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नहीं रहे शांति भूषण, अपने कानूनी दांव पेच से इंदिरा गांधी को कुर्सी छोड़ने को किया था मजबूर

वरिष्ठ वकील शांति भूषण सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण के पिता थे. उन्होंने मोरारजी देसाई मंत्रालय में 1977 से 1979 तक भारत के कानून मंत्री के रूप में कार्य किया था. वो कानून के ज्ञाता थे. और आजीवन भ्रष्टाचार विरोधी छवि के लिए जाने जाते गये.शांति भूषण भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे बड़े चर्चित केस के लिए भी जाने जाते हैं.

शांति भूषण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में राजनारायण का केस लड़ा था और ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. सन् 1974 में उसी फैसले के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा था. जब-जब आपातकाल की पृष्ठभूमि की चर्चा होती है, इलाहाबाद हाईकोर्ट का वो ऐतिहासिक फैसला अक्सर नजीर के तौर पर पेश किया जाता है.

इंदिरा गांधी की सत्ता को दी थी चुनौती
उस वक्त केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में भी पहला ऐसा मौका माना गया था, जब हाईकोर्ट में किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ फैसला सुनाया गया था. इस फैसले से तब इंदिरा गांधी की किरकिरी हुई थी. तब शांति भूषण ने ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ कानूनी चुनौती पेश करने वाले राजनारायण का केस लड़ा था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के तब के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने वो ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. उस समय को याद करते हुए शांति भूषण ने एक इंटरव्यू में कहा था- इंदिरा जी के कोर्ट में प्रवेश करने से पहले जस्टिस सिन्हा ने कहा, अदालत में लोग तभी खड़े होते हैं जब जज आते हैं, इसलिए इंदिरा गाँधी के आने पर किसी को खड़ा नहीं होना चाहिए. लोगों को प्रवेश के लिए पास बांटे गए थे.

इंदिरा गांधी पर क्या था आरोप?
साल 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी को भारी बहुमत मिला था. इंदिरा गांधी रायबरेली से जीतीं थीं. वहीं से विरोधी दलों ने राजनारायण को खड़ा किया था. लेकिन इंदिरा गांधी 1 लाख 10 हजार वोटों से जीतीं. जिसके बाद राजनारायण ने धोखाधड़ी और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया. फिर मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा. राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर 8 गंभीर आरोप लगाए थे.

तब राजनारायण ने अपना केस लड़ने के लिए वरिष्ठ वकील शांति भूषण को चुना. जिन्होंने इतनी मजबूूती से केस लड़ा और तर्क तथा साक्ष्य प्रस्तुत किये कि वह फैसला देश के राजनीतिक इतिहास का नजीर बन गया. इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा.

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे
साल 1980 में शांति भूषण ने एनजीओ Centre for Public Interest Litigatio को शुरू किया. वह एक ऐसा एनजीओ था जिसके जरिये सुप्रीम कोर्ट में जनहित और देशहित से जुड़ी याचिकाएं पहुंचती थीं. इसके बाद साल 2018 में शांति भूषण ने मास्टर ऑफ रोस्टर में बदलाव को लेकर भी चर्चा में आए.

वैसे तो वो हमेशा सख्त राजनीतिक टीका टिप्पणियों को लेकर जाने जाते थे लेकिन एक समय उन्होंने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर भी चर्चा में आ गए. हालांकि बाद में उन्होेंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया था कि समर्थन देना उनकी भूल थी.

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