क्या BJP कांग्रेस को केवल गांधी परिवार तक सीमित कर देगी? अब राव को भारत रत्न से उठे सवाल

अब जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने परिवार से तिरस्कृत कांग्रेस नेताओं को सम्मानित करना शुरू किया है, इससे कांग्रेस के अंदर भी खलबली मची हुई है. परिवार में सोनिया गांधी के बाद कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो भाजपा विरोधी दलों को एक करने की क्षमता रखता हो.

परिवारवाद के फेर में फंसी कांग्रेस स्वयं तो नेहरू-इंदिरा परिवार से बाहर नहीं निकल पाई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को इस परिवार तक जरूर सीमित कर दिया है. जिस तरह से वे परिवार के बाहर के कांग्रेसियों को सम्मानित कर रहे हैं तथा गाहे-बगाहे उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं, उससे यह साफ है कि प्रधानमंत्री की नजर में कांग्रेस का मतलब क्या है.

अभी इस लोकसभा के आखिरी सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को खूब निशाने पर लिया. लोकसभा और राज्य सभा में उन्होंने कांग्रेस के धुरै बिखेर दिए. मगर उसी अंदाज में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ भी की. और राज्य सभा से उनकी विदाई के अवसर पर भावुक भी हुए. इसी तरह की भावुकता उन्होंने गुलाम नबी आजाद की विदाई पर भी दिखाई थी.

शुक्रवार (9 फरवरी) को पूर्व प्रधानमंत्री तथा कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देकर उन्होंने यही संकेत दिया है. पांच साल पहले 2019 में उन्होंने एक और वरिष्ठ कांग्रेस नेता तथा राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी को भी भारत रत्न से सम्मानित किया था. पीवी नरसिम्हा राव के साथ उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भी भारत रत्न प्रदान किया है. इस तरह 2024 के गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री ने अब तक पांच लोगों को भारत रत्न दिया.

23 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर के नाम की घोषणा हुई, तीन फरवरी को लाल कृष्ण आडवाणी को यह सम्मान मिला और 9 फरवरी को पीवी नरसिम्हा राव तथा चौधरी चरण सिंह को. इनके साथ ही भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न मिला है. पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने बहुत दुर्गति की थी. उनके प्रति ऐसी उदासीनता बरती थी कि जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके शव को कांग्रेस मुख्यालय, 24 अकबर रोड में नहीं लाने दिया था.

पीवी नरसिम्हा राव को गांधी परिवार से मिली उपेक्षा

सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस के इस पूर्व अध्यक्ष के प्रति ऐसी घृणा किसी भी अन्य राजनीतिक पार्टी में देखने को नहीं मिली होगी. हालांकि कहा जा सकता है कि भाजपा ने अपनी पूर्ववर्ती पार्टी जनसंघ के अध्यक्ष रहे बलराज मधोक के साथ भी ऐसी क्रूरता बरती थी. किंतु मधोक बाद में पार्टी विरोधी कार्यों में लग गए थे. मगर पीवी नरसिम्हा राव जीवन भर कांग्रेसी रहे और कभी भी सोनिया गांधी को कटु बचन नहीं बोले.

वे जब तक प्रधानमंत्री रहे तो नियमित रूप से सोनिया गांधी के दरबार में हाजिरी बजाने जाते रहे किंतु उन्होंने सोनिया गांधी को सरकार के ऊपर नहीं माना. इसीलिए सोनिया गांधी उनसे छिटकी रहीं. यद्यपि सोनिया गांधी ने ही 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद जब लोकसभा में कांग्रेस को 232 सीटें मिली थीं तब पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया था. पीवी नरसिम्हा राव ने अपने कौशल से पूरे पांच वर्ष तक अल्पमत वाली कांग्रेस सरकार चलाई भी.

मगर कांग्रेस के इस गांधी परिवार ने पीवी नरसिम्हा राव की जिस तरह उपेक्षा की, ठीक उसी तरह की उपेक्षा आज उसे राजनीतिक परिदृश्य में झेलनी पड़ रही है. पीवी नरसिम्हा राव एक चमत्कारिक व्यक्तित्त्व थे. उन्होंने 1991 में पस्त पड़ी देश की अर्थव्यवस्था को उबारा और उदारीकरण एवं निजीकरण का अभियान चलाकर देश को नई गति तथा ऊर्जा प्रदान की थी. रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को उन्होंने वित्त मंत्री बनाया था

उन्होंने राजीव गांधी और उनके पहले की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आर्थिक नीतियों में बदलाव किया, जिसका परिणाम हुआ कि कोटा, परमिट एवं लाइसेन्स माफिया की समाप्ति हुई. यह बहुत बड़ी क्रांति थी. लेकिन इस वजह से सोनिया गांधी उन्हें नापसंद करने लगीं. वे भूल गईं कि पीवी नरसिम्हा राव सरकार आखिरी कांग्रेस सरकार थी, जो बिना किसी गठबंधन के पूरे पांच वर्ष चली.

