Ramadan 2023: इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर है सियतमंद मुसलमान पर ज़कात देना जरूरी बताया गया है। रमजान के पाक महीने में रोजा नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ जकात और फितरा देने का भी बहुत महत्व है। जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है। रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले ससुरा और सका देना हर मुसलमान के लिए जरूरी माना जाता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीनियात विभाग के पूर्व चेयरमैन मुफ्ती जाहिद अली बताते हैं कि इस्लाम के मुताबिक जिस मुसलमान के पास इतना पैसा यह संपत्ति हो कि वह अपनी और अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने के बाद भी धन की बचत हो तो वह दान करने का पात्र बन जाता है। इस्लाम के अनुसार इस दान को दो भागों में विभाजित किया गया है, फितरा और जकात मुफ्ती।जाहिद अली बताते हैं कि अगर कोई व्यक्ति जकात देता है तो वह खामोशी अख्तियार कर के दे उसका ढोलना नहीं पीटे। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति जो जकात लेता है उसको भी एहसास नहीं होना चाहिए कि उसने ज़कात ली है जिसकी वजह से उस पर किसी प्रकार का एहसान किया गया है। वरना ऐसे में जकात का महत्व कम हो जाता है।
जकात और फितरा का इस्लाम में महत्व
इस्लाम में रमजान के पाक महीने में और ईद की नमाज अदा करने से पहले हैसियतमंद हर मुसलमान पर ज़कात देना जरूरी बताया गया है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है। उसका 2.5 फ़ीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे ज़कात कहते हैं। अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते है। तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है। जिसे जकात माना गया है ज़कात में 2.5 फिसदी देना तय होता है। जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं होती इंसान अपनी हैसियत के हिसाब से कितना भी फितरा दे सकता है। अल्लाह ताला ने ईद का त्यौहार हर गरीब और अमीर सभी के लिए बराबर बनाया है गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए इसलिए हर हैसियतमंद मुसलमान पर ज़कात और फितरा देना ज़रूरी कायम किया है।