राजद अब पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और वीआइपी के मुकेश सहनी के और नखरे नहीं झेलेगा। उप चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करके साफ़ तौर पर इन दोनों के लिए बाहर निकलने का रास्ता खोल दिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह HAM और VIP को RJD में विलय की सलाह दे रहे हैं। शिवानंद तिवारी कह रहे हैं कि नाथनगर में उम्मीदवार देकर मांझी अपनी ताकत आजमा लें। संकेत यहसाफ़ हैं कि राजद इन दोनों को मनाने नहीं जा रहा है।
असल में लोकसभा चुनाव ने इस भ्रम को तोड़ दिया है कि मांझी और सहनी अपनी बिरादरी के वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं। मांझी तो अपने गृह जिले में भी ताकत नहीं दिखा पाए, और बुरी तरह से हार गए। राजद के अलावा कांग्रेस, आरएलएसपी, हम और वाम दलों की ताकत लगने के बाद भी उन्हें 32.86 फीसदी वोट मिल पाया। जबकि जदयू की जीत करीब 59 फीसदी वोट लेकर हुई।
आंकड़ों के मुताबिक 2014 के बुरे दौर में भी गया लोकसभा चुनाव में राजद को 26 फीसदी वोट मिला था। यही हाल मुकेश सहनी का खगडिय़ा में हुआ। उन्हें लोकसभा चुनाव में 261623 वोट आया। यह राजद को 2014 में मिले वोटों से सिर्फ 29913 अधिक था। यानी राजद के बाकी सहयोगी दलों ने इतना ही वोट जोड़ा।
मांझी ने अकेले लड़कर कभी जनाधार की परख नहीं की। 2015 में पहली बार NDA के साथ मिलकर विधानसभा की 22 सीटों पर लड़े। 21 पर हार हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन सीट पर लड़े। तीनों हारे। मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी लोकसभा की तीनों सीट हार गई। राजद को आशंका है कि साथ रहे तो विधानसभा चुनाव में अधिक सीट मांगेंगे और लोकसभा चुनाव की तरह गैर-राजनीतिक लोगों को उम्मीदवार बनाकर एनडीए की जीत को आसान कर देंगे।
ज्ञात ही होगा की मांझी ने अररिया लोकसभा और जहानाबाद विधानसभा उप चुनाव में राजद की जीत का श्रेय लेकर अपने पुत्र को विधान परिषद का सदस्य बना दिया। जबकि विधानसभा में हम के सिर्फ एक सदस्य थे। मोटे तौर पर राजद अपने इन सहयोगियों की कड़ी सौदेबाजी से तंग आ चुका है।