शिवसेना को माया मिली न राम। मुख्यमंत्री पद की जिद ने शिवसेना को कहीं न नहीं छोड़ा। 24 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से छिड़े सत्ता संघर्ष का परिणाम महाराष्ट में राष्टपति शासन के रूप निकला। एनसीपी और कांग्रेस पर भरोसा करके अपने ’बड़े भाई’ (भाजपा) से बगावत करने वाली ‘सेना’ अब महाराष्ट्र के इस सियासी संकट की सबसे बड़ी खलनायक बन गयी है। हिन्दुत्ववादी पार्टियों भाजपा-शिवसेना की यारी करीब 30 साल पुरानी है। दोनों पार्टियों अंत तक एक-दूसरे के टूटने का इंतजार करती रहीं। लेकिन न अंत तक न तो सेना अपने हठ से डिगी और न ही बीजेपी झुकी।
रविवार को राज्यपाल की दी समय अवधि खत्म होने के बाद बीजेपी ने सरकार बनाने से हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी के साथ मिलकर ‘ऑपरेशन सरकार’ शुरू किया। लेकिन अंतिम क्षणों तक कांग्रेस का ग्रीन सिग्नल न मिलने के कारण सेना का ‘ऑपरेशन सरकार’ परवान नहीं चढ़ सका। सोमवार शाम 7ः30 बजे तक आदित्य ठाकरे अपनी ‘फौज’ के साथ राजभवन में इस उम्मीद में डटे रहे कि हाथ का सहारा मिल जाए तो वह सिंहासन पर बैठ जाएं। लेकिन ’मैडम’ किसी नजीजे पर नहीं पहुंची। उधर राज्यपाल भी कमान खींचे हुए थे। भगत सिंह कोश्यारी ’सेना’ को अब और मौका देने के मूड में नहीं थे।
समय सीमा खत्म होते ही कोश्यारी ने एनसीपी को न्यौता भेज दिया। राजनीतिक के मंझे हुए खिलाड़ी शरद पवार की पार्टी ने राजभवन को दो टूक कह दिया, हम कांग्रेस के साथ वार्ता करने के बाद ही कुछ आश्वासन दे सकेंगे। इधर कांग्रेस में कस-मकश का दौर जारी था। बदले हालात में किंग मेकर की भूमिका में आई कांग्रेस कई दौर की बैठक के बावजूद किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। उम्मीद थी कि राज्यवाल कांग्रेस को भी न्यौता भेजेंगे, लेकिन खैर ऐसा नहीं हुआ। मंगलवार को राज्यपाल ने केन्द्र को राष्टपति शासन लागू करने की सिफारिश को केन्द्र को भेज दी। फारिश स्वीकार होने में देर नहीं लगी और शाम होते-होते महाराष्ट्र राष्ट्रपति शासन के हवाले हो गया। करीब 20 दिन तक चले शिवसेना के ’कैकेयी हठ’ ने महाराष्ट्र में लोकतंत्र को अनिश्चित समय के लिए वनवास हो गया। अब गेंद फिर से चुनाव आयोग के पाले में है।
बता दें कि 21 अक्टूबर हरियाणा व महाराष्ट्र में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों का परिणाम 24 अक्टूबर को घोषित हो चुके हैं। हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर की अगुवाई में नई सरकार ने कामकाज संभाल लिया है। लेकिन महाराष्ट्र में सत्ता संग्राम खिंचता ही चला गया। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 145 है। चुनाव के बाद भाजपा-शिवसेना गठबंधन को सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत मिल गया। भाजपा ने 105, शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत दर्ज की। एनसीपी 54 विधायकों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। जबकि 44 विधायकों के साथ कांग्रेस चौथे नंबर पर रही। चुनाव परिणाम के बाद शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर 50-50 के फार्मूले पर अड़ गयी। यहीं से बात बिगड़ती चली गयी।