रामचरितमानस पर सवाल खड़े करनेवाले प्रो. चंद्रशेखर को जाननी चाहिए ये बातें

बिहार के शिक्षा मंत्री ने राम भक्तों की आस्था पर सवाल खड़े किए हैं. भगवान राम पर आधारित ग्रंथ को नफरत फैलाने ग्रंथ बताया है. नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए बिहार के शिक्षा ने यहां तक कह डाला कि राम चरित मानस समाज में नफरत फैलाने वाला ग्रंथ है. चंद्रशेखर यहीं नहीं रूके. उन्होंने मनुस्मृति को समाज में जहर बोने वाला ग्रंथ करार दिया है. चंद्रशेखर RSS पर भी निशाना साधाने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि संघ से जुड़े लोग समाज में नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं.

पत्रकारों से बातचीत में प्रो. चंद्रशेखर सिंह ने सफाई देते हुए अपनी बात रामचरितमानस की पंक्तियों से शुरू की. उन्होंने एक चौपाई ‘ढोल, गंवार सूद्र और नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’ का गायन करते हुए कहा कि ढोल पीटने पर बजेगा, गंवार पीटने पर ठीक होगा, सूद्र पीटने पर ठीक होगा और नारी को भी आप पीटोगे. भैया! ये क्या चल रहा है? उन्होंने शबरी का जिक्र करते हुए कहा कि भगवान राम शबरी के झूठे बेर खा सकते हैं लेकिन शबरी का बेटा जीतन राम मांझी सीएम रहते हुए या पूर्व सीएम होते हुए भी किसी मंदिर में पूजा करता है तो पाखंडियों द्वारा मंदिर को छुआछूत के विचार से धोया जाता है. उन्होंने कई ऐसे उदाहरण दिए. लेकिन प्रोफेसर चंद्रशेखर ने उन पंक्तियों का जिक्र नहीं किया जो भगवान राम ने स्त्रियों की रक्षा के लिए की. शूद्र को सम्मान देने के लिए किया.

निषाद राज गुह को दिया सम्मान
रामचरितमानस में राम-केवट संवाद का भी जिक्र किय़ा गया है. राम-केवट संवाद में ऐसा भी प्रसंग है कि भगवान राम अपने पूर्वजों की बातों को ध्यान करते हैं कि केवट को उतराई यानि जो नांव से उन्हें नदी को पार कराया है उसकी मजदूरी उन्हें देनी ही होगी. माता सीता भगवान राम की चिंता समझ जाती हैं. भगवान राम पूर्ण रूप से तपस्वी के भेष में रहते हैं यानि किसी भी प्रकार की धन संपत्ति बनबास के लिए निकलते समय अयोध्या से नहीं लेते हैं. राम लक्ष्मण और सीता तीनों नांव से उतरकर नदी पार होने के बाद खड़े होते हैं. केवट ने भगवान राम को दंडवत प्रणाम किया. अब भगवान राम दुविधा में थे और शर्म भी महसूस कर रहे थे कि मैंने केवट को कुछ दिया नहीं.
माता सीता भगवान राम की मनोदशा का जिक्र रामचरितमानस में कुछ इस प्रकार है
पिय हिय की सिय जाननिहारी. मनि मुदरी मन मुदित उतारी.
कहेउ कृपाल लेहि उतराई. केवट चरन गहे अकुलाई..

अर्थात: पति के हृदय की जानने वाली सीताजी ने आनंद भरे मन से अपनी रत्न जडि़त अँगूठी (अँगुली से) उतारी. कृपालु श्री रामचन्द्रजी ने केवट से कहा, नाव की उतराई लो. केवट ने व्याकुल होकर चरण पकड़ लिए.

और भगवान राम को जवाब में उतराई लेने से इन्कार करते हुए केवट कहते हैं:
नाथ आजु मैं काह न पावा. मिटे दोष दुख दारिद दावा.
बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी. आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी..
अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें. दीन दयाल अनुग्रह तोरें.
फिरती बार मोहि जो देबा. सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा..

अर्थात: हे नाथ! आज मैंने क्या नहीं पाया! मेरे दोष, दुःख और दरिद्रता की आग आज बुझ गई है. मैंने बहुत समय तक मजदूरी की. विधाता ने आज बहुत अच्छी भरपूर मजदूरी दे दी. हे नाथ! हे दीनदयाल! आपकी कृपा से अब मुझे कुछ नहीं चाहिए. लौटती बार आप मुझे जो कुछ देंगे, वह प्रसाद मैं सिर चढ़ाकर लूँगा.

