अस्पतालों में जगह नहीं बची है। रिश्तेदार अपने मरीजों को यथासंभव गाड़ियों में लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भाग रहे हैं। हालात ऐसे हैं की अस्पताल की गैलरी में भी इलाज को तैयार हैं। स्ट्रेचर पर भी इलाज मिल जाए तो भी खुशनसीबी समझ रहे हैं। कहीं बेड नहीं, तो कहीं आक्सीजन नहीं। अस्पताल भर्ती करने को तैयार हैं बशर्ते मरीज़ के रिश्तेदार आक्सीजन खुद लेकर आयें।
आक्सीजन का हाल यह है कि हफ्ता भर पहले जो सिलेंडर 12 हज़ार का था वो 18 पार कर गया है। आक्सीजन की जिस मशीन पर MRP 12 हज़ार छपा है वो खुले आम 40 हज़ार की बिक रही है। अस्पताल बेतरतीबी से भरे हैं, किसी को आक्सीजन चाहिए, किसी को इंजेक्शन चाहिए तो किसी को प्लाज्मा की दरकार है। रिश्तेदार मारे-मारे घूम रहे हैं। कुछ मददगार भी रात-दिन एक किये हुए हैं।
महामारी जिंदगियों को लील जाने के लिए मुंह बाए खड़ी है। जहां भी मौका मिल रहा है जान लिए ले रही है मगर ऐसे हालात में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो दोनों हाथों से पैसा कमा रहे हैं। 800 रुपये वाला इंजेक्शन 45 हज़ार रुपये में बिक गया। तमाम दवाएं बाज़ार से लापता हो गई हैं। मुंहमांगा पैसा देने पर भी दवाई नहीं मिल रही है।
कुछ साल पहले जब बोतलों में पानी बिकना शुरू हुआ था तब लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ था कि पानी बिक रहा है। हालात आज ऐसे मोड़ पर ले आये हैं कि हवा बिक रही है। हवा की कीमत इतनी ज्यादा है कि बहुत से लोग हवा की कीमत न दे पाने की वजह से मर रहे हैं तो बहुत से लोग पैसा खर्च करने के बावजूद हवा को हासिल नहीं कर पा रहे हैं।
आक्सीजन की कमी पहली बार नहीं हुई है जो व्यवस्था करने में दिक्कत हो रही है. याद करिये कुछ साल पहले गोरखपुर में आक्सीजन की कमी से तमाम बच्चे मर गए थे. आज आक्सीजन की कीमतें आसमान छू रही हैं क्योंकि आक्सीजन के जितने प्लांट होने चाहिए थे नहीं हैं. जितनी आक्सीजन की ज़रूरत है उतनी बन नहीं रही है.
अजीब मंज़र है, हर तरफ मौत है, हर तरफ तबाही है। ज़िन्दगी का चिराग तेज़ हवा में फड़फड़ा रहा हैं। महामारी खतरनाक है, जान ले लेती है। पैसा और पहुँच दोनों किसी काम के नहीं हैं। जान बचाना है तो दुनिया से छुप जाओ। समझ लो शहर में डाकू आ गए हैं, देखते ही मार डालेंगे। घरों में रहो, न कहीं जाओ न किसी को बुलाओ। यह वक्त गुज़र गया तो फिर मुस्कुरा सकती है ज़िन्दगी। यह बीमारी खतरनाक है, किसी को छोड़ती नहीं है। यह किसी रुतबे से डरती नहीं है। डरना तो इससे ही पड़ेगा। जिनके एक इशारे पर क़ानून बदल जाते हैं वह भी इसके सामने बेबस हैं। वह खुद इसका शिकार हैं। इससे लड़कर नहीं इससे छुपकर ही ज़िन्दगी को बचाया जा सकता है।