GDP में 11 साल की सबसे कम 5% की वृद्धि हुई है और ऐसी आर्थिक मंदी के बीच, उम्मीद है कि सरकार द्वारा घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए उपायों की घोषणा की जाएगी। वित्त मंत्रालय वित्त वर्ष 2019-20 के लिए अपने प्रत्यक्ष कर संग्रह लक्ष्य से पीछे है। ऐसे में सरकार बड़े स्तर कर कटौती की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। ऐसी आर्थिक परिस्थितियों के बीच यूनियन बजट 2020 से बहुत उम्मीदें हैं।
व्यक्तिगत आयकर के मोर्चे पर सरकार व्यक्तिगत करदाताओं, विशेष रूप से मध्यम वर्ग के करदाताओं के लिए लाभ की घोषणा कर सकती है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वे आगामी बजट के लिए सुझावों पर विचार कर रहे हैं और व्यक्तिगत आयकर दरों में ढील देना उनमें से एक है। वेतनभोगियों और छोटे उद्यमियों का प्रतिनिधित्व करने वाले मध्यम वर्ग की आय 5 से 15 लाख रुपये तक की है। वर्तमान में, 5 लाख से ऊपर की कर योग्य आय पर 20% कर लिया जाता है और 10 लाख रुपये से अधिक कर योग्य आय पर 30% कर। इस वजह से 10 लाख रुपये तक की कमाई पर कर काफी अधिक है। 10 लाख रुपये तक की आय के लिए कर की दर में 10% तक की कटौती या 5 से 15 लाख रुपये की सीमा में करदाताओं को 15% की दर से कर लगाने पर करदाताओं के हाथों में अधिक पैसा बचेगा।
प्रत्यक्ष कर संहिता (Direct Tax Code) पर टास्कफोर्स की सिफारिशों के अनुरूप उच्च-आय वर्ग के संबंध में 20 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये तक की आय पर 30% की उच्च दर लगाई जा सकती है और 2 करोड़ रुपये से ऊपर की आय पर 35% कर। हालांकि, वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कर संग्रह लक्ष्य से कम होने के कारण यह एक चुनौती होगी। सरकार सभी स्लैब्स में कटौती देने की स्थिति में नहीं है।
दूसरी बातों के बीच, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC), रियल एस्टेट क्षेत्र, बुनियादी ढांचे और पावर डिस्कॉम जैसे क्षेत्र-विशेष प्रोत्साहनों की मांग कर रहे हैं। इस क्षेत्र में भी फंडिंग की कमी है। सरकार भी अपेक्षित कर संग्रह और विनिवेश से मिलने वाली राशि में कमी से राजकोषीय स्थिति में कमजोरी महसूस कर रही है। सरकार टॉप रेटेड PSU के माध्यम से कॉरपोरेट बॉन्ड जारी करने पर विचार कर सकती है। सरकार आयकर लाभ के लिए बॉन्ड में निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है।
सार्वजनिक बचत के नजरिए से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की सीमा, LIC, म्युचुअल फंड ELSS के साथ-साथ बच्चों की ट्यूशन फीस और हाउसिंग लोन पर मूल राशि के भुगतान के लिए 1.5 लाख रुपये की समग्र सीमा के साथ धारा 80सी के तहत लाया जा सकता है। धारा 80-C के तहत सीमा को अंतिम बार 2014 के बजट में बढ़ाया गया था। आवास और शिक्षा की लागत में वृद्धि के साथ सेक्शन बचत के लिए बहुत कम जगह छोड़ता है। इस वजह से सरकार धारा 80-C के तहत कटौती की सीमा बढ़ाने पर विचार कर सकती है।