समझा जिसे ‘विभीषण’, बने नीतीश के ‘हनुमान’! सरकार बचाने में निभाई बड़ी भूमिका

नीतीश कुमार ललन सिंह को अपने क्राइसिस मैनेजर के तौर पर नजदीक रखते रहे हैं. कहा जाता है कि आरजेडी और जेडीयू को करीब लाने में भी ललन सिंह की भूमिका अहम थी. लालू प्रसाद के साथ बेहतरीन समीकरण बना लेने वाले ललन सिंह जब नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन में अहम भूमिका दिला पाने में नाकामयाब तो नीतीश कुमार का मोह इंडिया गठबंधन से भंग हो गया था.

नीतीश कुमार की सरकार ने विश्वासमत हासिल कर लिया. आरजेडी और उसके घटक दल खेला होने का दावा 28 जनवरी से ही कर रहे थे जबसे नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना ली था. लेकिन जेडीयू में आरजेडी के सबसे बड़े पक्षधर माने वाले उसी नेता ने नीतीश के पक्ष में पर्दे के पीछे जोरदार भूमिका अदाकर नीतीश सरकार को बहुमत हासिल कराने में जोरदार भूमिका अदा की है. इतना ही नहीं जिस खेला का दावा आरजेडी कर रही थी उसी आरजेडी के साथ खेला करने में नीतीश के इसी हनुमान की भूमिका बताई जा रही है. कौन हैं ये नेता जो नीतीश कुमार के लिए फिर से क्राइसिस मैनेजर साबित हुए हैं?

नीतीश कुमार के विभीषण समझे जाने वाले ये नेता जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह हैं. ललन सिंह के संसदीय क्षेत्र से दो आरजेडी विधायक पाला बदलकर नीतीश कुमार की सरकार के पक्ष में मतदान किया है, जिनका नाम नीलम देवी और प्रह्लाद यादव है. नीलम देवी बाहुबली नेता अनंत सिंह की पत्नी हैं. अनंत सिंह फिलहाल जेल में हैं. ये सर्व विदित है कि अनंत सिंह का जेल पिछले लोकसभा चुनाव के दरमियान ललन सिंह के खिलाफ अपनी पत्नी नीलम देवी को मुंगेर से प्रत्याशी बनाने की वजह से जाना पड़ा था. अनंत सिंह समेत उनकी पत्नी काफी समय तक ललन सिंह के खिलाफ षडयंत्र करने को लेकर आरोप लगाते रहे हैं. जाहिर है आरजेडी से विधायक चुने जाने के बावजूद सत्ता से संरक्षण प्राप्त करने और अनंत सिंह को बाहर निकाले जाने को लेकर नीलम देवी ने पाला बदला है ऐसा कहा जा रहा है. इस बाबत तेजस्वी यादव ने भी नीलम देवी का नाम लेकर इशारा करते हुए सदन में कहा कि नीलम देवी आप महिला हैं और आपकी मजबूरी मैं बखूबी समझता हूं.

ललन की वजह से प्रह्ललाद ने साबित की निष्ठा

यही हाल सूर्यगढ़ा से आरजेडी विधायक प्रह्लाद यादव का भी है. प्रह्लाद यादव भी बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं. कहा जाता है कि महागठबंधन की सरकार में प्रह्लाद यादव ललन सिंह की आवभगत में हमेशा से लगे रहते थे. इसलिए उनकी निष्ठा ललन सिंह के तरफ काफी बढ़ गई थी ये पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा था. असल में जब जेडीयू ने आरजेडी का साथ छोड़कर एक बार । फर से बीजेपी के साथ जाने का मन बनाया तो प्रह्लाद यादव ने सालों पुरानी अपनी पार्टी आरजेडी साथ छोड़कर ललन सिंह की पार्टी जेडीयू के पाले में जाकर अपनी निष्ठा साबित की. ज़ाहिर है मुंगेर संसदीय क्षेत्र जहां से ललन सिंह विधायक हैं वहां के दो बाहुबली पृष्ठभूमि के विधायकों ने सत्ता के साथ जाना स्वीकार किया. इसलिए इसमें बड़ी भूमिका पर्दे के पीछे ललन सिंह की बताई जा रही है.

ललन सिंह की क्या है भूमिका ?

जेडीयू के बरबीघा से विधायक सुदर्शन सिंह अशोक चौधरी से खासे नाराज थे. दोनों की अदावत काफी पुरानी रही है. दिवंगत नेता राजो सिंह के पौत्र सुदर्शन सिंह बरबीघा में अशोक चौधरी के दखलंदाजी से खासे नाराज रहे हैं. इसलिए ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए सुदर्शन सिंह ने इस बाबत कई बार अशोक चौधरी के खिलाफ शिकायत भी की है. ये सर्वविदित है कि एक बार सुदर्शन सिंह का पक्ष लेते हुए ललन सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए अशोक चौधरी को बरबीघा में ज्यादा दखलंदाजी से मना किया था इसके बाद अशोक चौधरी और ललन सिंह में नोकझोंक की घटना मीडिया में सुर्खियां बनी थी.