नेहरू-इंदिरा परिवार के अलावा किसी को नहीं समझा सिरमौर

कांग्रेस में कभी भी नेहरू-इंदिरा परिवार के अलावा और किसी को भी सिरमौर नहीं समझा गया. आजादी के बाद से लगातार हर उस नेता को उसका हक नहीं दिया गया, जो इस परिवार से ऊपर का कद रखता था. सरदार पटेल से लेकर कामराज, निजलिंगप्पा, नीलम संजीव रेड्डी, प्रणब मुखर्जी, वीपी सिंह, अर्जुन सिंह और नरसिम्हा राव तक. कांग्रेस का मतलब बस यही एक परिवार रहा.

इसीलिए प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा था कि राजनाथ सिंह या अमित शाह के बेटों का राजनीति में आना कोई परिवारवाद नहीं है. परिवारवाद है, एक परिवार का किसी राजनीतिक पार्टी की धुरी बन जाना. आज भी कहने को कांग्रेस में अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे हैं, पर हर कार्यकर्त्ता और पार्टी का अदना या बड़ा नेता भी जानता है कि पार्टी में निर्णायक क्षमता सिर्फ राहुल गांधी या सोनिया गांधी अथवा प्रियंका गांधी के पास है. इसीलिए वह इस परिवार की गणेश परिक्रमा करता है.

तिरस्कृत कांग्रेस नेताओं को सम्मानित कर रहे हैं पीएम मोदी

अब जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने परिवार से तिरस्कृत कांग्रेस नेताओं को सम्मानित करना शुरू किया है, इससे कांग्रेस के अंदर भी खलबली मची हुई है. परिवार में सोनिया गांधी के बाद कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो भाजपा विरोधी दलों को एक करने की क्षमता रखता हो. सोनिया गांधी अब बुजुर्ग हो चली हैं और कांग्रेस के अंदर की पुरानी पीढ़ी भी बाहर है. राहुल गांधी के अंदर खुद में न तो वैसा राजनैतिक चातुर्य है न प्रबंधन कौशल.

कांग्रेस के अंदर उनके आसपास जुटे लोग उन्हें जैसा समझा देते हैं, वैसा ही वे करते हैं. वे कभी अचानक से सॉफ्ट हिंदुत्त्व अपना लेते हैं तो कभी एकदम से एंटी हिंदू बयान देने लगते हैं. जिसके कारण दोनों पाले के लोग उन्हें शक की निगाह से देखते हैं. लेकिन परिवार का आतंक अभी भी इतना अधिक है, कि कोई भी कुछ बोल नहीं पाता.

प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की घेरेबंदी

दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की ऐसी घेरेबंदी कर दी है, जिसको काट पाना राहुल या सोनिया अथवा प्रियंका के वश का नहीं. चूंकि परिवार को पार्टी के किसी नेता पर भरोसा नहीं है इसलिए वह किसी को भी पूरी कमान देने से घबराता है. ऐसे में भाजपा को अब चुनाव जीतने के लिए कोई अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता. यूं भी जब सामने वाला हार स्वीकार कर ले तो फिर उसे किसी तरह उठाया नहीं जा सकता.

सच तो यह है कि कांग्रेस के बड़े नेता भी अंदरखाने मान कर बैठे हैं कि 2024 में तो भाजपा ही सत्ता में आएगी. ऐसी स्थिति में कौन सामने उतरे. मल्लिकार्जुन 82 वर्ष पार कर चुके हैं और कांग्रेस ने हिंदी भाषी प्रदेशों में कोई क्षत्रप नहीं तैयार किए. जब कोई योद्धा ही नहीं है तो लड़ेगा कौन? सबको पता है, कि राहुल गांधी में लड़ने की क्षमता नहीं और खरगे सिर्फ चेहरा हैं.

कांग्रेस को राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी तक सीमित कर देने का प्रधानमंत्री का फार्मूला हिट हो गया है. परिवार तक सीमित पार्टी अपना विस्तार नहीं कर सकती. इस परिवार ने अपने ही कद्दावर नेताओं की उपेक्षा की. उन्हें अपना प्रभाव विस्तृत करने का अवसर नहीं दिया.

हालांकि इंदिरा गांधी अपने कार्यकर्त्ताओं से सीध संपर्क रखती थीं इसलिए पार्टी तब तक मजबूत रही. राजीव गांधी के समय से कांग्रेस का यह पतन शुरू हुआ. किंतु अब न तो कांग्रेस में नेता बचे हैं न कार्यकर्त्ता. नतीजा सामने है. कांग्रेस को अगर एक राजनीतिक दल के तौर पर अपना वजूद बचाये रखना है तो उसे इस परिवार के फार्मूले से बाहर आना चाहिए. भारत में लोकतंत्र है, इसलिए अब किसी परिवार की सत्ता को चुनौती कोई भी दे सकता है. भले वह चाय वाला ही क्यों न हो.

विपक्ष बनने का माद्दा सिर्फ कांग्रेस में

संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष का रहना बहुत जरूरी है. और विपक्ष बनने का माद्दा सिर्फ कांग्रेस में है, किसी परिवार में नहीं. इसलिए कांग्रेस पार्टी जब तक अपने इस परिवार के दायरे से बाहर नहीं निकलती, तब तक उसका पनपना बहुत मुश्किल है. सत्ता को नियंत्रित करने के लिए भी विपक्ष को रहना चाहिए. अगर विपक्ष न रहा तो निरंकुशता आएगी. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी यदि इस परिवार का साइज कट कर रहे हैं तो कहीं न कहीं वे कांग्रेस का भला ही कर रहे हैं.

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