राधेश्याम रामायण में लिखी चौपाई के मुताबिक केवट ने तो खुद को भगवान राम के बराबर ही खड़ा कर लिया और भगवान राम को भी उसकी बात माननी बड़ी थी. केवट ने उतराइ लेने से मना करते हुए कहा है:
दरजी, दरजी से न ले सिलाई, धोबी, धोबी से न ले धुलाई.
नाई, नाई से न ले बाल कटाई, फिर केवट, केवट से कैसे ले उतराई..

अर्थात: प्रभु में आपसे उतराई कैसे ले सकता हूँ, हम दोनों तो एक ही बिरादरी के है, और बिरादरी वाले से मज़दूरी नहीं लिया करते. आप भी केवट, हम भी केवट, अंतर इतना है हम नदी मे इस पार से उस पार लगाते है, आप इस संसार से भव सागर पार लगाते हो, हमने आपको पार लगा दिया, अब प्रभु जब मेरी बारी आये तो आप मुझे पार लगा देना.

यानि के केवट ने भगवान राम को केवट बना दिया. खुद को सागर का केवट तो भगवान राम को भवसागर का केवट. आज भी निषाद राज गुह के उस वचन का केवटों द्वारा पालन किया जाता है. यानि केवट केवट से नाव की उतराई नहीं लेता. नाई, नाई के बाल काटने का पैसा नहीं लेता, धोबी अपने साथी धोबी का कपड़ा धोने का पैसा नहीं लेता और ना ही दरजी-दरजी से कपड़े सिलने का पैसा लेता है.

एक शूद्र का सम्मान भगवान राम इस तरह करते हैं कि उसे अपना कुछ समय के लिए हमराही बना लेते हैं. केवट ही सबसे पहले भगवान राम के लिए बन में पर्णकुटी की निर्माण करता है, भगवान उसका सम्मान करते हैं और उसे अपने बराबद का दर्जा (केवट) के नाते देते हैं.

एक और शूद्र भिलनी शबरी का भी जिक्र रामचरित मानस में हैं. भिलनी का जिक्र होने से वो अफवाहें खारिज हो जाती हैं जिनमें नारी को ताड़ना का अधिकारी बताने का गलत मतलब निकाला जाता है.

माता शबरी इसलिए वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थीं भगवान श्रीराम की, भगवान राम भिलनी से जूठे बेर कितने प्रेम से खाते हैं इसका भी जिक्र रामचरित मानस में हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं:
कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि.
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि..

अर्थात: भगवान श्रीराम ने शबरी द्वारा श्रद्धा से भेंट किए गए बेरों को बड़े प्रेम से खाया और उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की. साहित्य में शबरी के फलों की मिठास का बार-बार वर्णन आता है. भगवान राम को इन फलों में जैसा स्वाद मिला, वैसा स्वाद न तो पहले कहीं मिला था और न बाद में ही कहीं मिला. जाहिर सी बात थी शबरी को ये नहीं पता था कि वो भगवान को झूठे बेर खिला रही है, ऐसा करने से उसे पाप लगेगा? शबरी तो भक्ति रस में डूबी थी कि मेरे प्रभु राम के मुंह में खट्टे बेर ना जाएं ताकि उन्हें खट्टापन ना महसूस हो. वो तो भक्ति रस में डूबी थी और बेरों को चख रही थी. जो बेर मीठे ते उन्हें अपने बर्तन में रख रही थी और जो बेर खट्टे थे उन्हें फेंक रही थी. ऐसी अवस्था में भगवान राम ने तो शबरी का ना तो अपमान किया बल्कि उसे मोक्ष की वरदान दिया. शबरी के झूठे बेर खाए.

निषादराज गुह और शबरी माता की कहानी उन लोगों के मुंह पर रामचरितमानस में वर्णित दोहों के आधार पर किसी तमाचे से कम नहीं जो शूद्र और नारी को ताड़ना का अधिकारी बताने वाले चौपाई का मतलब गलत निकालते हैं.

अब बात करते हैं सिर्फ नारी की तो भगवान राम को अपने जीवन में नारी की सुरक्षा के लिए कलंकित भी होना पड़ा था. कलंकित करनेवाला कोई और नहीं बल्कि किष्किंधा का राजा बालि था. बालि ने अपने भाई की सुग्रीव की पत्नी को अपने रनिवास में रखता था. सुग्रीव को घर से मन-मुटाव होने के कारण निकाल दिया था. भगवान राम ने जब बालि का वध किया था तो बालि ने घायल अवस्था में अपनी मृत्यु से पहले भगवान राम पर उनके मर्यादा पुरुषोत्तम होने से लेकर उनके शक्तिय़ों पर भी सवाल खड़े कर दिए थे. रामचरित मानस में भी इस बात का जिक्र है और राधेश्याम रामाय में भी. बाण लगने के बाद बालि बोलता है:

((राधे श्याम रामायण के मुताबिक))

मैं मरते-मरते कहता हूं, ये किसका बाण करारा है.
उफ दगा-दगा, धोखा-धोखा किसने मुझको संघारा है..

