10 नवंबर को देश भर में मनाया जायेगा बारावफात का त्यौहार

शिया, सुन्नी मरकजी चांद कमेटियों ने किया एलान कि 10 नवंबर को मनाया जायेगा देश भर में बारावफात का त्योहार। मौलाना खालिद रशीद और मौलाना सैफ अब्बास ने इस्लामिक महीने के चांद की तजदीक का किया एलान। 30 अक्टूबर को होगी इस्लामिक माह रबी उल अव्वल की पहली तारीख।

ईद-ए-मिलाद जिसे मिलाद-उन-नबी भी कहते हैं इस बार 10 नवंबर को मनाया जाएगा। यह त्योहार पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल के तीसरे महीने की रबी-उल- अव्वल की 12वीं तारीख को यह उत्सव मनाया जाता है।

इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मदिन रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मनाया जाता है। मक्का शहर में 571 ईसवी को पैगम्बर साहब हजरत मुहम्मद सल्ल. का जन्म हुआ था। इसी की याद में मिलाद-उन-नबी पर्व मनाया जाता है। हजरत मुहम्मद सल्ल. ने ही इस्लाम धर्म की स्थापना की है और ये इस्लाम के आखिरी नबी हैं, आपके बाद अब कायामत तक कोई नबी नहीं आएंगे। इस दिन घरों, मस्जिदों में मिलाद की महफिल, कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी, नात ख्वानी होती है। मस्जिदों और दरगाहों को फूलों, झालरों, गुब्बारों आदि से सजाया जाता है। शहर की तमाम मस्जिदों पर परचम कुशाई होती है।


मक्का की पहाड़ी की गुफा, जिसे गार-ए-हिराह कहते हैं सल्ल. को वहीं पर अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार जिब्राइल अलै. के मार्फत पवित्र संदेश हजरत मोहम्मद साहब को अल्लाह ने एक अवतार के रूप में पृथ्वी पर भेजा था, क्योंकि उस समय अरब के लोगों के हालात बहुत खराब हो गए थे। लोगों में शराबखोरी, जुआखोरी, लूटमार, वेश्यावृत्ति और पिछड़ापन भयंकर रूप से फैला हुआ था। कई लोग नास्तिक थे। ऐसे माहौल में मोहम्मद साहब ने जन्म लेकर लोगों को ईश्वर का संदेश दिया।

वे बचपन से ही अल्लाह की इबादत में लीन रहते थे। वे कई-कई दिनों तक मक्का की एक पहाड़ी पर, जिसे अबलुन नूर कहते हैं, इबादत किया करते थे। चालीस वर्ष की अवस्था में उन्हें अल्लाह की ओर से संदेश प्राप्त हुआ। अल्लाह ने फरमाया- ‘ये सब संसार सूर्य, चांद, सितारे मैंने पैदा किए हैं। मुझे हमेशा याद करो। मैं केवल एक हूं। मेरा कोई मानी-सानी नहीं है। लोगों को समझाओ।’

हजरत मोहम्मद साहब ने ऐसा करने का अल्लाह को वचन दिया। तभी से उन्हें नुबुवत प्राप्त हुई। हजरत मोहम्मद साहब ने खुदा के हुक्म से जिस धर्म को चलाया, वह इस्लाम कहलाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘खुदा के हुक्म पर झुकना।’ इस्लाम का मूल मंत्र है- ‘ला ईलाहा ईल्लला मोहम्मदन-रसूलल्लाह’ जो कलमा कहलाता हैं। इसका अर्थ है- ‘अल्लाह सिर्फ एक है, दूसरा कोई नहीं। मोहम्मद साहब उसके सच्चे रसूल हैं।’

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