छठ के लोकपर्व बनने की कथा, दीप से दीप जला कर रोशनी बांटने जैसा है विस्तार

छठ पर्व लोक आस्था में इस कदर गहरे तक है कि इसकी जड़ें खोज पाना आसान नहीं है. कब और किस रूप में इसकी शुरूआत हुई, इसकी अलग अलग कथा लोक में ही है. छठ के लोकगीतों में भी इसकी झलक मिल जाती है. इस सामुदायिक पर्व की छटा अद्भुत होती है. फलों से भरे टोकरे, श्रद्धा से सिर पर उठाए पुरुष और पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाएं छठ के लिए बनाए गए घाटों पर ऐसे ही गीत रुचि और अपनी अलग लय के साथ गाती हुई जाती हैं. वहां पूजन के साथ भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर अपनी समृद्धि और संतति वृद्धि की प्रार्थना करती है.

छठ यानी एक लोक पर्व. पंडित ज्ञानी इसे सूर्य षष्ठी का नाम और परिभाषा देते रहें, लेकिन बिहार और बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से में इस पर्व को छठी मइया के नाम से ही मनाया जाता है. इससे जुड़ी कहानियां छठ के गीतों में ही कही सुनी जाती हैं. हिंदीभाषी क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से के इस पर्व की कहानी सीताजी से जोड़ कर बताई जाती है. कहा जाता है कि श्रीराम के लंका विजय के बाद जब हर्ष में प्रजा ने दिवाली मना ली तो सीता माता ने छठी मैया (या मइया) की पूजा की और कृतज्ञता जताई थी.

शास्त्रीय तौर पर इसे सूर्य पूजा से जोड़ा जाता है. वैसे इस पूजा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा सूर्य को अर्घ्य दे का ही होता है. सामुदायिक रूप से कुंड, तालाब या नदी में नहा कर समूह में मंगलगीत गाते हुए महिलाएं सूर्य को फलों की भेंट चढ़ाते हुए दूध और गंगा-जल का अर्घ्य देती हैं. खास बात ये है कि यही वो पूजा है जिसमें डूबते सूर्य की आराधना की जाती है. बाकी सभी जगहों पर उगते हुए सूर्य को ही अर्घ्य देने की रीति है.

सूर्य षष्ठी और ‘छठी मइया’

वैसे ये सवाल बहुत जरूरी नहीं है फिर भी इसकी चर्चा कर लेने से दिमागी खुजली को शांति मिल सकती है कि सूर्य षष्ठी का ये पर्व छठी मइया का त्योहार कैसे हो गया. समझदारों का मानना है कि अपने यहां हर शक्ति और ऊर्जा को मइया या मैया मानने की रीति है. गंगा समेत सभी नदियां मइया ही हैं. वैसे भी जिसकी अर्चना करनी हो उसे मातृ स्वरूप मान लेना मन को संतोष देता है. हालांकि कहीं-कही इसका जिक्र किया गया है कि षष्ठी और सूर्य भाई बहन हैं. खैर जो भी हो, अपने यहां तिथियों की भी देवी स्वरूप में पूजा की परंपरा है.

प्रतिहार षष्ठी

एक मत के अनुसार स्कंदपुराण में प्रतिहार षष्ठी व्रत का उल्लेख आया है. इसका जिक्र कुछ ऐसे है कि मैथिल ग्रंथ वर्षकृत्यम् में इस कथा के अंत में लिखा है ‘इतिस्कंदपुराणोत्तक प्रतिहार षष्ठी कथा’. इसके आधार पर ये माना जाता है कि स्कंदपुराण के किसी स्वरूप में इसका जिक्र आया होगा.

अखंड श्रद्धा

बहरहाल, बिहार के ज्यादातर हिस्सों में ये पर्व चार दिनों का होता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी से ही हो जाती है. चतुर्थी को नहाय खाय के बाद पंचमी को खरना और फिर षष्ठी को अर्घ्य यही रीति है. इसमें पूरे चौबीस घंटे महिलाएं या कहीं कहीं श्रद्धालु पुरुष भी निरान्नजल व्रत करते हैं. चौबीस घंटे वे कुछ नहीं खाते-पीते.

मातृशक्ति की ओर से किए जा रहे इस व्रत के प्रति लोगों में इतनी श्रद्धा होती है कि वे किसी भी स्थिति में इस मौके पर अपने परिजनों के बीच रहना चाहते हैं. अपने घर-गांव चले जाते हैं. भले ही उसके लिए उन्हें कितनी भी परेशानी उठानी पड़े. हाल के दौर में हमने देखा है कि दिल्ली से बड़ी संख्या में बिहारवासी इन दिनों घर जाते हैं और इसके लिए बहुत सारी स्पेशल ट्रेनों के बाद भी कनफर्म टिकट छोड़िए, ट्रेन में भर कर जाने लायक जगह की भी परेशानी होती है.

वक-पंचक

आम तौर पर मांस और मछली का सेवन करने वाला मैथिल समाज भी इन पांच दिनों में इसका सेवन नहीं करता. . बल्कि शाकाहार करता है. वहां ये भी कहा जाता है कि इस दौरान बगुले भी मछली का आहार नहीं करते. लिहाजा शुद्धि के लिए जरूरी है कि मांस- वगैरह का सेवन न किया जाय. महानगरों में नौकरी करने वालों के मन में भी ये बात इस कदर गहरे तक है कि वे इसका पालन पूरी शिद्दत से करते हैं.

दीप से दीप जला और त्योहार फैलता गया

छठ उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में नहीं मनाई जाता, लेकिन उत्तर प्रदेश के उस हिस्से में इसे खूब मनाया जाता है जो ठीक बिहार से सटे हुए हैं. दरअसल, इन इलाकों में आपस में रोटी बेटी का संबंध है. बिहार की स्त्रियों के विवाह बहुतायत में इधर के गांवों में हुए हैं. वैसे भी उत्सवधर्मी भारत में लोक परंपराएं उसी तरह से प्रज्वलित होती है जैसे एक दीए से दूसरा जलाया जाता है और उसकी जोत फैलती ही जाती है. आज की स्थिति ये है कि दिल्ली में छठ की तैयारी हो रही है तो मुंबई में इसका उत्सव देखते ही बनता है. एनसीआर के शहरं तो तकरीबन हर रेजिडेंशियल सोसाइटी में छठ के घाट बनाए-संवारे जा रहे हैं. विदेशों में रह कर लौटने वाले बताते हैं कि अमरिका और इंग्लैड में भी बिहार मूल के लोग अपना समुदाय बना कर बड़े ही शानदार तरीके से ये आयोजन करते हैं.

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