OSHOS का 88वां जन्मोत्सव: MP के कुचवाड़ा में देश विदेश से आए अनुयायी

आचार्य रजनीश ओशो की स्मृतियां समेटे यह गाँव हमेशा लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना रहा है। सन् 1939 में अपने माता-पिता के साथ वह कुचवाड़ा छोडकर गाडरवाडा नरसिंहपुर जिले में रहने लगे। जहाँ उन्होनें 1951 में अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त कर दर्शन शास्त्र पढ़ने का निर्णय लिया। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे।1960 के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से एवं 1970-80 के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और 1989 के समय से ओशो के नाम से जाने गये।

मध्यप्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर से भी आचार्य रजनीश ओशो का गहरा नाता था। आचार्य रजनीश ने कहा था कि जबलपुर को छोड़कर जाना संभव नहीं है, यह मेरे हाड मांस में समाया है। जबलपुर में 11 से 13 दिसंबर तक 88वें जन्मोत्व के मौके पर ओशो महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। 50 साल पहले जब आचार्य रजनीश जबलपुर छोड़कर जा रहे थे तो उन्होनें कहा था कि इस शहर को छोड़कर जाना संभव नहीं है। यह शहर मेरे हाड मांस मज्जा में समाया हुआ है। चाहे कही भी रहूँ समय-समय पर जबलपुर की निंद्रा भंग करने आता रहूँगा। मध्यप्रदेश की धरती पर जन्में आचार्य रजनीश ओशो अपने जीवन में आध्यात्मिक और विवादास्पद गुरू के रूप मे विख्यात रहे।

वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये। भारत के पुणे में ओशो आश्रम में उन्होनें 19 जनवरी 1990 में 58 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। आपने जीवन में वह एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू और दर्शन शास्त्र के ज्ञाता के रूप में विख्यात रहे जो हमेशा विवादित रहे। हर साल 11 दिसंबर को आचार्य रजनीश ओशो के अनुयायी उनका जन्मोत्सव मनाते है। उनके अनुयायियों में कई बड़ी हस्तीयों सहित अभिनेता विनोद खन्ना अपने अंतिम समय तक उनके अनुयायी रहे। वह सुपर स्टार के रूप में बालीबुड में एक सितारे की तरह चमक रहे थे उसी समय उन्होनें अचानक फिल्म इंडस्ट्री को छोड़कर आचार्य रजनीश ओशो के अनुयायी बनकर एक संन्यासी के रूप में उनके आश्रम चले गए। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा से उनका बहुत लगाव रहा। वह पाँच बार कुचवाड़ा आए। प्रधानमंत्री अटल बिहारी की सरकार में पर्याटन मंत्री रहते हुए विनोद खन्ना ने कुचवाड़ा को पर्याटन स्थाल बनाने और उसके विकास के लिए कार्ययोजना बनाई थी।

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