रविवार की दोपहर अचानक महाराष्ट्र के राजभवन में सूबे के डिप्टी सीएम के पद की शपथ लेकर सबकों चौंकाने के बाद अजीत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि वो महाराष्ट्र के विकास के लिए एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हुए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि उन्हें अपने चाचा शरद पवार की पार्टी एनसीपी में अपना ही विकास होता नजर नहीं आ रहा था. और इसीलिए उन्होंने चाचा को दगा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया. इस वीडियो में हम आपको बताएंगे अजित पवार की बगावत की वो इनसाइड स्टोरी जिसने ना सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देश की राजनीति पर भी गहरा असर डाल दिया है.
दरअसल शरद पवार ने जब कांग्रेस से अलग होकर 1999 में अपनी पार्टी एनसीपी बनाई थी तो अजीत पवार उनके साथ थे. अपने चाचा की बनाई पार्टी में अजीत ने जमकर मेहनत की. साल 2009 में महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनी तो अजीत डिप्टी सीएम बनना चाहते थे लेकिन पवार ने उसकी जगह छगन भुजबल को डिप्टी सीएम बना दिया. वही छगन भुजबल जो अब पवार से बगावत करके अजित के साथ एकनाथ शिंदे सरकार में मंत्रीं बने हैं. बहरहाल साल भर बाद भुजबल के इस्तीफे के बाद अजित महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम जरूर बने लेकिन ये बात उनका समझ में आ गई थी कि वो अपने चाचा यानी सीनियर पवार की पहली पसंद नहीं हैं.
2019 में भी अजित पवार ने डिप्टी सीएम की ली थी शपथ
अजित पवार भले ही एनसीपी में बड़ा रुतबा रखते थे लेकिन शरद पवार ने बड़े मामलों में उनकी राय से अलग फैसले किए. नवंबर 2019 में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन शिवसेना ने उसे गच्चा दे दिया. उस वक्त अजित बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते थे लेकिन शरद पवार ने कांग्रेस और शिवसेना के साथ गठबंधन करके सरकार बनाना चुना . अपने चाचा के फैसले से नाराज होकर अजित ने अकेले ही देवेंद्र फडणवीस के साथ राजभवन जाकर डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली लेकिन शरद पवार के आगे उनकी एक ना चली और उन्हें इस्तीफा देकर वापस अपने चाचा के साथ आना पड़ा और फडणवीस सरकार गिर गई.
अजित एनसीपी की विरासत लेना चाहते थे
अजित चाहते थे कि उनके चाचा की राजनीतिक विरासत उन्हें मिले, लेकिन पवार उनकी जगह अपनी बेटी सुप्रिया सुले को कमान सौंपना चाहते थे. अजित पवार अपने इरादों को पूरा करने के लिए पार्टी के भीतर अपनी गोटियां सेट कर ही रहे, लेकिन पवार ने उनकी मंशा को भांपते हुए इस्तीफे की चाल चल दी. शरद पवार ने इसी साल दो मई को एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर अपनी चाल चल दी.पार्टी कार्यकर्ताओं और लीडर्स की इमोशनल अपील के बाद उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया. पवार के इस दांव से उनके भतीजे अजीत पवार बैकफुट पर आ गए.
25 मई को दिल्ली में पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब की जिम्मेदारी दी गई. यही नहीं सुप्रिया सुले को पार्टी की सेंट्रल इलेक्शन कमेटी का हेड भी बना दिया गया. शरद पवार के इस फैसले से ये साफ हो चुका था कि एनसीपी की कमान अब सुप्रिया सुले का हाथों में ही जाने वाली है. यही वो वक्त था जब अजित पवार का धीरज जवाब दे गया और उन्होंने अपने चाचा की पार्टी को तोड़कर एनडीए का दामन थाम लिया.
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और उनकी बेटी एवं पार्टी की नवनियुक्त राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय विपक्षी मोर्चा बनाने का प्रयास करने के लिए पिछले सप्ताह पटना गए हुए थे. उसी दौरान एनसीपी को तोड़ने को लेकर भाजपा के साथ अजित पवार की बातचीत परवान चढ़ी. सूत्रों ने न्यूज 18 को बताया कि अजित पिछले एक हफ्ते से बीजेपी शिंदे खेमे के संपर्क में थे. इसकी आखिरी कड़ी शरद पवार का अजित पवार को एनसीपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का वादा नहीं करना था.’
अजित पवार के पास कितने विधायकों का समर्थन?
सूत्रों का कहना है कि अजित पवार को भाजपा ने उनका हक भी दिया है. उन्होंने कहा, ‘अजित पवार के पास हमेशा एनसीपी विधायकों का बहुमत रहा है. उन्होंने आज भी यही दिखाया है.’ अजित ने हमेशा स्पष्ट किया है कि उनकी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि वह महाराष्ट्र में राकांपा का नेतृत्व करना चाहते हैं. उनका मानना था कि इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना में बीआरएस, आंध्र में वाईएसआरसीपी या बिहार में राजद के विपरीत राकांपा कभी भी महाराष्ट्र में क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में अपने दम पर सत्ता में नहीं आ पाई थी.
सुप्रिया सुले को पाॅवर मिलते ही अजित पवार के बदले तेवर
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि रविवार के विद्रोह के बीज 10 जून को बोए गए थे, जब शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को राकांपा के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नामित किया था. जबकि अजित पवार के लिए किसी भूमिका की घोषणा नहीं की गई थी, जो विपक्ष के नेता ‘एलओपी’ के रूप में कार्य करते हैं.
पार्टी में पद न मिलने से अजित का असंतोष भांप गई थी बीजेपी
अजित ने पिछले महीने राकांपा के 25वें स्थापना दिवस पर जवाब देते हुए कहा था कि वह विपक्ष के नेता का पद छोड़ना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने खुले तौर पर राकांपा के प्रदेश प्रमुख पद की वकालत की थी, लेकिन शरद पवार ने अपने भतीजे की इच्छा को पूरा नहीं किया. ऐसा लगता है कि भाजपा ने अजित के असंतोष और अपमान की भावना को भांपते हुए उन्हें एकनाथ शिंदे देवेंद्र फडणवीस सरकार में अपने वफादारों के लिए मंत्री पद के साथ साथ उपमुख्यमंत्री के पद की पेशकश की.