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बिहार में मानसून हुआ ‘आशिकाना’, नीतीश-तेजस्वी के बाद, धड़कने लगा चाचा भतीजे का दिल !

बिहार में सावन का माह भले ही बीजेपी के लिए मंगलमय नहीं रहा हो. लेकिन सावन के अंतिम पड़ाव में नीतीश कुमार ने जिस तरह से भाजपा का साथ छोड़कर अपने पुराने मित्र लालू यादव के बेटे तेजस्वी के साथ सरकार बनाई. उस सदमे से बीजेपी अब तक नहीं उबर पाई है.

नई समीकरण बुन रही बीजेपी
जनता दल यूनाइटेड (JDU) से नाता टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब नीतीश-तेजस्वी समीकरण से दो-दो हाथ करने के लिए नया समीकरण बनाने की कोशिशों में जुट गई है. बीजेपी के सामने 2024 में लोकसभा चुनाव की बड़ी सियासी जंग लड़नी है. उसके बाद 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव भी होनें हैं. इस सियासी जंग में महागठबंधन को चुनौती देने के लिए भाजपा ने अगड़ों, अति पिछड़ों और दलितों का समीकरण बनाने की रणनीति तैयार की है.

चिराग पासवान व पशुपति गुट में सुलह कराने की कोशिश
बिहार के सियासी जंग में महागठबंधन (Nitish-Tejashwi) को चुनौती देने के लिए बीते दिनों दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में जेपी नड्डा, अमित शाह समेत पार्टी के वरीय नेताओं ने बिहार बीजेपी के नेताओं के साथ बैठक की थी. इस बैठक में नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर विचार-विर्मश किया गया. सूत्रों की मानें तो पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के दोनों गुटों चिराग पासवान (Chirag Paswan) और उनके चाचा केंद्रीय मंत्री मंत्री पशुपति कुमार पारस के बीच सुलह कराने को लेकर भी चर्चा हुई थी. बता दें कि बीजेपी के लिए यह आसान काम तो नहीं हैं. लेकिन भाजपा नेतृत्व को इस काम में कामयाबी मिली तो पार्टी को दलित समीकरण साधने में आसानी होगी.

भाजपा की बैठक में बनाई गई रणनीति
भाजपा मुख्यालय में बीते मंगलवार को हुई महत्वपूर्ण बैठक के दौरान भी इस मुद्दे पर लंबी चर्चा हुई थी. इस दौरान कई नेताओं का मानना था कि यदि दोनों गुटों में सुलह हो जाती है तो इससे भाजपा को बड़ा सियासी फायदा हो सकता है. माना जा रहा है कि बिहार के बदले हुए सियासी हालात में भाजपा चिराग पासवान को हम पार्टी के मुखिया जीतन जीतन राम मांझी के समकक्ष खड़ा करना चाहती है. बैठक के दौरान कई नेताओं का कहना था कि लोजपा के साथ रामविलास पासवान का नाम जुड़ा होने के कारण अभी भी दलितो सहानुभूति इस दल के साथ है, जो भाजपा के लिए चुनाव में फायदेमंद साबित हो सकती है.

2020 के विधानसभा चुनाव के बाद लोजपा में हुआ था बिखराव
बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लोजपा में बिखराव हो गया था. पशुपति पारस की अगुवाई में 5 सांसदों ने अलग गुट बना लिया था. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस गुट ने इस गुट को मान्यता भी दे दी थी. इस बिखराव के बाद लोजपा की सियासी ताकत काफी कम हो गई है. जानकारी के मुताबिक भाजपा अब पारस और चिराग गुट में सुलह कराने को लेकर बेताब है.

बिहार के बड़े दलित नेता माने जाते हैं चिराग
गौरतलब है कि 2019 के चुनाव में मिला था बड़ा फायदा लोजपा के संस्थापक स्व. रामविलास पासवान को बिहार का बड़ा दलित चेहरा माना जाता रहा है. रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान अब बिहार में दलित का बड़ा चेहरा माने जाते हैं. बता दें कि पूर्व के चुनावों में लोजपा साथ गठबंधन से बीजेपी को सियासी फायदा भी हुआ था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू के साथ ही लोजपा से भी गठबंधन किया था. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 17, जदयू को 16 और लोजपा को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. एनडीए गठबंधन ने राज्य की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी.

बदले हालात में मिलने लगे बिछड़े दिल
नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल होने के बाद बिहार की सियासी तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है. पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ा हालांकि, इस चुनाव में लोजपा को सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल हुई थी. वैसे, लोजपा के अलग चुनाव लड़ने के फैसले से एनडीए गठबंधन को कई सीटों पर नुकसान भी उठाना पड़ा था.

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