राजीव जी एक आधुनिक राजनीतिक संत-आनन्द माधव

भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी ने अपने अल्प राजनीतिक जीवनकाल में ही जो इतिहास रचा वह अमिट है। इतना कुछ दिया इस देश को कि, आने वाले कई दशकों तक यह देश उनका ऋणी रहेगा। राजीव जी का राजनीति में आना एक महज संयोग था, लेकिन इस काजल की कोठरी में भी वे राजनीतिक संत बन कर निकले। भारत को 21वीं सदी का स्वप्न दिखानेवाले राजनायक राजीव जी ने कंप्युटर और सॉफ्टवेयर क्रांति द्वारा भारत के युवाओं को उड़ने के लिए एक नया आकाश दिया। इस कोरोना काल में जिस कंप्युटर क्रांति और मोबाईल का तत्कालीन विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया था, वही आज सबके काम आया। अग्रसोची राजीव जी ने एक नए भारत के निर्माण को प्राथमिकता प्रदान की। उनके द्वारा सैम पित्रोदा को लाकर सी-डॉट की स्थापना करने से टेलीकम्यूनिकेशन क्रांति का भारत में आगमन हुआ। एमटीएनएल और बीएसएनएल ने पूरे भारत को आपस में जोड़ा। आज हर हाथ में मोबाईल राजीव जी के ही सोच की देन है। आई टी उद्योग को सबसे अधिक बढ़ावा राजीव जी के कार्यकाल में ही मिला। राजीव जी अपने समय से आगे बहुत आगे थे क्योंकि, दूरदर्शिता के साथ-साथ उनका दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक था । नवोदय विद्यालय की परिकल्पना और स्थापना ग्रामीण बच्चों के शिक्षा के प्रति उनकी सोच को दर्शाता है।

महिलाओं के अधिकारों के प्रति संवेदनशील राजीव जी ने हर मंच से वे स्त्रियों के ‘समान कार्य के लिए समान वेतन एवं पराश्रमिक’ कि मांग उठाया। प्रजातान्त्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए राजीव जी ने पंचायती राज की स्थापना की और गांधी जी के ग्राम स्वराज की कल्पना को असली जामा पहनाने के क्रम में उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाया। महिलाओं के लिए पंचायती राज तथा संसद में 33 फीसदी आरक्षण मिले, इसके लिए जीवनपर्यंत प्रयत्नशील रहे।पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने के लिए 73वां संशोधन लाते हुए कहा था कि, यह दरअसल देश में जनतंत्र की जड़ों को मजबूत करने के राजीव गांधी के सपनों को साकार करने की कोशिश है। राजीव गांधी का मानना था कि, सत्ता का विकेन्द्रीकरण ही सत्ता को स्थाई और सुदृड बनाता है। राजीव गांधी भारत में अमन और शांति चाहते थे। पंजाब, असम, मिजोरम, एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के साथ किए गएसमझौते इसके उदाहरण हैँ। जिस श्रीलंका समझौते के कारण राजीव जी को अपनी जान गवांनी पड़ी, अगर राजीव जी ने उसे नहीं किया होता तो शायद उसके हालात भी आज अफगानिस्तान की तरह ही होते।

विपक्षियों को उन्होंने हमेशा सम्मान दिया एवं हमेशा उनकी मदद के लिए खड़े रहे। पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारतरत्न अटल बिहारी वाजपाई जी ने राजीव जी के असमय मौत को अपनी व्‍यक्तिगत क्षति बताते हुए यह स्वीकार किया कि ‘राजीव गांधी ने कभी भी राजनीतिक मतभेदों को आपसी संबंधों पर हावी नहीं होने दिया।‘अटल जी ने स्वयं इस बात को बताया कि, जैसे ही राजीव जी को उनकी बीमारी बारे में पता चला, उन्होंने तत्काल अटल जी को अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधि मण्डल में शामिल करते हुए, वहीं उनके पूरे इलाज की व्यवस्था कर दी। 1991 में बीजेपी केशिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता थे। राजीव जी की हत्या के बाद वाजपेयी जी ने पत्रकार करण थापर से बातचीत में इस वाकये को बड़े भावुकअंदाज में सुनाया और कहा कि, आज अगर वो जिंदा हैं, तो राजीव गांधी की वजह से।

