Mahatma Gandhi Lal Bahadur Shastri,

Gandhi Jayanti 2021: शादी से पहले मोहनदास को किस नाम से बुलाती थीं कस्तूरबा,यहां जानिए

हिंदुओं की मान्यता के अनुसार पति की उम्र अधिक और पत्नी की कम होती है। यह सनातन से होता आया है, हालांकि इसके अपवाद भी मिलते हैं, लेकिन बेहद कम। ऐसा मोहनदास और कस्तूरबा(Kasturba) के साथ भी हुआ था। 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर में जन्मीं कस्तूरबा की शादी वर्ष 1882 में महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi ) के साथ हुई थी। 13 साल की उम्र में मोहनदास करमचंद गांधी के साथ 7 फेरे लेने वालीं कस्तूरबा दरअसल, 6 महीने बड़ी थीं। ऐसा कहा जाता है कि शादी के बाद कस्तूरबा जितनी संजीदा हो गई, उससे पहले बचपन-किशोर उम्र में बहुत ज्यादा नटखट थी। घर आसपास होने के करण मोहन दास और कस्तूरबा साथ-साथ खेलते भी थे। अक्सर लुकाछिपी के अलावा चोर-पुलिस का भी खेल होता था, जिसमें हमेशा मोहनदास को चोर बनने के लिए कहती थीं। इसके साथ मोहनदास को कस्तूरबा बचपन में मोनिया कहकर बुलाती थी। मोहनदास जब चोर बनने के लिए कस्तूरबा पर नाराज होते तो वह मोहन दास की मां से शिकायत कर देती थीं। वहीं, कस्तूरबा और मोहनदास की मां एक-दूसरे से परिचित थीं, इसलिए मोहनदास को अपनी मां से पड़ती और हिदायत दी जाती कि वह कस्तूरा को तंग नहीं करे।


बा के नाम से मशहूर हुईं कस्तूरबा गांधी पर केंद्रित गिरिराज किशोर का उपन्यास ‘बा’ काफी चर्चित हुआ है, जिसे शोध पर आधारित कहा जाता है। इसमें मोहनदास और कस्तूरबा के बचपन का जिक्र विस्तार से किया गया है। उपन्यास के मुताबिक, कस्तूरबा के पिता गोकुलदास मकनजी एक व्यापारी थे और मोहनदास के पिता करमचंद गांधी दोस्त थे। दोनों परिवारों में इसी मेलमेल के चलते बाद में मोहनदास और कस्तूरबा का रिश्ता हुआ और पति-पत्नी बने।


गिरिराज के उपन्यास ‘बा’ के अनुसार, मोहनदास और कस्तूरबा साथ-साथ लुका-छिपी के दौरान मिलते थे… खूब खेलते थे। इस दौरान कस्तूरबा कितना झगड़ती थी… लड़ती भी थी। इसका जिक्र उपन्यास में है। कस्तूरबा अपनी सहेलियों के साथ आती थी।

‘बा’ उपन्यास के मुताबिक कुछ इस तरह होता था वार्तालाप

कस्तूरबाः मोनिया आज तू चोर बनेगा।
मोहनः मैं क्यों… अरे मैं ही क्यों… मैं नहीं बनूंगा चोर…
कस्तूरबाः क्यों…
मोहनः मैं कल भी तो चोर बना था।
कस्तूरबाः तो क्या हुआ। क्या कोई दूसरी बार चोर नहीं बनता। दूसरे दिन चोर नहीं बनता। ये तो खेल है।
मोहनः मैं भी तो यही कह रही हूं… आज तू चोर बन…।
कस्तूरबाः मैं तो कभी नहीं बनूंगी चोर।
मोहनः और मैं… मैं तो कई दिनों से चोर बनता आ रहा हूं… आज तो मैं चोर नहीं बनूंगा।
कस्तूरबाः मोनिया को तो चोर बनना ही पड़ेगा।
मोहनः नहीं… कभी नहीं…
कस्तूरबाः हां… हां… हां…
मोहनः नहीं… कभी नहीं
कस्तूरबाः मोनिया चोर तो तुझे बनना होगा। लड़की भी कभी चोर होती है क्या?
मोहनः यह क्या बात हुई। चोर नहीं तो चोरनी बनेगी… ये तो खेल है। सबको बारी-बारी से चोर बनना
पड़ता है। कल रधिया बनी थी चोर, परसो मैं बना था। आज कस्तूर तुम्हारी बारी है।
कस्तूरबाः मैं तो चोर नहीं बनूंगी। एक बार कर दिया बस। मुझ पर मोनिया तेरा सब नहीं चलेगा। मैं भी हार मानने वाली नहीं।
मोहनः तुझे तो मेरी बात माननी पड़ेगी।
कस्तूरबाः …क्यों माननी पड़ेगी तेरी बात। तु कोई लाट साहब है क्या?
मोहनः लाट साहब तो नहीं, लेकिन मैं तुझसे बड़ा हूं। इसलिए तुझे मेरी बात माननी पड़ेगी।
कस्तूरबाः नहीं मोनिया मैं बड़ी हूं।
मोहनः मैं बड़ा हूं। एक बार कह दिया ना… मैं बड़ा हूं…।
कस्तूरबाः झूठ… सरासर झूठ बोल रहा है तू… मैं तुझसे छह महीने बड़ी हूं। मेरी बा ने भी बताया है कि तुम मेरे पैदा होने के छह महीने बाद तेरा जन्म हुआ था।
मोहनः चल झूठी मैंने कह दिया ना… मैं हूं बड़ा। हुंह.. बड़ी आई बड़ी बनने। मेरे पास जन्मपत्री भी है। कहे तो ले आऊं।
कस्तूरबाः मैं बड़ी हूं… छह महीने… सब जानते हैं…
पुतलीबाईः मोनिया तू फिर कस्तूर को परेशान कर रहा है।
मोहनः मैं कहां इसे परेशान कर रहा हूं बा… यही कहती है कि मैं इससे छह महीने छोटा हूं।
कस्तूरबाः देखो ना मोटी बा। मोनिया ने मुझे झूठी कहा…झूठी। मोटी बा आप यहां खड़े और बच्चों से पूछ लीजिए। इसने मुझे झूठी कहा था। मैं झूठी नहीं हूं। क्या मैं झूठ बोलती हूं।
मोहनः बा यही झूठ बोलती है…। क्या मैं छह महीने इससे छोटा हूं। ऐसा नहीं है ना बा।
पुतलीबाईः मोनिया अगर तू यह कह दे कि कस्तूर छह महीने बड़ी और तू छह महीने छोटा तो क्या तेरी इज्जत घट जाएगी?
मोहनः पर बा… बा तू भी कस्तूर के साथ हो गई। ये हमेशा अपने को छह महीने बड़ी बताकर हम सबको बुद्धू बनाती है।
पुतलीबाईः मोनिया बेटा.. छह महीने भी कोई बड़ा समय थोड़े होता है। इसके लिए क्यों लड़ाई-झगड़ा करता है। मान ले ना कि यह तुझसे 6 महीने बड़ी है।

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