कोरोना से बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना हृदय विदारक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दी हैं और महामारी के दौरान अपने पिता, माता या दोनों को खो देने वाले बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना हृदय विदारक है। अदालत ने हालांकि ऐसे बच्चों को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित योजनाओं पर संतोष जताया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिकारियों ने उन बच्चों की पहचान करने में संतोषजनक प्रगति की है, जो कोरोना महामारी के दौरान या तो अनाथ हो गए हैं या अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, हमें खुशी है कि भारत सरकार और राज्य सरकारों /केंद्र शासित प्रदेशों ने जरूरतमंद बच्चों को सहायता देने के लिए योजनाओं की घोषणा की है। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि संबंधित अधिकारी ऐसे बच्चों को तत्काल बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। न्यायालय बच्चों के संरक्षण गृहों पर कोरोना के प्रभाव पर स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रहा था। अदालत ने आदेश में कहा कि एक लाख से अधिक बच्चों ने महामारी के दौरान या तो माता, पिता या फिर दोनों को खो दिया है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, कोरोना ने कई लोगों विशेष रूप से अपने माता-पिता को खोने वाले कम उम्र के बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर दी है। यह देखना हृदय-विदारक है कि ऐसे अनेक बच्चों का जीवन दांव पर लगा है। न्यायालय ने कहा कि बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रविधानों के अनुसार उन बच्चों की पहचान करने के लिए जांच तेज करनी होगी, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।

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