जवाब में भगवान राम ताड़ें के वृक्षों के पीछे से निकलते हुए आकर बालि के सामने खड़े हो जाते हैं. भगवान राम को देखते ही बालि भड़क उठता है. बाण लग जाने की वजह से बालि के पास इतनी शक्ति नहीं रहती कि वह भगवान राम का सामना करता लेकिन पूछ बैठता है कि क्या इसके लिए ही आपको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है? छिपकर वार करके आपने युद्ध की मर्यादा नहीं भंग की? क्या यही है पुरुषों में उत्तम भगवान राम का काम?

बालि की सारी शिकायतों को सुनने के बाद भगवान राम उसके अंत समय को ध्यान में रखते हुए सिर्फ चंद लाइनों में जवाब देते हैं:

((बालि को भगवान राम का जवाब राधेश्याम रामायण के मुताबिक))

तूने वर ऐसा मांगा था, प्रत्यक्ष ना मारा जाएगा.
सम्मुख लड़ने वाले का बल, तुझमें खिचकर आ जाएगा..
वरदान किसी का नष्ट करें, ऐसा ना स्वाभाव हमारा है.
इसलिए हे दुष्ट! ये बाण आण से मारा है.

अर्थात: हे बालि! तुम्हें ऐसा वरदान पाया है कि तुम्हें कोई भी तुम्हारे सम्मुख लड़कर हरा नहीं पाएगा. जो तुमसे सामने की लड़ाई लड़ेगा उसकी आधी शक्ति खिचकर तुम्हारे पास आ जाएगी. अब मैं किसी का वरदान नष्ट करूं इस तरह का स्वाभाव मेरी नहीं है. मैंने धर्म की रक्षा की, मैने तुम्हें मिलने वरदान की रक्षा की, मैंने जिसने तुम्हें वरदान दिया था उनके वाक्य की रक्षा की और सबकी रक्षा करते हुए मैंने तुम्हारा अंत किया है और इसलिए ही मुझे मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. यानि मैं सभी की मर्यादाओं का ध्यान रखता हूं.

रामचरितम मानस में वर्णित पंक्तियों के मुताबिक बालि भगवान राम से पूछता है:
धरम हेतु अवतरेव गुसाईं. मारेउ मोहि ब्याध की नाई..
मैं बेरी सुग्रीव पियारा. अवगुण कवन नाथ मोहि मारा..

अर्थात: आप तो धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है इसके बाद भी मुझे छिपकर एक शिकारी बहेलिया की तरह प्रहार किया ऐसा क्यों? फिर मेरी तो आपसे कोई शत्रुता सुग्रीव कैसे प्यारा हो गया और मैं आपका शत्रु कैसे हो गया?, मेरा अपराध क्या था कि आपको मेरा वध करने पर विवश होना पड़ा?

जवाब में भगवान राम एक स्त्री का जिक्र करते हैं और कहते हैं कि उस स्त्री के लिए, धर्म की रक्षा के लिए मैंने तुझे मारा है. भगवान राम कहते हैं:
अनुज वधू भगिनी सुत नारी. सुन सठ कन्या सम यह चारी..
इन्हही कु दृष्टि विलोकई जोई. ताहि वधे कछु पाप न होई.
मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना! नारि सिखावन कर सिन काना.
मम भुज बल आश्रित तेहि जानी! मारा चहसि अधम अभिमानी..

अर्थात: बेटी, बहन, बेटे की पत्नी बहू, और छोटे भाई की पत्नी इनको वेद भी एक समान मानते हैं और तूने तू अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को अपने रनिवास में रखता है. उसपर कुदृष्टि रखता है. तू इतना अभिमानी हो चुका था. तुझे मारकर मैंने कोई पाप नहीं किया है बल्कि धर्म की रक्षा की है.

यानि भगवान एक बार फिर से एक स्त्री का संकट हरने के लिए बालि जैसे बीर को मार गिराया और वह भी पूरी मर्यादा में रहकर तो स्त्रियां कैसे ताड़ना का अधिकारी हो गईं.

ऐसे तमाम प्रसंग रामचरितमानस में स्त्रियों की रक्षा करने के दौरान भगवान राम के मिल जाएंगे. खासकर रावण पुत्र मेघनाथ की मौत के बात जब लक्ष्मण, हनुमान मिलकर उसका सिर काटकर ले आते हैं. मेघनाथ के शरीर का अंतिम संस्कार होना था. जब पता चला कि सिर तो है ही नहीं तो सती सुलोचना जो मेघनाथ की पत्नी थी रामादल जाती हैं और भगवान राम से अपने पति का सिर देने को कहती हैं. भगवान राम लक्ष्मण और हनुमान को मेघनाथ का सिर सुलोचना के सुपुर्द करने का आदेश देते हैं. लक्ष्मण और हनुमान ये कहते हुए सिर देने में झुझलाते हैं कि लंकावासी बहुत मायाबी है सिर को धड़ से जोड़ देंगे. भगवान राम ने दोनों को फटकार लगाई और सुलोचना का सम्मान करने को कहा और मेघनाथ के सिर को तत्काल उनके सुपुर्द करने को कहा. मजबूर होकर लक्ष्मण और हनुमान को मेघनाथ का सिर लाकर सुलोचना को देना पड़ा.

