. जबकि भाजपा की सहयोगी अपना दल (सोनीलाल) को भी एक सीट मिली और समाजवादी पार्टी को सिर्फ 10 सीटों से संतोष करना पड़ा. वहीं 2012 में यहां पर सपा को 29 में से 25 सीटें और भाजपा को केवल एक सीट मिली थी, जबकि बसपा ने एक जीती और दो सीटें निर्दलीयों के खाते में गईं थीं. 2017 में मोदी लहर पर सवार होकर, भाजपा ने यादव गढ़ को ध्वस्त कर दिया और 29 में से 23 सीटें जीतीं, जबकि समाजवादी पार्टी केवल छह सीटें हासिल कर सकी.

बिहार में यदुवंशियों पर बीजेपी की नजर

बिहार में हाल ही में जारी जाति-आधारित सर्वेक्षण आंकड़ों के अनुसार, राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में यादवों की आबादी सबसे बड़ी है, जिनकी कुल आबादी 14.26% है, जिसमें सेंध लगाने की तैयारी भी बीजेपी ने कर दी है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार इकाई ने लगभग 21,000 से अधिक यदुवंशियों (यादव समुदाय के सदस्यों) को पार्टी में शामिल कराया है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने मुस्लिम-यादव मतदाता के दम पर बिहार में 15 वर्षों तक शासन किया. हालांकि 2013 में भाजपा ने नंद किशोर यादव को बीजेपी ने विपक्ष का नेता बनाया था.

बिहार में 40 लोकसभा सीटें पर नजर

बिहार में कुल 40 लोकसभा सीटें हैं, लेकिन मधेपुरा, सीवान और गोपालगंज की सीटों पर यादव मतदाता लगभग 50% से अधिक हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में यादव प्रभाव वाली सीटों पर मुकाबला मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच होगा. बिहार में मधेपुरा, सीवान, गोपालगंज, छपरा, हाजीपुर, पटना साहिब, गया, पूर्णिया और अररिया सीटों पर चुनाव परिणाम यादव मतदाताओं के रुख पर निर्भर करेगा. लोकसभा चुनाव में बीजेपी यादवों के बीच पैठ बनाने में कामयाब रही, लेकिन पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार में हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि 2014 में बीजेपी को वोट देने वाले राजद समर्थक 2015 में वापस राजद-जद (यू) में चले गए. दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी यादवों की दूसरी पसंद बनकर उभर रही है. वे भाजपा की तुलना में बसपा, जदयू को वोट देने के प्रति कम इच्छुक हैं.

यादव वोट एनडीए की ओर हो सकते हैं ट्रांसफर

अखिलेश यादव कई मौकों पर बीजेपी के आलोचना करते हुए कह चुके हैं कि यह सिर्फ स्वर्णों की पार्टी है, लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव के नाम का कार्ड खेला है, उससे सपा प्रमुख पर अब दबाव जरूर बनेगा. इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के दौरान यादव वोटों का एक हिस्सा एनडीए की ओर ट्रांसफर हो सकता है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि अगर मतदाताओं को बिहार में आरजेडी या यूपी में सपा के सत्ता में आने की कोई उम्मीद नहीं दिखती है तो यादव वोटों के भाजपा और एनडीए की ओर जाने की गति बढ़ सकती है. इसलिए एनडीए को यूपी और बिहार में लोकसभा चुनावों के दौरान अधिक यादव वोट आकर्षित करने का भरोसा है, जिसपर मोहन यादव का नाम सोने पर सुहागा होगा.

अखिलेश लोकसभा में 65 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे

इसके अलावा, विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सपा को यह कहते हुए सीट शेयरिंग से मना कर दिया था कि इंडिया गठबंधन लोकसभा के लिए हैं और अब गठबंधन की बैठक 19 दिसंबर को होगी. सूत्रों की मानें तो अखिलेश लोकसभा में 65 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं, लेकिन मोहन यादव के सीएम बनने के बाद वह अब कांग्रेस को कम सीट देकर यूपी में खुद को सबसे बड़ी पार्टी और यादवों का सबसे बड़ा नेता बताने में पीछे नहीं हटेंगे.

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