संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआइ) ने बुधवार को स्वीकार किया कि उसने इजरायल की सर्विलांस कंपनी एनएसओ समूह द्वारा बनाए गए एक हैकिंग टूल पेगासस (Pegasus) को खरीदकर उसका परीक्षण किया है। अमेरिकी कानून-प्रवर्तन एजेंसी ने हालांकि यह साफ किया कि उसने अबतक किसी भी मामले की जांच में इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल नहीं किया है। सर्विलांस कंपनी यह जानकारी सामने सामने आने पर विवादों में घिर गई है कि सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों ने पेगासस (Pegasus) का इस्तेमाल आइ-फोन की हैकिंग (hacking) के लिए किया है।
एपल इंक ने एनएसओ को भेजा नोटिस
एनएसओ ने कहा कि यह तकनीक आतंकियों, दुष्कर्मियों और हार्डकोर बदमाशों की धरपकड़ में मदद के उद्देश्य से बनाई गई है। उधर, आइ-फोन की निर्माता कंपनी एपल इंक ने एनएसओ समूह पर सेवा शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए उसे नोटिस भेजा है। अमेरिकी समाचार पत्र द न्यूयार्क टाइम्स व ब्रिटेन के द गार्जियन ने एफबीआइ (FBI) के प्रवक्ता के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘एजेंसी के पास स्पाइवेयर का लाइसेंस उत्पाद की जांच व मूल्यांकन तक सीमित है। इसका अबतक किसी भी मामले की जांच में उपयोग नहीं किया गया। स्पाइवेयर अब सक्रिय भी नहीं है।’
‘वैध सरकारी ग्राहकों को बेचा स्पाइवेयर’
ग्राहकों की सूची गोपनीय रखने वाली एनएसओ का कहना है कि उसने स्पाइवेयर को सिर्फ वैध सरकारी ग्राहकों को बेचा है। सिक्योरिटी रिसर्च एंड एकेडमिक्स ने दावा किया है कि एनएसओ के स्पाइवेयर का इस्तेमाल राजनीतिक हस्तियों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी के लिए किया गया है। एफबीआइ (FBI)प्रशासन की यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में आई है, जब पिछले ही महीने अमेरिकी राष्ट्रीय प्रतिरोधक एवं सुरक्षा केंद्र (एनसीएससी) ने ट्विटर पर एक बयान में कहा था कि स्पाइवेयर का इस्तेमाल देश के लोगों और प्रणाली की सुरक्षा के खतरों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने पिछले साल एनएसओ को काली सूची में डाल दिया था।
एक और इजरायली कंपनी ने आइ-फोन की सुरक्षा में लगाई सेंध : सूत्र
मामले के जानकार सूत्रों ने दावा किया है कि एनएसओ ही नहीं, बल्कि इजरायल की एक अन्य कंपनी के स्पाइवेयर ने भी वर्ष 2021 में आइ-फोन की सुरक्षा में सेंध लगाई थी। सूत्रों ने उस कंपनी का नाम क्वाड्रीम बताया है, जो काफी छोटी है और सरकारी ग्राहकों के लिए स्मार्ट फोन हैकिंग टूल का निर्माण करती है। उन्होंने कहा कि दोनों विरोधी कंपनियों ने पिछले साल आइ-फोन में सेंध लगाने की क्षमता हासिल कर ली थी। इसका मतलब हुआ कि एपल मोबाइल फोन धारक अगर छद्म लिंक को खोलते नहीं है, तब भी उनके फोन को हैक किया जा सकता है। इस हैकिंग (hacking) तकनीक को ‘जीरो-क्लिक’ नाम दिया गया है।