फिर चर्चा में ‘ट्रिपल C’, एक्शन लेगी मोदी सरकार?

सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी से एक बार फिर कॉमन सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता का मुद्दा चर्चा में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए गए एक फैसले में कहा कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में कई बार कह चुका है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गोवा भारतीय राज्य का एक चमचमाता उदाहरण है जिसमें समान नागरिक संहिता लागू है, जिसमें सभी धर्मों की परवाह किए बिना यह लागू है, वो भी कुछ सीमित अधिकारों को छोड़कर. पीठ ने एक संपत्ति विवाद मामले में ये टिप्पणियां की. पीठ ने कहा कि गोवा राज्य में लागू पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 है, जो उत्तराधिकार और विरासत के अधिकारों को भी संचालित करती है. जबकि भारत में कहीं भी गोवा के बाहर इस तरह का कानून लागू नहीं है.

पीठ ने कहा कि यह गौर करना दिलचस्प है कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से जुड़े भाग चार में संविधान के अनुच्छेद 44 में निर्माताओं ने उम्मीद की थी कि राज्य पूरे भारत में समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास करेगा. लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है. पीठ ने 31 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा, ‘हालांकि हिंदू अधिनियमों को वर्ष 1956 में संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन इस अदालत के प्रोत्साहन के बाद भी देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है’. शीर्ष अदालत ने इस सवाल पर भी गौर किया कि क्या पुर्तगाली नागरिक संहिता को विदेशी कानून कहा जा सकता है. पीठ ने कहा कि ये कानून तब तक लागू नहीं होते जब तक कि भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हो और पुर्तगाली नागरिक संहिता भारतीय संसद के एक कानून के कारण गोवा में लागू है. पीठ ने कहा, ‘इसलिए, पुर्तगाली कानून जो भले ही विदेशी मूल का हो, लेकिन वह भारतीय कानूनों का हिस्सा बना और सार यह है कि यह भारतीय कानून है. यह अब विदेशी कानून नहीं है. गोवा भारत का क्षेत्र है, गोवा के सभी लोग भारत के नागरिक हैं.

समान नागरिक संहिता पर जेडीयू ने राय देने से इंकार किया

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इसलिए भी अहम है क्योंकि तीन तलाक पर बिल पास करा चुकी बीजेपी सरकार के एजेंडे में कॉमन सिविल कोड भी है. मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में इस पर सभी की राय मांगने के लिए लॉ कमीशन भी बनाया गया था जिसने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी थी. लेकिन विपक्ष के भारी विरोध के चलते तीन तलाक की तरह इससे भी सरकार को पीछे हटना पड़ा. लेकिन दूसरा कार्यकाल आते ही मोदी सरकार ने तीन तलाक बिल संसद में पास करा लिया क्योंकि इस बार उसे राज्यसभा में कई दलों का समर्थन मिला हुआ है. इसलिए माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद एक बार फिर सरकार इस पर विचार कर सकती है.

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