Durga Puja 2021

Durga Puja 2021: पश्चिम बंगाल में कब और कैसे हुई थी दुर्गा पूजा की शुरुआत, जानिए इसकी कहानी

Durga Puja 2021: हर साल शारदीय Navratri के समय पश्चिम बंगाल में धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। Durga Puja के समय 9 दिनों तक Maa Shakti की आराधना की जाती है। पश्चिम बंगाल में जगह-जगह भव्य पंडाल तैयार किए जाते हैं। बंगाल के विभिन्न शहरों में होने वाली Durga Puja की रौनक देखती ही बनती है। बड़े-बड़े पंडाल और आकर्षक मूर्तियों के साथ शानदार तरीके से बंगाली समाज देवी दुर्गा की पूजा करता है। बंगाल में बहुत पुराने समय से Durga Puja हो रही है। कहा जाता है कि बंगाल से ही देश के दूसरे हिस्सों में Durga Puja आयोजित करने का चलन शुरू हुआ था। आज भी पश्चिम बंगाल जैसी Durga Puja कहीं नहीं होती। पश्चिम बंगाल में Durga Puja आयोजित करने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां हैं। पहली बार Durga Puja कैसे हुई, क्यों आयोजित की गई, इसको लेकर कई दिलचस्प किस्से हैं।

प्लासी के युद्ध के बाद पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन
कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद हुई थी। प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत पर भगवान को धन्यवाद देने के लिए पहली बार Durga Puja का आयोजन किया गया था। आपको बता दें कि प्लासी के युद्ध में बंगाल के शासक नवाब सिराजुद्दौला की हार हुई थी। बंगाल में मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर गंगा किनारे प्लासी नाम की जगह है। यहीं पर 23 जून 1757 को नवाब की सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में युद्ध लड़ा और नवाब सिराजुद्दौला को शिकस्त दी। हालांकि युद्ध से पहले ही साजिश के जरिए रॉबर्ट क्लाइव ने नवाब के कुछ प्रमुख दरबारियों और शहर के अमीर सेठों को अपने साथ कर लिया था।

कहा जाता है कि युद्ध में जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता था लेकिन युद्ध के दौरान नवाब सिराजुद्दौला ने इलाके के सारे चर्च को नेस्तानाबूद कर दिया था। उस वक्त अंग्रेजों के हिमायती राजा नव कृष्णदेव सामने आए। उन्होंने रॉबर्ट क्लाइव के सामने भव्य Durga Puja आयोजित करने का प्रस्ताव रखा था. इस प्रस्ताव पर रॉबर्ट क्लाइव भी तैयार हो गए थे। उसी वर्ष पहली बार कोलकाता में Durga Puja का आयोजन किया गया था।


पूरे कोलकाता को शानदार तरीके से सजाया गया। कोलकाता के शोभा बाजार के पुरानी हवेली में Durga Puja का आयोजन हुआ था। इसमें कृष्णनगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों को बुलाया गया था। भव्य मूर्तियों का निर्माण हुआ था। बर्मा और श्रीलंका से नृत्यांगनाएं बुलवाई गई थीं। रॉबर्ट क्लाइव ने हाथी पर बैठकर समारोह का आनंद लिया था। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से चलकर लोग कोलकाता आए थे। इस आयोजन के प्रमाण के तौर पर अंग्रेजों की एक पेटिंग मिलती है, जिसमें कोलकाता में हुई पहली Durga Puja को दर्शाया गया है।


कहा जाता है कि राजा नव कृष्णदेव के महल में भी एक पेंटिंग लगी थी। इसमें कोलकाता के Durga Puja आयोजन को चित्रित किया गया था। इसी पेंटिंग की बुनियाद पर पहली Durga Puja की कहानी कही जाती है। 1757 के Durga Puja आयोजन को देखकर अमीर जमींदार भी अचंभित हो गए थे। बाद के वर्षों में जब बंगाल में जमींदारी प्रथा लागू हुई तो इलाके के अमीर जमींदार अपना रौब दिखाने के लिए हर साल भव्य Durga Puja का आयोजन करते थे। इस तरह की पूजा को देखने के लिए दूर-दूर के गांवों से लोग आते थे। धीरे-धीरे Durga Puja लोकप्रिय होकर सभी जगहों पर होने लगी।

दुर्गा पूजा को लेकर दूसरी कहानियां

पहली बार Durga Puja के आयोजन को लेकर कई दूसरी कहानियां भी कही जाती हैं। कहा जाता है कि पहली बार 9वीं सदी में बंगाल के एक युवक ने इसकी शुरुआत की थी। बंगाल के रघुनंदन भट्टाचार्य नाम के एक विद्वान के पहली बार Durga Puja आयोजित करने का जिक्र भी मिलता है। एक दूसरी कहानी के मुताबिक बंगाल में पहली बार Durga Puja का आयोजन कुल्लक भट्ट नाम के पंडित के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने करवाया था। यह समारोह पूरी तरह से पारिवारिक था।

कहा जाता है कि बंगाल में पाल और सेनवंशियों ने Durga Puja को काफी बढ़ावा दिया था। बताया जाता है कि 1757 के बाद 1790 में राजाओं, सामंतों और जमींदारों ने पहली बार बंगाल के नदिया जनपद के गुप्टी पाड़ा में सार्वजनिक दुर्गा पूजा का आयोजन किया था। इसके बाद Durga Puja सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होती गई और इसे भव्य तरीके से मनाने की परंपरा की शुरुआत की गई।

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