आयकर, GST, अरबपति टैक्स सरीखे भारी मसले, छूट की टॉफी या विकास की राह.. क्या चुनेगी सरकार?

नई सरकार गठबंधन से बनी है तो आयकर और जीएसटी जैसे मुद्दों पर कुछ दबाव महसूस कर सकती है. एनडीए सरकार से आमजन की कई उम्मीदें हैं. ऐसे में सरकार कैसे उम्मीदों को न तोड़ते हुए विकास का पहिया चलायमान रख सकेगी

नई सरकार बन गई है. आज मंत्रालयों का प्रभार भी मंत्रियों को सौंप दिया है. वित्त मंत्रालय फिर से निर्मला सीतारमण के हवाले कर दिया गया है. पिछले कुछ वर्षों में वित्त मंत्रालय ने सरकार को खूब कमाई करके दी है. अकेले जीएसटी (GST) से ही सरकार ने 20.14 लाख करोड़ रुपये की कलेक्शन की. वित्त वर्ष में साल-दर-साल यह 11.7 प्रतिशत की वृद्धि थी. वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार ने 12.01 लाख करोड़ रुपये का पर्सनल टैक्स जुटाया था, जिसमें एसटीटी भी शामिल था. सालाना आधार पर यह 24.26 फीसदी की ग्रोथ थी.

सभी प्रकार के टैक्स वित्त मंत्रालय के दायरे में ही आते हैं. नई सरकार से बाजार को टैक्स संबंधी क्या-क्या उम्मीदें हैं, और उन्हें पूरा करने में सरकार से सामने क्या-क्या अड़चनें हो सकती हैं? इसी मुद्दे पर हमने कुछ आंकड़े और सरकार की प्लानिंग को खंगालने की कोशिश की और भविष्य में झांकने की कोशिश की.

आयकर पर क्या हो सकता है?

आयकर में सरकार ने दो टैक्स रिजीम का विकल्प आयकरदाताओं को दिया है. वे अपनी पसंद से पहली या दूसरी रिजीम के हिसाब से रिटर्न फाइल कर सकते हैं. वैसे सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 के बाद आयकर स्लैब और दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया है. इसी साल अंतरिम बजट पेश किया गया, जिससे डायरेक्ट टैक्स देने वाले लोगों को काफी उम्मीदें थीं, मगर उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

चूंकि अब सरकार बनाने में बिहार और आंध्र प्रदेश की भी बड़ी भूमिका है, तो समझा जाता है कि दोनों राज्यों से इनकम टैक्स में बदलाव की मांग उठ सकती है. सरकार आयकर स्लैब बदल सकती है या टैक्स की दरों में परिवर्तन संभव है. एक आंकड़ा बताता है कि 2020 से 2024 तक डायरेक्ट टैक्स में कॉर्पोरेट टैक्स लगातार कम हुआ है, जबकि जबकि पर्सनल टैक्स की हिस्सेदारी में वृद्धि दर्ज की गई है. 2020 में कॉर्पोरेट टैक्स की हिस्सेदारी 53 फीसदी थी जो 2024 में घटकर 46.9 फीसदी रह गई है, इसके उलट पर्सनल टैक्स की हिस्सेदारी 46.5 से बढ़कर 53.3 फीसदी हो गई है. परंतु इस बार, हमें इस डेटा में कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है. यहां पर्सनल टैक्स की हिस्सेदारी कम होने की संभावना बनती है.

नए और पुराने टैक्स रिजीम में सरकार संतुलन ला सकती है. नए टैक्स रिजीम में आयकरदाताओं को 3 लाख रुपये तक टैक्स नहीं देना होता, जबकि पुराने में यह छूट 2.5 लाख रुपये तक है. इस बार सरकार जब बजट पेश करेगी तो संभावना है कि दोनों रिजीम में 3 लाख रुपये तक को टैक्स फ्री रखा जाए. इसके अलावा, इंश्योरेंस सेक्टर और टैक्स एक्सपर्ट इस बात को बार-बार कहते रहे हैं कि बीमा व्यक्ति की जरूरत है और बुरे वक्त में काम आता है, इसलिए नए रिजीम में 7 लाख रुपये के ऊपर इंश्योरेंस पर भी छूट मिलनी चाहिए.

