कोरोना की दूसरी लहर में कई राज्यों में मरीज ऑक्सीजन की किल्लत (Oxygen Crisis) झेल रहे हैं. एक अदद ऑक्सीजन बेड के लिए सोशल मीडिया पर SOS संदेश की बाढ़ देखी जा सकती है. केंद्र सरकार ऑक्सीजन प्रोडक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन को लेकर तेजी से काम कर रही है. ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए केंद्र द्वारा तैयार किए गए प्लान पर आधारित आकलन के मुताबिक इस वक्त पूरे देश में करीब 6.9 लाख ऐसे मरीज हैं जिन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ सकती है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा नहीं है कि सभी को एक ही वक्त में ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ेगी. लेकिन आगे की तैयारी अधिकतम केसों को ध्यान में रखकर करनी होगी. इस वक्त केंद्र और राज्य दोनों ही अधिकतम मामलों को लेकर लेकर प्लान तैयार कर रहे हैं. लेकिन बीते 15 दिनों के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर राज्यों की तरफ से अक्सर शिकायतें सुनने को मिली हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट कहती है कि केंद्र के मुताबिक ऑक्सीजन सप्लाई का प्लान तीन श्रेणियों में विभाजित है. इन श्रेणियों में पहला नंबर 80 प्रतिशत माइल्ड केसों का है जिन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं है. दूसरे नंबर पर आते हैं 17 प्रतिशत मॉडरेट केस, इन्हें इलाज के दौरान ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. और तीन प्रतिशत गंभीर मामलों में वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है.
20 प्रतिशत मामलों में पड़ सकती है ऑक्सीजन की आवश्यकता
बीती 3 मई तक देश में कोरोना के कुल एक्टिव केस 34.4 लाख से ज्यादा थे. ऐसे में अगर केंद्र के फॉर्मूले के हिसाब से देखें तो करीब 20 प्रतिशत ऐसे मामले हैं जिनमें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है. केंद्र का कहना है कि राज्यों में मौजूदा एक्टिव केस के मुताबिक ऑक्सीजन सप्लाई का निर्धारण किया गया है. इस वक्त पूरे देश में कुल 8462 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन सप्लाई की आवश्यकता है.
बता दें दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई है. कोर्ट ने कहा, ‘देश में जो स्थिति है, उसे देखकर आप अंधे हो सकते हैं. हम नहीं. हम लोगों को मरता हुआ नहीं देख सकते.’ दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- ‘केंद्र ने तो आंखों पर पट्टी बांध ली है, हम ऐसा नहीं कर सकते.’