सरकारी स्कूलों में शिक्षा देने वालों की कार्यप्रणाली और उनकी मंशा जगजाहिर है, शिक्षकों की लापरवाही की खबरें एक साधारण सी बात लगती है, मगर इन्हीं शिक्षकों में कुछ ऐसे भी कर्तव्यनिष्ट हैं जिन्होने शिक्षा का प्रसार करने का संकल्प लिया हुआ है और उसके लिए जान की बाजी भी लगाने से नहीं कतराते और हमारे पूरे समाज को गौरवान्वित करने का काम करते हैं। ऐसी ही एक बहादुर शिक्षिका की कहानी हमे पता चली है, जिसे आज हम आप से शेयर कर रहे हैं:- ओडिशा जिले के ढेंकानाल जिले के महिला शिक्षिका की तस्वीर इन दिनों सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसे लोग अब शिक्षा की देवी कहने लगे हैं।
विनोदिनी 2008 से ढेंकानाल जिले के ओड़पड़ा ब्लाक में मौजूद रथियापाल सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती हैं। उनकी उम्र 50 साल को पार कर गई है। घर से तीन किमी. दूर उनका स्कूल है, मगर उनके गांव और स्कूल के बीच से प्रवाहित होती है सापुआ नदी। बारिश के दिनों में पहले इस विद्यालय में शिक्षादान प्रक्रिया एक प्रकार से ठप हो जाती थी, मगर विनोदिनी के आने के बाद उनके शिक्षादान करने की जिद के सामने नदी का तीव्र बहाव भी मानो हार मान जाता है। बारिश दिनों के लिए वह स्कूल में कुछ पोषाक रख देती हैं। नदी में गीले हो चुके कपड़े को वहां पर बदलने के बाद वह बच्चों की पढ़ाई में लग जाती हैं। लौटते वक्त पुन: उसी नदी में तैर कर अपने घर जाती हैं।
ओडिशा के ढेंकानाल जिले के एक किसान परिवार की बेटी विनोदिनी सामल ढेंकानाल ओड़पड़ा ब्लाक अन्तर्गत रथियापाल प्राथमिक स्कूल में जन शिक्षिका हैं। विनोदिनी पिछले 10 साल से समान परिस्थिति का सामना कर स्कूल जाती हैं। यह वीडियो वाइरल होने के बाद खुद केन्द्र पेट्रोलियम व इस्पात मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने ट्वीट करके विनोदिनी को अपनी शुभकामना देते हुए लिखा है कि यही कर्तव्यपरायणता है। वहीं राज्य शिक्षा मंत्री समीर रंजन दास ने भी विनोदिनी को अपनी शुभकामना दी है।
छात्र जीवन से ही उन्हें तैरने का अभ्यास है। 1987 में जब वह मैट्रिक में पढ़ रही थी तब शंखेई नदी पर ब्रीज न होने के कारण नदी में तैर कर पढ़ाई करने जाती थी। नदी बच्चों की पढ़ाई के लिए बाधक न बने उसके लिए वह सदैव सतर्क रहती हैं। पिछले 11 साल के शिक्षादान में वह 22 दिन भी सीएल (छुट्टी) नहीं ली हैं। जो छुट्टी ली भी हैं वह अपने उच्च शिक्षा के लिए ली हैं। हालांकि 11 साल तक शिक्षादान करने के बावजूद वह अभी तक रेगुलर शिक्षक नहीं बन पायी हैं। वह जनशिक्षक के तौर पर बच्चों को पढ़ाती हैं। सोशल मीडिया में उनकी तस्वीर व कहानी वायरल होने के बाद लोग उन्हें अब साक्षात देवी तक कहने लग गए हैं। अब सवाल सरकार से है, की आखिर कब तक छात्र और शिक्षक अपनी जान जोखिम में डाल कर नदियों को पार करते रहेंगे, क्या अब भी सरकार पुल बनाने का संकल्प ले पायेगी, क्यूंकि शिक्षा की देवी तो निरंतर अपने संकल्प को पूरा कर रही है।