दिपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है इसे अन्नकूट पूजाके नाम से भी जाना जाता है, अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह, विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा। विधि पूर्वक इस त्योहार को मनाने से घर में सुख-शांति आती है। इस दिन शाम के समय खास पूजा का आयोजन किया जाता है। अनेक प्रकार के पकवान, मिठाई से भगवान को भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा का प्रारम्भ भगवान श्री कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से हुआ। इस दिन आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की अल्पना बनाकर उसकी पूजा की जाती है। उसके बाद गोवर्धन नाथ जी को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ-पूजन से भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं।
मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था तो गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह पर्व अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। इस पर्व को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा, गोकुल और वृंदावन में खास तौर पर मनाया जाता है। हालांकि उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में भी इसे मनाते हैं।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ- 28 अक्टूबर को सुबह 09:08 मिनट से
प्रतिपदा तिथि का समापन- 29 अक्टूबर को सुबह 06:13 मिनट पर
सायंकाल पूजा का समय