अंग्रेजी मीडियम रिव्यू: बेदम कहानी में इरफान-दीपक की उम्दा एक्टिंग

साल 2017 में रिलीज़ हुई थी हिंदी मीडियम। फिल्म ने दिखाया था कि एक अच्छे स्कूल में एडमिशन के लिए क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं। अब 3 साल बाद फिर पापड़ तो बेलने हैं लेकिन स्कूल नहीं यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए। वो भी विदेशी यूनिवर्सिटी के लिए। इसी के इर्द-गिर्द घूमती है होमी अदजानिया निर्देशित अंग्रेजी मीडियम की कहानी। बीमारी से लड़ने के बाद बड़े पर्दे पर फिर वापसी कर रहे हैं इरफान खान। तो क्या इरफान खान की ये फिल्म दर्शकों को रिझा पाएगी, क्या हिंदी मीडियम की ही तरह अंग्रेजी मीडियम को भी वही प्यार मिलेगा? चलिए जानते हैं कैसी बनी है होमी अदजानिया की फिल्म अंग्रेजी मीडियम-

चंपक (इरफान खान) की एक मिठाई की दुकान है। बिजनेस भी उसका अच्छा ही चल रहा है बस अंग्रेजी बोलना उसके लिए जरा टेढ़ी खीर है। अब खुद तो चंपक ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है लेकिन अपनी बेटी तारिका बंसल (राधिका मदन) को बड़े सपने देखने से नहीं रोकता। उसकी बेटी भी पढ़ाई में ज्यादा तेज नहीं है लेकिन सपने देखती है लंदन में पढ़ने के। उसे लंदन के ट्रूफोर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन चाहिए। अब तारिका की इस जिद के चलते चंपक बीच मझधार में फंस जाता है, उसे अपनी बेटी के सपने को भी पूरा करना है और उसे अपने से दूर भी नहीं करना है। लेकिन फिर चंपक बेटी के सपने को पूरा करने की ठान लेता है। वो तिकड़म लगा अपनी बेटी को लंदन में एडमिशन दिलवाने की कोशिश करता है। इस काम में उसकी मदद करता है उसका दोस्त घसीटेराम (दीपक डोबरियाल) जिसकी चंपक के साथ वैसे तो नहीं बनती लेकिन तारिका की मदद के लिए वो उसके साथ आता है। दोनों की मदद करने का अंदाज भी ऐसा है कि वो लंदन की नागरिकता लेने के लिए भी तैयार हो जाते हैं, वो भी नकली पासपोर्ट पर। अब तारिका को लंदन के ट्रूडफोर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन दिलवाने के लिए कौन-कौन से हथकंडे अपनाए जाते हैं फिल्म उस बारे में है। तो क्या तारिका लंदन की यूनिवर्सिटी में पढ़ पाएगी? क्या चंपक अपने मिशन में कामयाब हो पाएगा? कही चंपक और घसीटेराम का झूठ सभी के सामने तो नहीं आ जाएगा? इन सवालों के जवाब मिलेंगे जब आप देखेंगे डायरेक्टर होमी अदजानिया की फिल्म अंग्रेजी मीडियम।

किसी भी फिल्म को सही मायनों में सफल तभी बताया जा सकता है जब वो अपने मैसेज को दर्शकों तक ठीक अंदाज में डिलीवर करती दिखे। अब सवाल उठता है कि क्या अंग्रेजी मीडियम ऐसा कर पाई है। तो जवाब है नहीं। अंग्रेजी मीडियम के ट्रेलर को देख पता चल गया था कि फिल्म विदेशी यूनिवर्सिटी में एडमिशन को लेकर सामने आ रही चुनौतियों पर फोकस करेगी। लेकिन फिल्म देखने के बाद लगता है वो मुद्दा तो कही पीछे ही छूट गया। फिल्म ने उस मुद्दे की ना गहराई को समझा और ना ही उसे सही अंदाज में उठाने की जहमत दिखाई। अंग्रेजी मीडियम एक दूसरे ही ट्रैक पर दौड़ती दिखी। फिल्म पिता और बेटी के रिश्ते पर ज्यादा फोकस कर रही थी। इसके चलते फिल्म अपने मूल मुद्दे से भटक सी गई।

