बिहार में बीजेपी का मेगा प्लान, इंडिया गठबंधन ‘अपनों’ की जंग से तंग

लोकसभा चुनाव को लेकर देश की सियासत गरमा गई है. एक तफर विपक्षी दलों की ओर से बनाए गए इंडिया गठबंधन में बैठकों का दौर चल रहा है तो दूसरी ओर बीजेपी भी विरोधियों को मात देने के लिए समीकरण सेट कर रही है. इसमें पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार और फिर यूपी तक की सीटों के लिए समीकरण बनाए जा रहे हैं.

कांग्रेस के दिमाग में क्या चल रहा है, यह मोदी विरोधी अलायंस की समझ में नहीं आ रहा. कांग्रेस ने बिहार पर बात शुरू की तो लालू की पार्टी को बुलाया, लेकिन नीतीश की पार्टी के साथ मीटिंग आगे खिसका दी गई. आज आम आदमी पार्टी से बात हुई, लेकिन महाराष्ट्र पर चर्चा शुरू नहीं की. इस बीच कांग्रेस ने 539 से ज्यादा लोकसभा सीटों के लिए कोऑर्डिनेटर नियुक्त कर दिए हैं. कांग्रेस के ये कोऑर्डिनेटर क्या करेंगे, क्या यही कांग्रेस के कैंडिडेट बनेंगे या फिर यह कैंडिडेट तलाशने में मदद करेंगे. कुल मिलाकर हो यह रहा है कि इंडिया अलायंस में टेंशन हाई है, क्या कांग्रेस खुद गठबंधन छोड़ेगी या ज्यादा सीटों पर लड़ने के लिए वह प्रेशर टैक्टिस आजमा रही है.

नरेंद्र मोदी का चुनावी महाअभियान बिहार से शुरू होने वाला है, तारीख 13 जनवरी और जगह बिहार के पश्चिमी चंपारण का बेतिया. उत्तर में नेपाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश, पूर्व में मिथिलांचल और दक्षिण में पूरा बिहार. बेतिया वो जगह है, जहां मोदी ने 2014 में पीएम बनने से पहले रैली की थी. अक्टूबर 2015 में मोदी यहां परिवर्तन रैली करने आए थे, जुलाई 2023 में मोदी ने बेतिया में गंडक पर पुल बनवाना शुरू किया और अब 13 जनवरी को प्रधानमंत्री प्रवास कार्यक्रम के तहत बेतिया आ रहे हैं. प्रधानमंत्री के आने से बिहार का सियासी पारा चढ़ने लगा है. आप लगता होगा कि जब 22 जनवरी को अयोध्या में इतना बड़ा इवेंट हो रहा है तो मोदी को 9 दिन पहले बिहार के बेतिया में रैली करने की क्या जरूरत है? मोदी के विरोधी भी ऐसा ही सोचते हैं. विरोधी दलों के नेता खरमास के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं, मोदी खरमास में ही कैंपेन लॉन्च करने जा रहे हैं. यह अंतर है मोदी की पार्टी और विरोधी पार्टियों में.

हाथ मिलाया, दिल नहीं मिले

लेकिन उनके दिल अब तक नहीं मिले हैं. बिहार की सीट शेयरिंग पर दिल्ली में बातचीत शुरू हुई है. 3 दिनों तक बातचीत ही होगी, लेकिन सभी नेता चुप हैं. कोई कुछ बोल नहीं रहा, कुछ बात नहीं रहा, न राहुल की पार्टी बोलती है, न लालू की पार्टी कुछ बोलती है, न नीतीश कुमार की पार्टी कुछ बोलती है, सब वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं. इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग का फार्मूला फाइनल होने से पहले नीतीश कुमार ने पश्चिमी अरुणाचल लोकसभा सीट से रूही तांगुंग को जदयू कैंडिडेट घोषित कर दिया.

अखिलेश यादव ने यूपी के गाजीपुर से अफजाल अंसारी का नाम खोल दिया. शिवसेना उद्धव गुट ने अरविंद सावंत को मुंबई दक्षिण सीट से कैंडिडेट अनाउंस कर और अब अरविंद केजरीवाल ने आप विधायक चैतर बसवा को गुजरात की भरूच सीट से कैंडिडेट अनाउंस कर दिया है. केजरीवाल ने जो भरे मंच से कह दिया है, वही चीज नीतीश कुमार ने बिना कुछ कहे कर दी. जिसके बाद कांग्रेस सीट शेयरिंग के प्रेशर में है.

बिहार में बीजेपी को मिली थी 39 सीटें

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2019 में एनडीए को बिहार में 39 सीटें मिली थी. कांग्रेस को किशनगंज की एक सीट मिली थी. नीतीश कुमार की पार्टी एनडीए का हिस्सा थी उसे 16 सीटें मिली, लेकिन लालू यादव की पार्टी आरजेडी का खाता तक नहीं खुला. नीतीश कुमार के पाला बदलकर एनडीए से इंडिया गठबंधन में आने के बाद मोदी विरोधी गठबंधन को सबसे ज्यादा उम्मीद बिहार से ही है, इसलिए सब मिलकर बिहार की सीटें बांटने में लगे.

