राजाराम मोहन राय को आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। आज ही के दिन उनकी मृत्यु हुई थी। आज उनकी पुण्यतिथि है। इस मौके पर उनकी ओर से देश के लिए कामों को याद न किया जाए तो ये ज्यादती होगी। राजाराम मोहन राय एकेश्वरवाद के एक सशक्त समर्थक थे। उन्होंने रूढ़िवादी हिंदू अनुष्ठानों और मूर्ति पूजा को बचपन से ही त्याग दिया था। जबकि उनके पिता रामकंटो रॉय एक कट्टर हिंदू ब्राह्मण थे।
जानिए ये बातें….
राजा राम मोहन राय को महिलाओं के प्रति दर्द उस वक्त एहसास हुआ, जब उनकी भाभी को सती होना पड़ा। राजा राम मोहन राय किसी काम के लिए विदेश गए थे और इसी बीच उनके भाई की मृत्यु हो गई। उसके बाद समाज के ठेकेदारों ने सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को जिंदा जला दिया।
इसके बाद मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज कर दिया। उन्होंने समाज की कुरीतियों के खिलाफ गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक की मदद से साल 1929 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया।
मोहन राय मूर्ति पूजा के विरोधी भी थे, लेकिन एक बार उन्होंने साधु बनने पर विचार किया था।
दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक अकबर द्वितीय ने उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी थी।
राम मोहन रॉय ने तीन बार शादी की थी जिसके कारण उन्हें समाज में बहुविवाही कहने लगा।
उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की।
मोहन स्वतंत्रता चाहते थे। वो चाहते थे कि इस देश के नागरिक भी उसकी कीमत पहचानें।
कहा जाता है कि उन्होंने 1816 में पहली बार अंग्रेजी भाषा में HINDUISM(हिंदुत्व) शब्द का इस्तेमाल किया।
उन्होंने ब्रह्म समाज आंदोलन की शुरुआत की, जिसने सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।
शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बड़े काम किए और कलकत्ता का हिंदू कॉलेज। एंग्लो-हिंदू स्कूल और वेदांत कॉलेज खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है।