कड़ी मेहनत और खोज के बाद इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. गिरीश चंदेल ने चावल की उपजाति कोदो, रागी, कुटकी, सावा से चार ऐसे जीन खोजे हैं, जो चावल में पाए जाने वाले आयरन की क्षमता को तीन गुना बढ़ा देंगे। इन जीन का प्रयोग कर धान की नई प्रजाति ईजाद की जा रही है।
इसका फायदा ऐसे राज्यों के लोगों को होगा, जहां चावल की खपत ज्यादा है। चावल में कम आयरन होने पर पौष्टिकता पर सवाल उठता रहा है। डॉ. गिरीश की खोज WHO के मानक पर पूरी तरह से खरी उतरी है। इस शोध को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद पेटेंट करा रही है।
शोध में कोदो, रागी, कुटकी और सावा में आयरन की मात्रा 36 पीपीएन के ऊपर पाया। इनकी जांच में पता चला कि चारों खाद्य पदार्थो में आयरन स्वयं से नहीं आता, बल्कि जमीन से ही पौधा आयरन लेता है। ऐसे में इन पौधों को जड़, तना, पत्ती और फल चार भागों में बांट दिया। पत्ती में सबसे ज्यादा आयरन मिला। वही फलों तक पहुंचाता था। इसमें 43 तरह के फंक्शन किए गए। इसकी पत्ती से चार नए जीन निकले हैं, जिन्हें भविष्य में धान की प्रजाति के साथ ब्रीडिंग कर तैयार नई प्रजाति में आयरन की मात्रा बढ़ाई जाएगी।
इस चावल को खाने के फयेदें
.चावल भी गेहूं की तरह शरीर को पर्याप्त मात्रा में देगा आयरन
. कुपोषण को रोका जा सकेगा
. शुगर के मरीजों के लिए होगा लाभप्रद
छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद रायपुर के वैज्ञानिक डॉ अमित दुबे ने बताया कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. गिरीश चंदेल ने चावल की उपजाति से आयरन बढ़ाने वाले चार जीन खोजे हैं। प्रदेश में शोध को बढ़ावा मिले, इसलिए छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने उसे भारत सरकार को पेटेंट के लिए भेजा है, जो डब्ल्यूएचओ के मानक को पूरा करेगा।