अब तक जो संकेत मिले हैं उसे लगता है कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 16 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लालू तेजस्वी की राजद भी 16 सीटों पर लड़ सकती है, कांग्रेस को 6 सीटें और वामपंथी दलों को दो सीटें दी जाएगी. 16, 16, 6, 2 सीटों का यह फार्मूला नीतीश और लालू की पार्टी की ओर से आया है. जेडीयू का कहना है कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, यह तय हो गया है. हमने तो केवल यह कहा है कि हमारी इतनी सीटिंग सीट है, हम उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, बाकी 24 सीट है तो उन पर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी पार्टी की दावेदारी बनती है. इसलिए किसी का नुकसान और किसी का फायदे की बात नहीं बल्कि इंडिया ब्लॉक को फायदा हो, यह हमारी डिमांड थी.

बीजेपी ने बनाया बिहार प्लान

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन पार्टनर्स को अभी तक यह नहीं मालूम कि गठबंधन में है कौन-कौन. सपा, कांग्रेसी और आरएलडी का गठबंधन तो दिख रहा है, क्योंकि यह पार्टियां कई बार बैठक कर चुकी हैं. मायावती को लेकर असमंजस है. कल तक मायावती को इंडिया गठबंधन में लाने की चर्चा हो रही थी, कांग्रेस मायावती को साथ चाहती है, मगर मायावती ने अखिलेश यादव पर हमला बोल दिया है. बीएसपी सुप्रीमो ने बैक-टू-बैक दो ट्वीट किए हैं. मायावती ने अखिलेश के लिए जो लिखा उन शब्दों पर गौर कीजिए, सपा प्रमुख को पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि उनका दमन भाजपा को बढ़ाने और उनसे मेलजोल के मामले में कितना दागदार है. तत्कालीन सपा प्रमुख द्वारा भाजपा को संसदीय चुनाव जीतने से पहले और चुनाव बाद आशीर्वाद देने को कौन भूल सकता है.

कल तक अखिलेश यादव कांग्रेस को अल्टीमेटम दे रहे थे कि राहुल की न्याय यात्रा शुरू होने से पहले कांग्रेस यूपी में सीट शेयरिंग फाइनल कर ले. अखिलेश ने गाजीपुर से बीएसपी के पूर्व सांसद अफजाल अंसारी को सपा का टिकट देने का एलान कर दिया था. कल तक अखिलेशको मायावती पर ऐतबार भी नहीं हो रहा था, मायावती के रुख ने पासा पलट दिया. यात्रा से पहले टिकट बंटवारा हो और जब सीट बंटवारा हो जाएगा तो यात्रा में भी बहुत से लोग अपने आप सहयोग करने निकल पड़ेंगे, क्योंकि प्रत्याशी चुनाव लड़ने वाला होगा पूरी जिम्मेदारी से वह खड़ा दिखाई देगा.

यूपी में बन रही तीन तरह की स्थिति

यूपी में जो स्थिति बन रही है, उसमें तीन कोण दिख रहे हैं. पहले कोण बीजेपी और एनडीए का जिसके पास 50 फीसदी से अधिक वोट है. दूसरा कोण इंडिया के पार्टनर्स सपा, कांग्रेस और आरएलडी का जिसके पास 25 फीसदी के करीब वोट है. तीसरा कोण मायावती की बीएसपी का जिसे 2019 में 19 वोट मिले. साधारण गणित यह कहता है कि मायावती अगर इंडिया में आ जाती हैं तो भी बीजेपी और एनडीए गठबंधन को हरा पाना मुमकिन नहीं. यहां तो पहले से ही एक-दूसरे पर हमले हो रहे हैं तो सीट शेयरिंग कैसे होगी.

दिल्ली और पंजाब में गठबंधन का माहौल बिगड़ चुका है. केजरीवाल ने अब गुजरात में भी दावा ठोक दिया है. साथ मिलकर बीजेपी से लड़ते-लड़ते कहीं ऐसा ना हो कि इंडिया एलायंस के पार्टनर आपस में ही लड़ने लगे. 48 सीटों वाले महाराष्ट्र में यही हो रहा है. 42 सीटों वाले बंगाल में भी यही हो रहा है. मोदी विरोधी मोर्चा इन राज्यों में मजबूत दिख रहा है, वहां खुद से ही लड़ रहा है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर पेच फंसा है, शरद पवार बिचौलिए की भूमिका में हैं, लेकिन बंगाल में तो कोई बिचौलिया भी नहीं.

ममता को ही छेड़ रही है कांग्रेस

तृणमूल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की आपसी रंजिश खुलकर सतह पर आ रही है. ताजा मामला बंगाल के संदेशखली में ईडी की टीम पर हमले का है, जिसको लेकर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता सरकार पर हमला बोला है. पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर सीट शेयरिंग की चाबी ममता बनर्जी के हाथ में है, वह चाहे तो कांग्रेस के लिए कोई सीट छोड़ना चाहे तो ना छोड़े. ममता की सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ता, लेकिन ममता अगर हाथ छोड़ दे तो कांग्रेस बंगाल में जीरो हो सकती है, इसके बावजूद कांग्रेस ममता बनर्जी को ही छेड़ रही है.

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