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AIADMK ने एनडीए से तोड़ा नाता, फिर भी तमिलनाडु में BJP को क्यों दिख रहा फायदा?

ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK ) ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना चार साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से अलग होने की घोषणा कर दी. AIADMK अब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने की रणनीति बनाने में भी जुट गई है. बता दें कि बीजेपी और एआईएडीएमके के बीच पिछले कई सालों से चल रहा मजबूत गठबंधन समय के साथ तनाव में तब्दील हो चुका है. अन्नाद्रमुक का कहना है कि बीजेपी के साथ गठबंधन में उसे अक्सर संवेदनशील मुद्दों पर चुनौतिपूर्ण राजनीतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ रहा था.

अन्नाद्रमुक और बीजेपी के गठबंधन में उस समय दरार पैदा हो गई जब तमिलनाडु के भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविड़ आइकन, सीएन अन्नादुराई के संबंध में विवादास्पद टिप्पणी कर दी. उन्होंने दावा किया कि अन्नादुराई ने 1956 में मदुरै में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर हिंदू धर्म का अपमान किया था.

बीजेपी को अन्नामलाई पर पूरा भरोसा
तमिलनाडु में AIADMK और बीजेपी ने भले ही अपनी राह अलग कर ली हों लेकिन बीजेपी अपने राज्य प्रमुख अन्नामलाई के समर्थन में खड़ी है, जो पूरे तमिलनाडु में ‘एन मन, एन मक्कल’ यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं और राज्य में पार्टी के लिए एक मजबूत समर्थन आधार बनाने की कोशिश कर रहे हैं. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को पूर्व आईपीएस अधिकारी अन्नामलाई में आशा की किरण दिख रही है क्योंकि उनके नेतृत्व में भगवा पार्टी ने हाल ही में तकिलनाडु के निकाय चुनावों में बड़ी सफलता हासिल की है. अन्नामलाई के नेतृत्व में बीजेपी ने तीसरी सबसे बड़ी संख्या में सीटें हासिल की हैं.

ऐसा लगता है कि इस जीत से पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक हिंदुत्व के पोस्टर बॉय की उनकी मुखर छवि के कारण, बीजेपी और आरएसएस में अन्नामलाई का कद लगातार बढ़ता जा रहा है. पार्टी इसी छवि को लोकसभा चुनाव में भुनाना चाहती है.

कर्नाटक में बीजेपी हमेशा से रही मजबूत
दक्षिण भारत में भाजपा की कर्नाटक में सबसे मजबूत स्थिति है. वर्तमान में कर्नाटक के 28 सांसद हैं, जबकि पुडुचेरी में बीजेपी, गठबंधन के साथ सत्ता में काबिज है. हालांकि पार्टी को केरल, तेलंगाना में विकट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इन राज्यों में, बीजेपी को अभी तक राजनीतिक जमीन हासिल नहीं हो सकी है.

तेलंगाना में दिख रही उम्मीद की किरण?
तेलंगाना में बीजेपी के लिए उम्मीद की किरण दिख रही है. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के वोट शेयर में बड़ा उछाल देखने को मिला था. साल 2018 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो पार्टी ने बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया था और उसे राज्य में 7 प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे और एक सीट पर जीत हासिल हुई थी. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों के साथ स्थिति बदलनी शुरू हुई, जहां 15 विधानसभा क्षेत्रों वाले 150 वार्डों में से बीजेपी ने 48 में जीत हासिल की. ऐसे में बीजेपी को उम्मीद है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी.

लोकसभा चुनावों में दक्षिण भारत काफी अहम
देश में जिस तरह से राजनीति हालात बदल रहे हैं उसे देखते हुए 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में दक्षिण भारत के राज्यों की अहमियत काफी बढ़ गई है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी मिलकर लोकसभा में 130 सांसद भेजते हैं. इनमें से बीजेपी के पास फिलहाल सिर्फ 29 सीटें हैं, जिनमें से 25 कर्नाटक और 4 तेलंगाना से हैं. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और पुडुचेरी में बीजेपी के पास एक भी सीट नहीं हैं.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ 352 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसमें बीजेपी को अकेले 303, शिवसेना को 18, जेडी यू को 16, एलजेपी 6, अपना दल 2, अकाली 2, एआईएडीएमके 1 और शेष को 4 सीट हासिल हुई थीं. अब, 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का लक्ष्य दक्षिण भारत को चुनावी रूप से जीतना है.

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