जीएसटी में क्या परिवर्तन संभव?

काफी समय से कॉर्पोरेट्स द्वारा जीएसटी पर कई मांगें उठाई जाती रही हैं. इनमें जीएसटी की दरों को कम करना, रिटर्न प्रक्रिया को आसान बनाना, रिफंड में तेजी और नियमों के अनुपालन का बोझ घटाने की मांग शामिल हैं. ऐसे में, सरकार पर दबाव रहेगा कि टैक्स दरें कम की जाएं, खासतौर पर उन सेक्टरों में जिनमें टैक्स रेट काफी हाई हैं. ऑटो सेक्टर में छोटी कारों पर 28 फीसदी जीएसटी लगता है. साबुन, टूथपेस्ट, बालों के तेल पर 18 फीसदी जीएसटी दर लागू होती है. मोबाइल और कंप्यूटर पर 12 प्रतिशत के हिसाब से जीएसटी लगता है.

व्यापारियों द्वारा कई बार रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए मांग उठाई गई है. जनवरी में ही कनफ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सरकार से जीएसटी को एक सरल प्रणाली बनाने के लिए इस कानून की समीक्षा करने का आग्रह किया था. कैट ने सुझाव दिया था कि जिला स्तर पर अधिकारियों और व्यापारियों की GST को-आर्डिनेशन कमेटी बने, जो जिला स्तर पर ही टैक्स से जुड़ी समस्याओं का निपटान करे.

इस बार दिल्ली की चांदनी चौक सीट से संसद पहुंचे प्रवीन खंडेलवाल कैट के राष्ट्रीय महामंत्री भी हैं. उन्होंने ही सरकार से मांग की थी कि व्यापारियों के लिए कंपनियों की तरह ही इनकम टैक्स का एक विशेष स्लैब बनाया जाए. साथ ही पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को हटाने की मांग भी की थी. समझा जाता है कि खंडेलवाल चूंकि अब सरकार का हिस्सा हैं, तो वे व्यापारियों की बात आसानी से संसद तक पहुंचा पाएंगे.

अभी तक जीएसटी रिटर्न फाइल करने के 60 दिनों में रिफंड मिलता है. व्यापारियों की मांग है कि इसे कम किया जाए. हालांकि सरकार भी इस पर काम कर रही है और संभव है कि इस टर्म में दिनों की संख्या कम की जाए. इनकम टैक्स के रिफंड में सरकार पहले ही तेजी ला चुकी है. अब लगभग 1 सप्ताह में रिफंड मिल जाता है.

अरबपति टैक्स पर क्या करेगी सरकार?

नई सरकार के शपथग्रहण समारोह से पहले ही रविवार को एक द्वीट ने एक नई बहस छेड़ दी थी. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इस साल प्रधानमंत्री के पास यह दिखाने का मौका है कि वह आम लोगों के साथ खड़े हैं, या अरबपतियों के साथ?

दरअसल, ब्राजील में G20 के दौरान, ब्राजील, फ्रांस, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी के वित्त मंत्रियों द्वारा समर्थित अरबपतियों पर वैश्विक न्यूनतम कर लगाने संबंधी प्रस्ताव पर चर्चा होगी. कांग्रेस महासचिव ने पूछा कि क्या भारत के अगले वित्त मंत्री ‘अरबपति टैक्स’ के लिए वैश्विक प्रयास का समर्थन करेंगे.

कैसे बनेगा बैलेंस ?

इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए सरकार को पैसे की जरूरत है और पैसा टैक्स के जरिए ही जुटाया जा सकता है. यदि सरकार टैक्स स्लैब घटाती है तो रेवेन्यू में गिरावट आ सकती है, जिसके चलते विकास कार्यों का पहिया थम सकता है. लेकिन अब गठबंधन में सरकार को बैलेंस बनाकर चलने के लिए बाध्य किया जा सकता है. दूसरी तरफ, कांग्रेस और विपक्ष भी पहले के मुकाबले मजबूत है, जो सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करती रहेगी.

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