हरियाणा में कांग्रेस को मिली हार का साइडइफेक्ट सबसे पहले यूपी में देखने को मिला है. दरअसल यूपी में 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इनमें कांग्रेस कम से कम 5 सीटों पर दावा कर रही है, हालांकि अखिलेश यादव कांग्रेस को एक से ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं हैं.
हरियाणा की सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही कांग्रेस को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है. विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस में अंदरखाने तकरार शुरू हो गई है. इसके अलावा इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों ने भी आंख दिखाना शुरू कर दिया है. आम आदमी पार्टी और शिवसेना उद्धव ठाकरे ने सीधे तौर पर हरियाणा में कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने पर सवाल खड़े कर दिए हैं तो सपा ने यूपी उपचुनाव की दस में से छह सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है.
जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के संग मिलकर सरकार बनाने जा रही कांग्रेस के लिए हरियाणा की हार बड़ी मुसीबत बनती जा रही है. खास तौर से यूपी उपचुनाव और आने वाले महाराष्ट्र-दिल्ली विधानसभा चुनाव को देखते हुए इंडिया गठबंधन के सहयोगियों ने कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है. शुरुआत शिवसेना (यूबीटी) ने की है तो अब उसमें आम आदमी पार्टी भी कूद पड़ी है. सपा ने बुधवार के जिन छह सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है, उसमें दो सीटें वो हैं, जिन पर कांग्रेस दावा ठोंक रही थी.
अखिलेश यादव ने दे दिया कांग्रेस को संदेश
हरियाणा में कांग्रेस को मिली हार का साइडइफेक्ट सबसे पहले यूपी में देखने को मिला है. दरअसल यूपी में 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इनमें कांग्रेस कम से कम 5 सीटों पर दावा कर रही है, जबकि समाजवादी पार्टी लगातार संकेत दे रही थी कि वह कांग्रेस को अधिकतम एक सीट ही दे सकती है. अब हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने छह सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. इनमें मंझवा और फूलपुर सीट भी शामिल है, जिस पर कांग्रेस टिक मांग रही थी. कांग्रेस का तर्क है कि मझंवा सीट पर सपा कभी नहीं जीती है और फूलपुर उनकी परंपरागत सीट रही है. नेहरू पहला चुनाव फूलपुर से लड़े थे. इसके अलावा कांग्रेस मीरापुर, खैर, गाजियाबाद सीटें भी मांग रही है. बताया जाता है कि इनमें से समाजवादी पार्टी सिर्फ गाजियाबाद सीट ही कांग्रेस को देना चाहती है. मीरापुर और खैर छोड़ने के लिए सपा रजामंद नहीं है.
शिवसेना ने शुरू की प्रेशर पॉलिटिक्स
शिवसेना नेता संजय राउत ने कांग्रेस के अकेले हरियाणा के चुनाव मैदान में उतरने पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि अगर इंडिया गठबंधन मैदान में होता तो नतीजा कुछ और होता. माना जा रहा है कि संजय राउत का ये बयान शिवसेना की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है. दरअसल इसी साल महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हैं, जिसके लिए सी शेयरिंग फॉर्मूले पर सहमति नहीं बन सकी है. दरअसल अब तक लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर कांग्रेस यहां सबसे ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी. कांग्रेस का तर्क था कि लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर ही सीटों का बंटवारा होना चाहिए. अब हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस की बारगेनिंग पावर कमजोर पड़ गई है. अब तक महाराष्ट्र की 288 सीटों में से 110-115 सीटें मांग रही कांग्रेस को इनती सीटें देने के पक्ष में न तो शिवसेना थी और न ही एनसीपी और हरियाणा के चुनाव नतीजों के बाद तो ये और भी मुश्किल नजर आ रहा है.
आम आदमी पार्टी ने दिखाया आईना
इंडिया ग्रठबंधन का हिस्सा रही आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस पर ताने कसने से बाज नहीं आ रही है. दरअसल हरियाणा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने जा रहा था. आम आदमी पार्टी 10 सीटों की मांग कर रही थी, जबकि कांग्रेस 5 सीटों से ज्यादा टेने को तैयार नहीं थी. एन टाइम पर दोनों ही दलों ने अलग अलग लड़ने का फैसला किया और दोनों ही दलों को इसका खामियाजा उठाना पड़ा. माना जा रहा है कि आने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के बहाने आम आदमी पार्टी कांग्रेस से इसका बदला ले सकती है.
छत्रपों की मनमानी मानना मजबूरी
हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस के सामने छत्रपों की मनमानी मानना मजबूरी बन गया है. दरअसल आने वाले समय में झारखंड में चुनाव हैं, यहां कांग्रेस जेएमएम के साथ मैदान में उतर सकती है, महाराष्ट्र में शिवसेना उद्धव ठाकरे और एनसीपी शरद पवार तथा यूपी में सपा के साथ कांग्रेस का उतरना तय है, लेकिन अब वह यहां अपनी बात मनवाने की स्थिति में नहीं है. क्षेत्रीय दल भी जम्मू कश्मीर चुनाव परिणाम का उदाहरण देकर कांग्रेस पर दबाव बनाने से पीछे नहीं हटेंगे.