एक बार फिर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी
में रखने की मांग की जा रही है। ये मांग सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए की जा
रही है। समलैंगिकता के साथ व्याभिचार को भी दंडनीय अपराध बनाए रखने की मांग हो रही
है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दोनों मामलों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था।
हालांकि, सेना के कानून के तहत यह अपराध की श्रेणी
में बना रहे, इसके विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
एडुजेंट जनरल
अश्विनी कुमार ने अपने रिटायरमेंट के एक दिन पहले बुधवार को पत्रकारों से बातचीत
में यह बात कही। उन्होंने कहा कि सेना में इन दोनों संबंधों को दंडनीय अपराध में
नहीं रखा गया तो अनुशासन की गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी। इससे जवानों को नियंत्रित
करने में परेशानी होगी। उन्होंने कहा कि कुछ फैसले कानूनी रूप से भले ही सही हों, लेकिन नैतिक रूप से गलत हो सकते हैं। भारतीय सेना
में एडुजेंट जनरल की ब्रांच जवानों के कल्याण का कामकाज देखती है। यह हर स्तर पर
सैनिकों की शिकायतों का निपटारा करती है।
अश्विनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला हो, उसे माना जाएगा। अभी तक सेना समलैंगिकता और
व्याभिचार के मामलों का सेना के कानून के तहत निपटारा करती रही है। इस साल की
शुरुआत में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी कहा था कि समलैंगिकता और व्याभिचार
सेना में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।