अंग्रेजी मीडियम की कमजोर कहानी को सहारा मिला है इरफान और दीपक डोबरियाल की बेहतरीन एक्टिंग का। फिल्म में दोनों का काम लाजवाब रहा है। इरफान खान की बात करें तो वो फिल्म मे कमाल के नजर आए हैं। फिर वो चाहे कोई इमोशनल सीन हो या हो कोई हंसी-मजाक, वो हर रूप में आपका दिल जीत लेंगे। अंग्रेजी मीडियम की अगर इरफान खान जान है तो फिल्म का दिल दीपक डोबरियाल की बेमिसाल अदाकारी में छिपा है। दीपक का घसीटेराम का रोल आपको हर सीन में हंसने को मजबूर कर देगा। उनकी नेचुरल कॉमिक टाइमिंग है जो हर सीन में जान फूंक देती है। स्क्रीन पर इरफान की दीपक के साथ मस्ती खूब हंसाती भी है और फिल्म की हाईलाइट भी बन जाती है।

फिल्म में राधिका मदन का काम भी बढ़िया कहा जाएगा। उन्होंने अपने रोल को पूरी शिद्दत के साथ निभाया है। उन्होंने जिस अंदाज में रोल के लिए अपने लहजे पर काम किया है, वो काबिले तारीफ है। उनका कैरेक्टर फिल्म में सही अंदाज में गढ़ा गया है जिसके चलते उनकी एक्टिंग भी खूब निखरकर सामने आई है। लेकिन यही बात करीना कपूर के लिए नहीं कहीं जा सकती। उन्हें फिल्म में एक पुलिस कॉप का रोल तो जरूर दिया गया है लेकिन काम ना के बराबर। उनका फिल्म में होना या ना होना एक समान सा लगता है क्योंकि उनका करेक्टर कहानी को आगे बढ़ाने में कुछ भी करता दिखाई नहीं दिया।

कपिल शर्मा शो में सभी को हंसाने वाले कीकू शारदा का काम भी औसत ही लगा है। उनके अलावा फिल्म के सह-कलाकरों में सिर्फ रणवीर शौरी कुछ हद तक प्रभावित करते दिखाई दिए हैं। वहीं अनुभवी कलाकार पंकज त्रिपाठी और डिंपल कपाड़िया ने निराश किया है। लेकिन इसमें उनका दोष कम और कहानी का ज्यादा है जिसने उन्हें एक्सपलोर करने का कोई मौका ही नहीं दिया।

अंग्रेजी मीडियम का डायरेक्शन भी उसकी कमजोर कड़ी में ही गिना जाएगा। फिल्म दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में असफल साबित हुई है। याद कीजिए जब साकेत चौधरी ने हिंदी मीडियम में डायरेक्शन किया था। तब फिल्म में एक फील गुड फैक्टर था जिसके चलते फिल्म के साथ दर्शकों के जुड़ाव मजबूत होता दिखा। लेकिन वही फील गुड फैक्टर अब मिसिंग है। फिल्म ने एक साथ कई सारे मुद्दे उठाने की कोशिश की है जिसके चलते कहानी कई मौकों पर अपनी लय खोती है। ये बात फिल्म के दूसरे हाफ में सबसे ज्यादा खटकती है क्योंकि तब कई ऐसी चीजें दिखाई गई हैं जिसका कहानी के बैकग्राउंड में कोई जिक्र नहीं है। जैसे कि फिल्म में करीना और उनकी मां डिपंल के बीच परेशान क्यों रहती है? इस सवाल का जवाब दिया ही नहीं जाता। फिल्म का क्लाइमेक्स भी ज्यादा दमदार नहीं दिखा है। आप फिल्म देख अंदाजा लगा सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है।

अंग्रेजी मीडियम में सबसे बड़ी चूक तो यही रह गई कि फिल्म अपने संदेश को दर्शकों तक ठीक अंदाज में पहुचा नहीं पाई। जिस मुद्दे को फिल्म में तूल देनी चाहिए, वो होता दिखाई नहीं दिया। इसके अलावा फिल्म की दूसरी चूक है इसकी कमजोर एडिटिंग। फिल्म को काफी खींच दिया गया है। इसके ऊपर फिल्म में कई ऐसे बेवजह गाने हैं जिनके चलते फिल्म की लंबाई काफी ज्यादा हो गई है।

होमी अदजानिया की अंग्रेजी मीडियम को आप तभी पसंद कर सकते हैं अगर आप इसकी तुलना हिंदी मीडियम से ना करें क्योंकि ऐसा करने पर आपके हाथ मायूसी लगेगी। वहीं फिल्म की मजबूत कड़ी इसका एक्टिंग डिपार्टमेंट है जहां इरफान और दीपक की जोड़ी ने उम्दा काम किया है। अगर आप इन दोनों के फैन हैं तो ये फिल्म एक बार देख सकते हैं वरना अगर नहीं भी देखेंगे तो कोई अफसोस या मलाल नहीं होगा।

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