राजनीति में विचरधारा और सोच अब सिर्फ किताबी बातें भर रह गयी हैं, राजनितिक दल अब सिर्फ रंगीन कपड़ों की तरह बन कर रह गए हैं। जब जिसे जहां मन चाहा बदल लिया। इसका जीवंत उदाहरण अगर देखना हो तो एक बार झारखण्ड का रुख जरूर करें। यहां विधानसभा चुनाव के पहले दल बदलने की ऐसी आपाधापी मची है कि नेताजी यह भी याद नहीं रख पाते कि वे सुबह किस दल के जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे और शाम में उन्हें किसके खिलाफ मुर्दाबाद बोलना है। यहां सुबह का भूला नेता शाम में दूसरे दल के दफ्तर में माला पहन रहा होता है।
उदाहरण के तौर पर पलामू के पूर्व सांसद मनोज भुईयां को ही लीजिए। भुईयां 2004 में RJD के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए थे। बीते 14 अगस्त को वे पूरे लाव-लश्कर के साथ रांची स्थित झारखंड विकास मोर्चा के मुख्यालय पहुंचे और पार्टी की सदस्यता ली। लेकिन यह क्या, एक माह बीतते-बीतते मनोज भुईयां के सुर बदल गए। 14 सितंबर को उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
लोकसभा चुनाव में अन्य दलों का सूपड़ा ऐसा साफ हुआ कि दूसरे दलों के ज्यादातर नेता भाजपा में सुरक्षित राजनीतिक भविष्य देख रहे हैं। झारखंड में RJD का तो सूपड़ा ही साफ हो चुका है। RJD की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी भगवा रंग में रंग चुकी हैं। झारखंड विकास मोर्चा, कांग्रेस, झामुमो का भी ऐसा ही हाल है। झामुमो के एक विधायक जेपी पटेल तो लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी के ऐसे मुरीद हुए कि घूम-घूमकर खूब प्रचार किया। पार्टी ने उन्हें निलंबित कर रखा है। लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
आरंभ से झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले राजनीति करने वाले दुलाल भुईयां पांच साल पहले दल बदलने का मिजाज बनाया और कांग्रेस में शामिल हो गए। हालिया लोकसभा चुनाव में इन्होंने बहुजन समाज पार्टी के हाथी की सवारी की। पत्नी को पलामू से चुनाव मैदान में भी उतारा। अब सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की आस में फिर से झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गए।
भले ही दूसरे दल से ज्यादातर नेता भाजपा की ओर भाग रहे हैं। लेकिन इस आपाधापी में कई बार मुश्किलें भी खड़ी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर झारखंड सरकार के मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी को ही लीजिए। कभी लालू प्रसाद की पार्टी राजद में थे। भाजपा में आए काफी वक्त हो गए, लेकिन ऐसे वक्त में ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक का नाम भूल जाते हैं जब पूरी दुनिया में इनके नाम का डंका बज रहा है।