बंगाल का दंगल: चुनाव में BJP को लेकर क्‍या है राजनीतिक विश्‍लेषकों की भविष्‍यवाणी

पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। चुनाव से पहले राज्‍य में शुरू हुई हिंसा और हमले की घटनाएं इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि वहां पर चुनाव की राह रक्तरंजित होने जा रही है। हालांकि, राजनीतिक विश्‍लेषकों की बात करें तो हिंसा की इन घटनाओं के पीछे वो राजनीतिक मकसद बताते हैं। पश्चिम बंगाल में स्‍थानीय स्‍तर से लेकर राष्‍ट्रीय स्‍तरीय नेताओं के ऊपर हमले की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। BJP के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर पिछले वर्ष दिसंबर में कोलकाता दौर के वक्‍त हमला हुआ था। इसमें पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय समेत कई नेता घायल हो गए थे। इसके बाद कुछ दिन पहले ही राज्‍य के मंत्री के ऊपर बम से हमला किया गया। ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल में BJP के अध्‍यक्ष के ऊपर भी हमला किया गया।

राजनीतिक विश्‍लेषक इस बात को लेकर एक राय रखते हैं कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में BJP और सत्‍ताधारी TMC पार्टी के बीच सीधा और कड़ा मुकाबला है। इन विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि यहां पर चुनावी हिंसा का इतिहास काफी लंबा है। इस बार भी शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव का होना काफी मुश्किल लगता है। हालांकि इनका ये भी कहना है कि इस बार के चुनाव में पहले की अपेक्षा कम हिंसा देखने को मिलेगी। पश्चिम बंगाल की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्‍लेषक वर्ग का मानना है कि BJP पूरी ताकत के साथ इस चुनाव में उतरी है। BJP यहां पर राष्‍ट्रीयता के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ी है। साथ ही पार्टी ने राज्‍य में ममता सरकार की तुष्‍टीकरण की राजनीति के खिलाफ जो मोर्चा खोला है उसका उसे फायदा जरूर होगा।

चुनाव में विपक्षी पार्टियों के वोटर्स को डराने की कोशिश पर प्रदीप सिंह का कहना है कि अब लोग इस तरह की राजनीति से थक चुके हैं। अब वो बाहर निकलेंगे। इसका फायदा BJP को होगा। वहीं, शिवाजी सरकार भी मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में वर्षों से सत्‍ताधारी पार्टियां इसी तरह से अपने विरोधियों को डरा-धमकाकर चुनाव जीतती आई हैं। इस बार लोग बेहद करीब से इसको देख रहे हैं। शिवाजी की राय में ममता जिस तरह की भाषा का उपयोग करती हैं उसको वहां के पढ़े-लिखे लोग सही नहीं मानते हैं। BJP इस चुनाव में ममता पर काफी आक्रामक है और साथ ही उसकी मौजूदगी भी पहले से कहीं ज्‍यादा दिखाई दे रही है, जिसका फायदा उसको हो सकता है।

BJP लोगों को ये बताने में काफी हद तक सफल होती दिखाई दे रही है कि ममता हिंदुओं के बारे में नहीं सोचती हैं। वहीं, ममता द्वारा जय श्री राम के नारे का विरोध करने की घटना ने इसको कहीं न कहीं प्रमाणित करने का काम किया है। इसके बाद यहां ये एक ममता विरोध का नारा बन चुका है। जहां तक इस चुनाव में ममता के तरीके की बात है तो ये पहले की ही तरह है, लेकिन BJP उसको जवाब देने की भूमिका में है। केंद्र में सरकार होने का फायदा भी कहीं न कहीं पार्टी को मिल सकता है। उनका ये भी कहना है कि चुनावी हिंसा जिस तरह से लेफ्ट और टीएमसी पहले कर लेती थी इस बार वैसा नहीं हो सकेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस बार के विधानसभा चुनव में राज्‍य पुलिस का उपयोग न के ही बराबर होगा। इसलिए TMC इस बार हिंसा का फायदा अपनी जीत के लिए नहीं उठा सकेंगी। हालांकि, वो ये भी मानते हैं कि ये चुनाव हिंसा रहित नहीं होने वाला है।

हालाँकि ममता को सत्‍ता से हटाना BJP के लिए आसान नहीं है तो इतना मुश्किल भी नहीं होगा। लेकिन इस बारे में अभी कुछ कहना जल्‍दबाजी होगी। ये इस बात पर तय करेगा कि चुनाव में लोग कैसे वोट करते हैं। साथ ही मुस्लिम वोटों में जो बंटवारा होगा, ये काफी कुछ इस पर भी निर्भर करेगा। दोनों विशेषज्ञों की निगाह में ममता न सिर्फ राजनीति में बड़ा कद रखती हैं, बल्कि जमीन से जुड़ी हुई नेता है। इसके बावजूद सरकार के खिलाफ दस साल की पुरजोर होती आवाज और उनपर लगे भ्रष्‍टाचार के आरोप अभी लोगों के जहन में ताजा हैं। इसका फायदा BJP को मिल सकता है।

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