इसलिए विश्वास मत से पहले सुदर्शन सिंह जब विधानमंडल की मीटिंग से अनुपस्थित रहे थे तो जेडीयू के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार ने इस बाबत पहल की. कहा जाता है कि श्रवण कुमार को कुछ विधायकों ने कहा कि सुदर्शन सिंह को ललन सिंह मना सकते हैं. इसलिए ललन सिंह को लगाया जाय तो सुदर्शन सिंह को मनाकर नीतीश कुमार के पक्ष में वोट हासिल किया जा सकता है. दरअसल सुदर्शन सिंह को खतरा अपने टिकट खोने को लेकर है. कहा जाता है कि जेडीयू के दिग्गज नेता अशोक चौधरी बरबीघा से अपने दामाद को चुनाव लड़ाने के पक्षधर हैं. इसलिए सुदर्शन सिंह ने ऐन वक्त पर नाराजगी जताकर जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व को इस बात से अवगतकराया और जब ललन सिंह की तरफ से सुदर्शन सिंह की इस दुविधा को दूर किया गया तो सुदर्शन सिंह वोटिंग से कुछ घंटे पहले जेडीयू के खेमे में आकर अपने समर्थन की गारंटी दी.

चेतन आनंद का भी यही रहा हाल

यही हाल आरजेडी के युवा विधायक चेतन आनंद का भी है. आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकलवाने में ललन सिंह की भूमिका अहम रही थी. कई बार आनंद मोहन के साथ ललन सिंह को देखा गया है. दरअसल कानून में प्रावधान कर आनंद मोहन सिंह को छुड़ाने के पीछे राजपूत मतदाताओं के बीच मजबूत पैठ को लेकर कवायद की गई थी. ललन सिंह बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष सक्रिय थे क्योंकि नीतीश कुमार चुनाव से पहले आनंद मोहन सिंह का साथ चाहते थे. फिलहाल आनंद मोहन सिंह और अन्य सजायाफ्ता मुजरिम को जेल से छोड़े जाने को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. जहां दिवंगत अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन सिंह की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जाहिर है सरकार के तरफ से कई वकील इस बाबत कोर्ट में बहस करने के लिए खड़े होंगे जहां आनंद मोहन सिंह को सरकार के पैरवी की जरूरत होगी. कहा जा रहा है कि चेतन आनंद इसी के मद्देनजर आरजेडी छोड़कर नीतीश कुमार के पक्ष में वोट देने के लिए पाला बदले हैं और ऐसा करने में ललन सिंह की भूमिका अहम रही है.

वैसे भी कुछ महीने पहले भी आनंद मोहन से से लालू प्रसाद दूरी बनाते देखे गए थे. आनंद मोहन सिंह अपने परिजनों को लिए दो लोकसभा सीटें चाह रहे थे. लेकिन लालू प्रसाद आनंद मोहन सिंह से मिलने के लिए भी तैयार नहीं थे. इसलिए आनंद मोहन सिंह लगातार नीतीश कुमार के आसपास चक्कर लगाते देखे जा रहे थे. कहा जा रहा था कि आनंदमोहन सिंह जेडीयू में शामिल हो सकते हैं. ज़ाहिर है चेतन आनंद ने पाला बदलकर एक बार फिर से साबित कर दिया है कि अब वो आरजेडी का साथ छोड़कर जेडीयू के साथ जा सकते हैं.

क्राइसिस मैनेजर के रूप में ललन सिंह नीतीश का साथ हमेशा कैसे देते रहे हैं?

ललन सिंह की यही भूमिका उन्हें नीतीश कुमार के बेहद करीब लाने में मददगार रही है. लालू प्रसाद और उनके खिलाफ तमाम केसेज में सबूत इकट्ठा कर कोर्ट में पैरवी करने में भी ललन सिंह की भूमिका अहम बताई जाती रही है. इसलिए लालू प्रसाद के विरोध में राजनीति करने वाले नीतीश कुमार ललन सिंह को अपने क्राइसिस मैनेजर के तौर पर नजदीक रखते रहे हैं. कहा जाता है कि आरजेडी और जेडीयू को करीब लाने में भी ललन सिंह की भूमिका अहम थी. लालू प्रसाद के साथ बेहतरीन समीकरण बना लेने वाले ललन सिंह जब नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन में अहम भूमिका दिला पाने में नाकामयाब रहे. तो नीतीश कुमार का मोह इंडिया गठबंधन से भंग हो गया था.

जाहिर है आरजेडी से दूरी बनाने के लिए ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाए गए थे क्योंकि पिछले डेढ़ साल में ललन सिंह और लालू प्रसाद के बीच पनपी नजदीकियां जेडीयू के कई नेताओं के अलावा नीतीश कुमार को भी खटकने लगी थी. लेकिन ललन सिंह ने एक बार फिर नीतीश के एनडीए में शामिल होने के बाद जेडीयू के पक्ष में विधायकों को लाने में जो भूमिका अदा की है उससे फिर से वो नीतीश के हनुमान कहे जाने लगे हैं. जाहिर है ललन सिंह ने नीतीश के प्रति एक बार फिर से वफादारी साबित की है. इसलिए कुछ समय पहले तक विभीषण समझे जाने वाले ललन सिंह अब नीतीश कुमार के हनुमान फिर से कहे जा रहे हैं. सुदर्शन सिंह, प्रह्लाद यादव, नीलम देवी और चेतन आनंद को जेडीयू के पक्ष में लाने में उनकी भूमिका पर्दे के पीछे अहम बताई जा रही है.

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