क्यों बंद किए जा रहे हैं; सरकारी विद्यालय जवाब दे बिहार सरकार” – आनन्द माधव

एक ओर बिहार सरकारी उच्च विद्यालय हर पंचायत में खोलनें की घोषणा सरकार कर रही है तो दूसरी ओर धीरे धीरे सरकारी स्कूलों को बंद करनें की साज़िश रच रही है।आज सुबह एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, बिहार के 1885 प्राथमिक विद्यालयों को पिछले 1 वर्षों में बंद कर दिया गया है। जब इस संबंध में शिक्षा मंत्री से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि विद्यालयों को बंद नहीं बल्कि मर्ज किया जा रहा है।
चेयरमैन, रिसर्च विभाग व प्रवक्ता, बिहार प्रदेश काँग्रेस कमेटी, आनन्द माधव ने कहा कि यह पूरी तरह से ही भ्रामक और गैर जिम्मेदाराना बयान है। शिक्षा मंत्री शब्दजाल में जनता को उलझा रहे हैं। सरकार ने स्पष्ट रूप से समग्र शिक्षा अभियान के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में 1885 विद्यालयों को बंद कर दूसरे विद्यालय में समाहित करने की बात कही है। दो दिन पूर्व प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने भी इसी आशय में सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को आदेश निर्गत किया है कि भवनहीन या भूमिहीन विद्यालयों को नजदीकी विद्यालय में समाहित करते हुए अतिरिक्त शिक्षकों को किसी अन्य विद्यालय में स्थानांतरित किया जाय।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर 15 सालों तक भवनहीन या भूमिहीन विद्यालय पेड़ों के नीचे या अस्थायी भवन या पंचायत भवन में चलाये ही क्यों गए? या फिर इन विद्यालयों के पास अगर भूमि या भवन ही नहीं था तो इन 15 सालों में विद्यार्थियों को इन विद्यालयों में कैसे पढ़ाया गया? क्या सरकार ने उन बच्चों के भविष्य को बर्बाद नहीं किया? सच्चाई यह है कि सरकार के पास शिक्षा को लेकर के कोई स्पष्ट नीति नहीं है। चुनाव के दौरान जब वोट लेने के बारी आती है तो हर टोले में प्राथमिक विद्यालय और हर पंचायत में उच्च विद्यालय खोलने की घोषणा कर दी जाती है। ना तो उनके लिए भूमि या भवन की व्यवस्था की जाती है और ना ही उन विद्यालयों में शिक्षकों की व्यवस्था होती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में चौपट कर दिया है। अगर सरकार को शिक्षा व्यवस्था की चिंता होती और सही मायने में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहती तो विद्यालय खोलने की घोषणा करने से पहले उनके लिए भवन और पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की व्यवस्था करती। लेकिन सरकार तो चुनावों में वोट और तालियां बटोरने के लिए घोषणा कर देती है। उसका फलाफल यह होता है कि 10-15 साल तक भवनहीन एवं शिक्षक विहीन विद्यालय चलने के बाद उन्हें बंद करने की घोषणा करनी पड़ती है।


एक ओर तो कोरोना के कारण सरकारी स्कूल के बच्चों की दो साल पढ़ाई बंद रही और अब स्कूल बंद कर उनका भविष्य और बर्बाद कर रहे। सच यह है कि शिक्षा विभाग स्कूल विहीन शिक्षा की बात सोच रही है और धीरे धीरे उस कदम बढ़ा रही है। यह व्यवस्था निजी स्कूलों को बढ़ावा देनें की तथा सरकारी स्कूलों को और कमजोर करनें की एक सोची समझी चाल है और हम इस जाल में फँसते चले जा रहे हैं।आनन्द माधव ने प्रश्न पूछते हुए कहा कि सरकार स्पष्ट करे कि कितनें स्कूलों को कितने समय सीमा में ये बंद करनें जा रही है। उन्होंने माँग किया कि एक भी विद्यालय बंद नहीं होनें चाहिये तथा उनके लिए उचित भूमि और भवन की व्यवस्था की जाए। अगर इस तरह से सरकारी विद्यालय को बंद करने से आने वाले भविष्य में गरीब एवं पिछड़े तबकों को शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा।जरुरत है आज सरकारी शिक्षा तंत्र को मज़बूती प्रदान करने की ना तो उसे कमजोर करने की।

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1