ब्रिटेन में गर्मी से निकल रहा दम, क्या ये पूरी दुनिया के लिए है खतरे की घंटी?

यूरोप जिस तरह से गर्मी में झुलस रहा है उसने वैज्ञानिकों के सामने सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर इसकी वजह क्या है. वैसे तो ज्यादातर मौसम वैज्ञानिक इसकी वजह जलवायु परिवर्तन मानते हैं. मौसम विभाग ने अनुमान लगाया है कि इस वक्त जो गर्मी पड़ रही है, जलवायु परिवर्तन की वजह से इसकी दस गुना ज्यादा भीषण गर्मी होने की आशंका है. चेतावनी दी जा रही है कि यह सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों के जीवन को भी खतरा पैदा कर सकती है. और इसका असर स्कूल, अस्पताल और परिवहन तंत्र पर दिखता है. यह हालत तब है जब दुनिया के औसत तापमान में औद्योगिकीकरण से पहले के तापमान से 1 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है.

संयुक्त राष्ट्रसंघ के जलवायु परिवर्तन निकाय, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के मुताबिक हम 125,000 सालों की सबसे अधिक गर्म अवधि में रह रहे हैं. आईपीसीसी का कहना है कि फॉसिल फ्यूल जैसे कोयला, तेल, गैस जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से वातावरण में गर्मी फंस कर रह गई है. इसने वातावरण में कॉर्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को बढ़ाने में मदद की है जिसकी वजह से इसका स्तर 20 लाख सालों में सबसे ज्यादा पहुंच चुका है.

हमारे जलवायु की हालत किस दिशा में है
यूएन ने तापमान का जो लक्ष्य तय किया है, वह पूर्व-औद्योगिकीकरण की तुलना में 1.5 डिग्री ज्यादा पर सीमित करना है. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरनाक असर से बचना चाहिए. इसके लिए उत्सर्जन को 2025 तक यानी अगले ढाई सालों में अपने पीक पर पहुंच जाना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि ऊर्जा से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड 2021 में 6 फीसद बढ़कर 36.3 बिलियन टन तक पहुंच गया है जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है. जिसे 2030 तक लगभग आधा करना होगा जिसके लिए हमें दशक के अंत तक 43 फीसद तक कमी लाने की ज़रूरत है.

2050 तक नेट जीरो पर लाना होगा कार्बन उत्सर्जन
फिर दुनिया को 2050 तक उत्सर्जन को नेट ज़ीरो पर लाना होगा. इसका मतलब ग्रीन हाउस गैस को जितना हो सके उतना कम करना है और ऐसे तरीके खोजने हैं जिससे वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकाला जा सके. यह एक बड़ी चुनौती है, कई लोगों का मानना है कि ऐसी चुनौती का सामना मानवता ने आज तक नहीं किया है. पिछले साल ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र का जो विशाल सम्मेलन हुआ था, अगर तमाम सरकारों ने उसमें जो वादे किये थे अगर उन्हें वाकई लागू नहीं किया जाता है तो इस सदी के अंत तक हम पूर्व-औद्योगिकीकरण स्तर से 2.4 डिग्री ज्यादा तापमान देख रहे होंगे. इसके साथ इस बात में भी सच्चाई है कि भले ही हम इसे लागू करने में सफलता हासिल कर भी लेते हैं तो भी ब्रिटेन में गर्मी का दौर जारी रहेगा.

ब्रिटेन इस बारे में क्या कर रहा है
जलवायु परिवर्तन पर सरकार की सलाहकार जलवायु परिवर्तन समिति (CCC) ने साफ तौर पर कहा है कि कहीं भी कुछ पर्याप्त नहीं है. भले ही बोरिस जॉनसन ने जलवायु परिवर्तन को लेकर ग्लासगो सम्मेलन में गंभीर बातें की हों, लेकिन CCC का कहना है कि नेट जीरो को लेकर सरकार की नीतियों से काम होने की संभावना बहुत कम है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने बहुत सारे लक्ष्य रखे हैं औऱ बहुत सारी नीतियां बनाई हैं लेकिन इस बात को लेकर साक्ष्य नहीं मिलते कि लक्ष्य पूरा हो सकेगा. और देश आने वाली गर्मी और जलवायु परिवर्तन को लेकर खुद को तैयार करने को लेकर बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा है.

हजारों लोग असमय जान गंवाएंगे
यूके स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी के मुताबिक 2020 में हीटवेव की वजह से 2000 लोगों ने अतिरिक्त जान गंवाई थी. आने वाले दशक में यह आंकड़ा तिगुना हो सकता है. जलवायु परिवर्तन समिति की उपाध्यक्ष बेरोनीज ब्राउन का कहना है कि हम 10 साल से भी ज्यादा वक्त से सरकार से कह रहे हैं कि यूके चरम गर्मी के लिए जिस तरह से तैयार है वह नाकाफी है. इससे ज्यादा शर्मिंदगी की बात क्या हो सकती है कि लोग गर्मी की वजह से मर रहे हैं. यूके की ज्यादातर इमारतें और इन्फ्रास्ट्रक्चर को गर्मी के हिसाब से नहीं बनाया गया है. उनका कहना है कि इसे जल्दी से जल्दी गर्मी के अनूकूल बनाना होगा. बेरोनीज ब्राउन ने कहा कि हमने हाल के वर्षों में चरम मौसम और जलवायु परिस्थितियों की भविष्यवाणी करने में काफी प्रगति की है, अब हमें ऐसी व्यवस्थाओं की जरूरत है ताकि लोग और सरकारें हमारे द्वारा दी जा सकने वाली चेतावनियों पर कार्रवाई करें.

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