पड़ी हैं 20 से ज्यादा लाशें… दिल कंपा रहा हॉस्पिटल का शव गृह

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में दंगों की मार झेलनेवाले परिवार अब अस्पतालों के चक्कर लगा-लगाकर परेशान हो रहे हैं। अब पोस्टमॉर्टम के लिए यह लंबा इंतजार, उनके जख्म पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। मौत का आंकड़ा 42 पार जा चुका है लेकिन अभी केवल 18 पोस्टमॉर्टम हुए हैं। सभी डेड बॉडी के पोस्टमॉर्टम होने में कम से कम 5 से 6 दिन का समय लग सकता है। GTB अस्पताल की मॉर्चरी में सिर्फ 20 डेड बॉडी एक साथ रखने की जगह है और यहां पर एक साथ में 20 से ज्यादा डेड बॉडी हो गई थीं। परिजनों का आरोप है कि देरी से पोस्टमॉर्टम होने की वजह से बॉडी सड़ने लगी हैं। कई परिजनों ने यह आरोप लगाया कि देरी से डेड बॉडी पर असर हो रहा है।

पोस्टमॉर्टम मेडिको-लीगल केस होता है, इसमें पुलिस और डॉक्टर का रोल है। सबसे पहले डेड बॉडी से संबंधित डॉक्युमेंट्स का काम केस से जुड़े IO (इनवेस्टिगेटिंग ऑफिसर) को पूरा करना होता है, उसके बाद ही डॉक्टर पोस्टमॉर्टम करते हैं। खासकर जब इस तरह के गंभीर मामले होते हैं, उसमें कागजी कार्यवाही पर पूरा ध्यान रखा जाता है, ताकि कोई कमी नहीं रह जाए। GTB में पोस्टमॉर्टम में हो रही देरी की वजह पुलिस की ओर से रिपोर्ट नहीं देने को बताया जा रहा है।

कुछ दर्द की कहानियां ऐसी भी:-
मेरे पति देख नहीं सकते हैं। पापा के भरोसे ही हमारी जिंदगी चल रही थी। इस हिंसा ने मेरे पापा को छीन लिया। हमारी दुनिया उजाड़ दी। दर्द और बेबसी की यह दास्तां है गुलशन की, जो अपने पिता अनवर की डेडबॉडी लेने GTB अस्पताल की मॉर्चरी में इधर से उधर भटक रही थीं। अपने पिता की एकलौती बेटी गुलशन ने बताया कि दरिंदों ने उन्हें इतनी बुरी तरह से जलाया है कि उनके शरीर के कई हिस्से राख बन गए हैं। सिर्फ उनका पैर बचा हुआ है। उन्होंने बताया कि ‘मैंने अपने पिता को देखा तो सिहर गईं। आखिर क्या बिगाड़ा था मेरे पिता ने इन दरिंदों का, मेरी दुनिया जला दी, राख कर दी।’ उन्होंने कहा कि अब डॉक्टर कह हरे हैं कि बॉडी की पहचान के लिए डीएनए जांच की जाएगी।

गुलशन अपने पति नसरुद्दीन के साथ GTBअस्पताल में इधर-उधर भटक रही थीं। उन्होंने कहा कि पहले से ही उनकी जिदंगी दर्द से भरी हुई है। चार साल पहले उनके पति के ऊपर तेजाब गिर गया था, जिसमें वह इतनी बुरी तरह से झुलस गए कि उनका पूरा चेहरा जल गया। उनकी आंखों की रोशनी चली गई। अब उनकी आंखें ही नसरुद्दीन का सहारा हैं। उनका हाथ पकड़कर वह कदम भरते हैं। पिता की मौत ने उनकी बाकी बची जिंदगी भी उजाड़ दी है।

GTB अस्पताल की मॉर्चरी के बाहर एक बेबस पत्नी अपने पति की, मां अपने बेटे की और बहन अपने भाई की डेडबॉडी मिलने के इंतजार में मायूस बैठी थीं। कई परिवार तीन-तीन दिन से दिन रात मॉर्चरी के बाहर अपनों की बॉडी लेने के लिए का इंतजार कर रहे हैं। इसी में एक है मुशर्रफ का परिवार, उनकी मां कहती हैं कि 3 दिन से यहीं पर हैं। आज पुलिस बता रही है कि उसकी पर्ची गलत डाल दी थी, अब नए सिरे से कागज बना रहे हैं। मुशर्रफ की मां ने कहा कि यहां सिर्फ मौत नहीं हुई है, इंसानियत भी शर्मसार हो रही है। हम आंसू तक नहीं बहा पा रहे हैं। दर्द और सहम कर जी रहे हैं।

ऊपर से कानूनी तरीका बता कर तीन दिन से हमारे बच्चे का पोस्टमॉर्टम नहीं किया है। उन्होंने कहा कि वह भागीरथी विहार में रहती हैं। थाना गोकलपुरी लगता है, जबकि पर्ची में करावल नगर लिख दिया गया था। जबकि हमने डेडबॉडी पहचान ली थी। उसके बाद यह गलती कैसे हो गई, इसमें हमारी क्या गलती है? हिंसा में मारे गए मेहताब के भाई आरिफ अली ने बताया कि पहले उन्हें LNJP अस्पताल शव लेकर भेजा गया, फिर वहां से GTB भेजा गया। उस दिन से अभी तक यहां पर पोस्टमॉर्टम होने का इंतजार कर रहे हैं। कोई हमारी बात ही नहीं सुन रहा।

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