दुनियाभर की करीब 2 अरब आबादी ऐसी है जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है। एक रिसर्च की मानें तो इस आबादी के करीब 10 से 20 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनमें संज्ञानात्मक नुकसान देखने को मिलता है जिसकी वजह से डिमेंशिया (Dementia) या मनोभ्रंश बीमारी विकसित होने का जोखिम काफी अधिक है। इसलिए ऐसी रणनीतियां बनाने की आवश्यकता है जो न केवल कम लागत की हो बल्कि आम लोगों की पहुंच तक उपलब्ध हो। साथ ही मरीज को प्रिस्क्राइब की गई Medicine पर उसके परस्पर प्रभाव डालने का खतरा भी बेहद कम हो।
तनाव से निपटने में योगदान
योग और मेडिटेशन इसके लिए पूरी तरह उपयुक्त हैं क्योंकि वे ऊपर बताए गए मानदंडों को पूरा करते हैं। तंत्रिका तंत्र से जुड़े अध्ययनों से पता चलता है कि मन और शरीर के अभ्यास का बुजुर्ग लोगों की संज्ञानात्मक वृद्धि, विचार प्रक्रिया में सुधार, तनाव से निपटने और उनके व्यवहार में महत्वपूर्ण फायदा देखने को मिलता है। इस बारे में यह देखना अभी बाकी है कि सख्त परीक्षणों में ये लाभ खुद को दोहरा पाएंगे या नहीं चूंकि कई वैकल्पिक थेरेपीज ऐसी भी हैं जो कठोर परीक्षण में सफल साबित नहीं हो पायीं।
हालांकि योग और मेडिटेशन इस चीज को बेहतर तरीके से करने में सफल है। 81 लोगों पर एक ट्रायल किया गया था जिन्हें कुंडलिनी योग और याददाश्त की ट्रेनिंग करने को कहा गया। उसमें यह बात सामने आयी कि वैसे तो कुंडलिनी योग और याददाश्त से जुड़ी ट्रेनिंग दोनों ही स्मृति यानी मेमोरी को बेहतर बनाने में मददगार है लेकिन सिर्फ कुंडलिनी योग ही ऐसा है जिसकी मदद से व्यक्ति के मूड और कामकाज में भी सुधार देखने को मिला। यह डिमेंशिया की रोकथाम में योग के स्पष्ट महत्व को दर्शाता है। कीर्तन क्रिया जिसमें मंत्रों का जाप किया जाता है, यह भी बुजुर्गों के संज्ञान और स्मृति को बेहतर बनाने में प्रभावी है।
एक्सपर्ट्स के द्वारा यह सुझाव दिया जाता है कि योग की वैकल्पिक मुद्राएं और मंत्रों के जाप से मौखिक और दृष्टि संबंधी कुशलता के साथ-साथ ध्यान और जागरूकता को भी बढ़ावा मिलता है। यह तंत्रिका संचरण में सुधार करता है और तंत्रिका सर्किट में दीर्घकालिक परिवर्तन का कारण बनता है। योग और मेडिटेशन की मदद से नींद की क्वॉलिटी भी बेहतर होती है और डिप्रेशन के लक्षणों को कंट्रोल करने में भी मदद मिलती है।
आज के समय में तनाव, हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है। तनाव, स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल के स्तर को बढ़ाता है और सहानुभूति से जुड़ी अतिसक्रियता मस्तिष्क में मौजूद हिप्पोकैम्पल सर्किट (स्मृति स्थल) को नुकसान पहुंचाती है। तनाव की वजह से इन्फ्लेमेशन, ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस, हाइपरटेंशन, नींद में बाधा आना और डायबिटीज जैसी समस्याएं हो सकती हैं और ये सभी फैक्टर्स डिमेंशिया बीमारी के जोखिम कारक हैं।
मेडिटेशन से तनाव कम होता है
यह देखने में आया है कि ब्रेन के हाइपोथैलमस में विशिष्ट बिंदुओं की उत्तेजना, ब्रेन में तनाव-प्रेरित कोर्टिसोल की वजह से होने वाले नुकसान को कम कर सकती है। साथ ही यह अत्यधिक उत्तेजना के प्रभाव को कम करता है और विश्राम का कारण बनता है, नींद को बढ़ावा देता है और इस तरह से नर्वस सिस्टम की मरम्मत करने में मदद करता है। मेडिटेशन ब्रेन को एक ऐसी स्थिति में डाल देता है जो ऑक्सिडेटिव डैमेज के साथ-साथ नर्व्स में होने वाले इन्फ्लेमेशन को भी कम करता है जिससे ब्रेन को होने वाला नुकसान भी कम होता है।
योग और मेडिटेशन के फायदे और इसे कैसे करें
कीर्तन क्रिया या सक्रिय ध्यान, एसटाइल्कोलाइन जैसे ट्रांसमीटर्स के स्तर को बढ़ाकर न्यूरोट्रांसमीटर के गलत तरीके से काम करने की प्रक्रिया को सही करने में मदद करता है। तो वहीं, योग सिनैप्टिक डिसफंक्शन में सुधार करता है जो डिमेंशिया की एक क्लासिक विशेषता है। लिहाजा इस बारे में रिसर्च डेटा भी मौजूद है कि योग और मेडिटेशन डिमेंशिया के इलाज और रोकथाम में मददगार है।
हम जानते हैं कि चिकित्सीय मदद का डिमेंशिया पर सीमित प्रभाव पड़ता है। वहीं, दूसरी ओर योग और ध्यान आसानी से उपलब्ध है जिसे समुदाय और बड़ी आबादी आसानी से कर सकती है। बीमारी से जुड़ी जो दवाएं आप ले रहे हैं उस पर भी योग या मेडिटेशन का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। लिहाजा योग और मेडिटेशन, डिमेंशिया की रोकथाम में मददगार साबित हो सकते हैं।