भगवान राम इसलिए ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं. ये जानते हुए कि सुलोचना शत्रु पक्ष से थी लेकिन सिर्फ सुलोचना के कहे गए शब्दों को ध्यान में रखते हुए भगवान राम ना सिर्फ लक्ष्मण और हनुमान को फटकार लगाई बल्कि सुलोचना को मेघनाथ का सिर बिना कोई सवाल-जवाब किए दिया और उन्हें प्रणाम किया साथ ही मेघनाथ के वध के लिए माफी भी मांगी.

भगवान राम सभी समाज के लोगों को हमेसा अपने साथ लेकर चलें. राजा-रंक सब एक समान थे उनके लिए. सबरी के जूठे बेर खाने वाले राम, सुग्रीव की पत्नी की रक्षा करने वाले राम, मेघनाथ की पत्नी सुलोचना का सम्मान करने वाले राम और राम पर आधारित रामचरितमानस पर समाज के ठेकेदारों को सवाल उठाने का अधिकारी आखिर दे किसने दिया है?

अब राजनितीक मुद्दें पर आते हैं

चौपाई
‘ढोल, गंवार सूद्र और नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’ —-का वास्तविक अर्थ क्या है?

अर्थात: ढोल यानि ढोलक, गंवार यानि अनपढ़, शूद्र यानि निम्न वर्ग के लोग, पशु यानि जानवर, नारी यानि स्त्री, सकल यानि सम्पूर्ण, ताड़ना यानि पहचान करना यानि परखना, अधिकारी मतलब हक़दार” तो इस प्रकार इस पूरे चौपाई का अर्थ यह हुआ कि “ढोलक, अनपढ़, वंचित (शूद्र), जानवर और नारी, यह पांच पूरी तरह से जानने के विषय हैं.”

ढोलक: ढोलक को अगर सही से नहीं बजाया जाय तो उससे कर्कश ध्वनि निकलती है. ढोलक पूरी तरह से जानने या अध्ययन का विषय है.

गवांर: अनपढ़ व्यक्ति आपकी किसी बात का गलत अर्थ निकाल सकता है या आप उसकी किसी बात को ना समझकर अनायास उसका उपहास उड़ा सकते हैं. ऐसे में पहले उसके बारे में जान लेना चाहिए. आपने क्या कहा है अनपढ़ आदमी को हो सकता है दो-तीन बार में वो बात समझ में आए ऐसे में उसे उसके तरीके से उसकी शैली में बात समझानी पड़ती है. कोई काम उसे सौंपा है तो उसपर आपको निगाह रखनी होगी ताकि वो कुछ गलत करे तो आप उसे समझा सकें कि उसे क्या करना है.

शूद्र: शूद्र यानि वंचित व्यक्ति को भी अच्छी तरह जानने परखने के बाद ही उसे कोई काम सौंपे नहीं तो असफलता का डर बना रहता है.

पशु: पशुओं के पास सोचने समझने की क्षमता नहीं होती. कई बार पशु हमें नुकसान पहुंचा देते हैं. पशुओं से सावधान रहने की आवश्यकता होती है और उनपर नजर बनाकर रखनी पड़ती है. उदाहरण के लिए अगर बैल से खेत जुतवाने का काम आप कर रहे हैं तो उन्हें दिशा देने के लिए समय-समय पर इसारा करना पड़ता है, उन्हें अकेले नहीं छोड़ा जाता. उनपर नजर बनाकर रखनी होती है. नजर हटी तो खेत जोतने की बजाय वही बैल पड़ोस वाले खेत में फसल खाते नजर आएंगे और आप केत के मालिक से बैलों की वजह से लड़ते नजर आएंगे.

नारी: कहा जाता है कि एक स्त्री किसी घर को नर्क बना सकती है और स्वर्ग भी. अगर आप अपनी ही पत्नी को नहीं समझते हैं तो उनके साथ आपका जीवन बिताना भी मुश्किल हो जाता है. यहां स्त्री का तात्पर्य माता, बहन, पत्नी, मित्र या किसी भी ऐसी महिला से है जो आपके जीवन से जुड़े हैं. ऐसे में आपसी सूझबूझ काफी आवश्यक होती है.

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