कृषि कानूनों से सरकार ने लिया यूटर्न, फिर क्यों सड़कों पर मनमानी कर रहे राकेश टिकैत

तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद किसान नेता राकेश टिकैत क्यों दिल्ली से हैदराबाद के चक्कर लगा रहे हैं. क्यों सांसदों को धमकी का राग सुना रहे हैं. सवाल यह है कि किसान आंदोलन के नाम पर बनी अपनी ब्रांडिंग का फायदा नहीं उठा पाने का गम टिकैत को तिलमिला रहा है? या 2022 में योगी और 2024 में मोदी सरकार का विरोध करने का उन्हें फायदा नजर नहीं आ रहा है? सवाल इसलिए है क्योंकि ‘बक्कल तार देंगे’ जैसी भड़काऊ बयानबाजी कर टिकैत और उनके साथियों ने अन्नदाता के नाम पर पिछले एक साल में अपनी सियासत चमकाई थी.

किसान आंदोलन के नाम पर विरोध की राजनीति कर रहे टिकैत को विपक्षी पार्टियां अपने फायदे के लिए भरपूर शह और समर्थन दे रही थीं. तीनों कृषि कानूनों की वापसी के साथ आंदोलन के खत्म होने का माहौल बनने से टिकैत को शायद अपनी सियासी अहमियत के खत्म होने का अंदेशा डराने लगा. संयुक्त किसान मोर्चा की फूट ने इसे और हवा दी. कृषि कानूनों की वापसी का एलान जिस दिन सरकार ने किया था, उसी दिन संयुक्त किसान मोर्चा की रणनीतिक बैठक में चढूनी गुट ने टिकैत की हूटिंग करके इसका खुला इशारा भी दे दिया था. इसीलिए आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बने रहने और इसे जारी रखने की जबरिया जुगत में टिकैत नए सिरे से जुट गए हैं.

वह हैदराबाद तक जाकर ललकार लगा रहे हैं. विपक्ष को याद दिला रहे हैं कि टिकैत की सियासी अहमियत को कम करके मत आंकना. आंदोलन खत्म भले हो गया हो, लेकिन चुनावी दंगलों के दौर में सियासी खेल बनाने-बिगाड़ने में मैं अब भी उतने ही कारगर हूं. शायद यही वजह है कि टिकैत हैदराबाद जाकर तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव के खिलाफ ताल ठोककर आए. पश्चिमी यूपी में अपनी मजहबी सियासत जमाने में जुटे असदुद्दीन ओवैसी को सांड बता गए.

सियासी मोर्चे पर अहमियत बनी रहे, इसके लिये राकेश टिकैत 29 नवंबर को संसद के घेराव के नाम पर अलग-अलग राज्यों से प्रदर्शनकारियों को जुटा रहे हैं. ये शक्ति प्रदर्शन का खेला है. यूपी में किसान पंचायतों के कई दौर के बाद टिकैत को शायद ये समझ आ गया था कि सियासत में धमक बनाए रखना है, तो कई और निशाने लगाने होंगे. इसीलिये पिछले दिनों टिकैत ने बहुत समझ-बूझकर असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा था.

पश्चिमी यूपी की सियासी बिसात भी उन्हें ओवैसी पर वार के लिए उकसा रही थी. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को यूपी के CM योगी आदित्यनाथ ने अब्बाजान बोलकर घेरा, तो मौका देखकर राकेश टिकैत भी ओवैसी को चचाजान कहकर सियासी चुस्की ले गए. टिकैत ने ओवैसी को बीजेपी की बी टीम करार देने से पहले लंबे वक्त को माहौल को भांपा और जब ओवैसी ने पलटवार किया तो टिकैत समझ गए कि ओवैसी के बहाने यूपी से लेकर हिंदुस्तान की सियासत में एंट्री का उनका रास्ता खुला हुआ है.

आंदोलन को जारी रखने के नाम पर राकेश टिकैत फसलों की एमआरपी के साथ-साथ कई ऐसी मांगें भी सरकार के सामने रख रहे हैं, जिनके जायज होने पर सवाल उठना लाजिमी है. मसलन किसान आंदोलन के दौरान अराजक तत्वों पर दर्ज हुए केस को खत्म किया जाए. जबकि अराजक तत्वों के प्रदर्शन में हिंसा, हत्या और बलात्कार जैसे संगीन अपराध हुए हैं. राष्ट्रविरोधी तत्वों की गतिविधियां भी देश के अंदर-बाहर नजर आई हैं. ऐसे में टिकैत सरकार के सामने जो मांगें रख रहे हैं, वो असल में उनका आखिरी दांव है.

टिकैत समझ रहे हैं कि अगर ये दांव चल गया तो दबंगई की उनकी सियासत चमकेगी, किसानों के साथ साथ विपक्षी पार्टियों में भी उनकी पूछ बढ़ेगी और यूपी चुनाव के साथ-साथ 2024 के चुनाव में दांव आजमाने का चोखा मौका बनेगा. शायद यही वजह है कि खाप पंचायतों की ओर से किसानों की खेतों में वापसी की अपील को भी टिकैत दरकिनार कर गए.

वैसे मुमकिन ये भी है कि आंदोलन के नाम पर अराजक तत्वों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर सरकारी कार्रवाई का खौफ भी टिकैत को डरा रहा हो.

Leave a Comment

Your email address will not be published.

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1