इस संकट की घड़ी में आज ना सिर्फ़ मानव जाति संकट में है, वरण जानवर भी अपनें अस्तित्व को संघर्ष कर रहे।जानवरों का भोजन चारा पानी आदि दुर्लभ होता जा रहा है खासकर सबसे बुरी स्थिति है आवारा कुत्तों की।मनुष्य तो जीने के लिये कुछ ना कुछ कर भी ले पर ये बेचारे निरीह जानवर कया करेंगे?
शुरुआती दौर में गली के आवारा कुत्ते खाना ना मिलनें की वजह से किसी भी आदमी को देख झुंड के झुंड भोंकने लगते थे। उनका व्यवहार काफ़ी हिंसुक हो गया था।पटना में ही सौ से अधिक लोग पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल एवं गार्डनर रोड अस्पताल में सौ से अधिक मरीज़ ऐंटी रैबीस का सुई लेनों आये।अक्सर रातों में उनके रोने और कराहनें की आवाज़ आती है।
दूसरों के दिये रोटी पर आश्रित ये जानवर लॉकडाउन के कारण भोजन ना मिलनें से इतनें कमजोर और बेबस हो गये हैं, कि वे ठीक से भोंक भी नहीं पाते बस कभी-कभी आते जाते मनुष्य या फिर किसी सवारी को अपनी कातर नज़रों से देखते रहते, शायद कोई रोटी का एक टुकड़ा दे जाय, पर जहाँ आदमी को रोटी मय्यसर नहीं, वहाँ इन बेचारे लावारिस जानवरों को कौन पूछे? हमारे धर्म ग्रंथों में कुत्ते को भैरो का रूप कहा गया है। महाराज युधिष्ठिर के साथ एक कुत्ता स्वर्ग के द्वारा तक गया था।पर यहाँ तो नर्क में भी ठेला ठेली है।हलांकि की कुछ दयावान लोगों ने एवं स्वयंसेवी संस्थाओं में इन आवारा कुत्तों को रोटी देना शुरु किया है पर यह नाकाफ़ी है।
कहीं ऐसा तो नहीं की कोरोना के बहाने प्रशासन इनसे मुक्ति पाने के चक्कर में है। मानवता की दुहाई देनें वालों को कुछ कुत्तवता धर्म का भी पालन करना चाहिये।