SC/ST act क्या है ?
SC/ST act, 11 सितंबर को 1989 में भारतीय संसद में पारित किया गया, और 30 जनवरी 1990 को पूरे भारत में लागू किया गया। ये अधिनियम हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, और वो व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता है। इस अधिनियम में 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं।
बता दें कि SC/ST act में प्रत्येक धारा के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान हैं। SC/ST act के तहत अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को 6 माह से लेकर 5 साल या इससे भी ज्यादा की सजा के साथ अर्थदण्ड यानी फाइन का भी प्रावधान है। नृशंस हत्या जैसे अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा है।
पिछले साल(2018) में इस एक्ट को लेकर क्यों मचा इतना बवाल ?
साल 2018 के अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज़ की गई, इसमें सुप्रीम अदालत से अपील की गई कि अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निरोधक कानून SC/ST act में केंद्र सरकार के हालिया संशोधन को इस याचिका की सुनवाई तक रोका जाए। इस याचिका को दायर करने वालों ने आशंका जताई कि इस कानून से बेगुनाहों को फंसाया जा सकता है। केंद्र सरकार ने एक विधेयक के जरिये यह प्रावधान किया था कि SC/ST act के तहत गिरफ्तारी होने से पहले किसी तरह की जांच ज़रूरी नहीं होगी।
ये विधेयक शीर्ष अदालत के एक फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए लाया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि SC/ST act के तहत शिकायत दर्ज होने पर किसी भी लोक सेवक को उसके नियोक्ता प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बगैर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, कोर्ट का यह भी कहना था कि यदि आरोपित व्यक्ति लोक सेवक नहीं है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की लिखित मंजूरी की जरूरत होगी, इसके अलावा अदालत ने एक और बात साफ कर दी की SC/ST act के तहत FIR दर्ज़ करने से पहले कम से कम पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा आरोपों की प्राथमिक जांच कराई जा सकती है।
इस फैसले को सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि SC/ST act का बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल हो रहा है, मगर दूसरी तरफ दलित संगठनों ने इस फैसले का बड़े स्तर पर विरोध किया, जसके परिणाम स्वरूप कई जगह विरोध हुए में देश भर में दलितों ने प्रदर्शन किया, कई जगह हिंसा भड़की, जिसमें कुल 9 लोग मारे गए।
यहां मोदी सरकार के कुछ सहयोगी संगठनों ने भी सरकार पर दबाव बनाया, जिसे देखते हुए सरकार अदालत के फैसले को पलटते हुए इस कानून को संशोधन के जरिए वापस अपने मूल स्वरुप में ले आई।
इस पूरे घटनाक्रम में गौर करने वाली बात ये है कि 2018 की ही तीन चर्चित घटनाएं इस बात का सूबत पेश करती हैं कि SC/ST act का दुरुपयोग हो रहा है।
1- राजस्थान के एक पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित और पटना के दीघा घाट निवासी राकेश पासवान का मामला।
2- नोएडा के एक रिटायर्ड कर्नल बी एस चौहान के खिलाफ भी SC/ST act के गलत इस्तेमाल के मामले ने भी खूब सुर्खियां बटोरी।
3- उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले से एक सामने आया था जब निबिहनपुरवा गांव के रहने वाले विद्याराम के तीन साल के बेटे पर पुलिस ने SC/ST act के खिलाफ मामला दर्ज़ कर उसे न्यायालय में पेश होने का फरमान भेज दिया।
SC/ST act लगने पर क्या हैं आरोपी के कानूनी अधिकार
SC/ST act लगने पर सबसे पहले आरोपी को सम्बंधित थाने में जाकर ये जानकारी लेनी चाहिए कि SC/ST act में कौन सी धारा के अंतर्गत FIR दर्ज की गयी है, अगर उन दर्ज धाराओं में सात साल से कम की सजा है, तो उनमें बिना नोटिस के गिरफ्तारी नहीं हो सकती ।
SC/ST Act फर्जी पाए जाने पर पीड़ित के अधिकार
अदालत में झूठा ब्यान देना या पुलिस के सामने झूठी FIR दर्ज कराने के मामले में कानून में ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त प्रावधान हैं। जो SC/ST act के तहत झूठा मामला पाए जाने पर भी लागू होते हैं। ऐसे मामलों में IPC की धारा-182 के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर छह महीने तक की सजा का प्रावधान है, साथ ही IPC की धारा-193 का भी उपयोग उस शख्स के खिलाफ कर सकते हैं। इस मामले में दोषी पाए जाने पर 7 साल की सजा का प्रावधान है। ऐसा झूठा ब्यान जिससे कि किसी शख्स को उम्रकैद तक हो सकती है तो वैसे मामलों में IPC की धारा-195 के तहत केस दर्ज किया जाता है। इस धाराओं के बाद मानहानि का दावा भी दिवानी अदालत में किया जा सकता है, और मुआवजा हासिल किया जा सकता है।
News Curtsey Renuka Trivedi