वर्तमान समय में धर्म और राजनीति का एक दूसरे से गहरा जुड़ाव दिखता है। या यों कह लें की धर्म राजनीति पर पूरी तरह हावी है। पूरा देश, पूरी राजनीति दो भागों में बंटा दिखाई देता है। विपक्षी दल काँग्रेस पर एक समुदाय विशेष के तुष्टीकरण का आरोप हमेशा से लगाते रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है किकाँग्रेस सर्वधर्म समभाव एवं सबों के लिए एक सा सम्मान की बात करता है। राजीव गांधी पर भी एक धर्म विशेष की तुष्टीकरण का आरोप लगा था,खासकर शाहबानों केस के बाद। लोग इस बात को भूल गए कि, जिस राम मंदिर का नाम लेकर भाजपा 2 से 301 की संख्यां पर पहुंची है, उस राम मंदिर के विवादित स्थल का ताला राजीव जी ने ही फरवरी 1986 में खुलवाया था। इतना ही नहीं राजीव जी ने ही राममंदिर का शिलान्यास भी करवाते हुए वहाँ रामलला की पूजा अर्चना शुरू कारवाई थी। राजीव गांधी ने 1989 में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत फैजाबाद यानि अयोध्या से करते हुए ‘रामराज्य की स्थापना’ का आह्वान किया था। दरअसल राजीव जी समावेशी राजनीति के पोषक थे, ना कम और ना ज्यादा सभी धर्मों, संप्रदायों के प्रति समान आदर का भाव था उनमें।

दुनियाँ के अकेले प्रधानमंत्री थे जिन्हे ‘मिस्टर क्लीन’ की उपाधि मिली थी। अपने पूरे राजनीतिक कार्यकाल में वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे। उन्होंने ही लाल किले के प्राचीर से कहा था, भारत सरकार एक रुपया भेजती है, लेकिन लाभार्थी तक मात्र पंद्रह पैसा ही पहुँच पाता है। बाँकी के पैसे बिचौलियोंके पास चला जाता है। लेकिन विडंबना तो देखिए, भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले को ही भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझना पड़ा। राजीव जी के मृत्यु के साढ़े बारह वर्ष बाद तक झूठे आरोपों का दंश उन्हें और इस देश को झेलना पड़ा। वे ओछी राजनीति के शिकार हुए, अपनों ने ही राजीव गांधी के पीठ में छूरा मारा। जिस बोफोर्स तोप के खरीददारी के दलाली में उन्हें गलत ढंग से घसीटा गया, कारगिल के युद्ध में वह भारतीय सेना के विजय का एक महत्वपूर्ण कारण बना। कौन इस बात से इनकार करेगा कि बोफोर्स खरीददारी की जाँच के लिए स्वयं राजीव गांधी ने एक 30 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया था, जिसमें 11 सदस्य भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य विपक्षी दलों के ही थे। 26 अप्रैल 1988 मे सदन के पटल पर इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए लिखा कि, इस पूरे सौदे में कहीं यह साबित नहीं हुआ की बोफोर्स को किसी भी तरह की रियायत दी हो। लेकिन संसदीय समिति रिपोर्ट के बावजूद भी दुर्भावना से ग्रसित होकर लगभग बारह साल बाद बोफोर्स खरीददारी को सीबीआई के हवाले किया गया। 5 फरवरी 2004 को एनडीए शासन काल में ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजीव गांधी पर आरोपों को निरस्त करते हुए उन्हें क्लीन चिट दे दिया।1999 के कारगिल युद्ध में अगर बोफोर्स नहीं होता तो शायद आज हमारा भूगोल बदल गया होता। जवानों ने खुद स्वीकार किया कि, बोफोर्स तोपों की गूँज के साथ-साथ भारत माता की जय और राजीव गांधी जिन्दाबाद के नारे लगे। दरअसल यह एक मीडिया ट्रायल था, जिसे सत्ता लोलुप विपक्ष ने हवा दी थी। एक निर्दोष प्रधानमंत्री को बदनाम करने की साजिश पूरी तरह झूठी साबित तो हो गई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और राजनीति अपना रंग दिखा चुकी थी।  

भारत का सबसे युवा प्रधानमंत्री, जिनके मुस्कान की मुरीद पूरी दुनियाँ थी, ने देश के लिए, विश्वशांति के लिए अपना बलिदान दे दिया। आज कुछ लोग उनके नाम से बनी संस्थाओं तथा अवार्डों से उनका नाम हटा रहे, पर शायद वे नहीं जानते कि शिलापट्ट पर नाम मिटाने या बदलने से इतिहास नहीं बदल जाता।राजीव गांधी जी ने अपने अल्प राजनीतिक जीवन में इतनी बड़ी लकीर खींच दी है, जिसे ना तो मिटाना संभव है और ना ही छोटा करना। भारत आज संक्रमण काल से गुजर रहा है, ऐसे में भारत को फिर से ऐसे विलक्षण और दूरदर्शी नेतृत्व की आवश्यकता है। भारत को राजीव गांधी की कल जितनी जरूरत थी, आज शायद उससे कहीं अधिक जरूरत है।

आनन्द माधव

चेयरमैन

रिसर्च विभाग

मैनिफेस्टो कमिटी एवं प्रदेश प्रवक्ता

बिहार प्रदेश कॉंग्रेस कमिटी 

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