दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच शनिवार से चला आ रहा विवाद काफी बढ़ गया। मंगलवार की सुबह से ही पुलिसवाले अपने पुलिस मुख्यालय के सामने जमा हो गए और प्रदर्शन शुरू कर दिया। हालांकि करीब 11 घंटे की शांतिपूर्वक प्रदर्शन के बाद दिल्ली पुलिस कर्मियों ने अपने धरने प्रदर्शन को खत्म किया। इस धरने की खास बात यह रही कि देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी राज्य के पुलिस प्रमुख के खिलाफ इतनी बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया। यहां तक कि उनके संबोधन के दौरान भी उन्हें पुलिसकर्मियों की हूटिंग का शिकार होना पड़ा।
हम बताते हैं की आखिर यह विवाद है क्या और किसकी गलती की वजह से यह सब शुरू हुआ।
शनिवार 2 नवंबर, 2019 को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में विवाद शुरू हुआ था। यहां दिल्ली पुलिस के कुछ जवान कोर्ट में अपनी ड्यूटी दे रहे थे। मुजरिमों की सुनवाई के दौरान वहां लाई गई पुलिस की गाड़ी थी जिसके पास ही एक वकील ने अपने वाहन को पार्क कर दिया। इसके बाद पुलिस वाले उन्हें समझाने लगे कि यहां से हटा कर अपने वाहन को कहीं दूसरी जगह पार्क करें।
पुलिस वाले और वकील वहां उलझ गए और इसके बाद दोनों पक्ष उग्र हो गए। पुलिस वालों पर आरोप है एक वकील को लॉकअप में बंद कर मारने का वहीं दूसरे पुलिस वाले पर गोली चलाने का। हालांकि पुलिस वाले का कहना है कि उग्र भीड़ को देखते हुए गोली आत्मरक्षा के लिए चलाई गई है। पुलिस का आरोप है कि वकीलों ने उन्हें पीटा है।
विवाद के बाद दिल्ली के सभी वकील सोमवार से हड़ताल पर चले गए। राउज एवेन्यू और पटियाला हाउस में जहां हड़ताल के कारण काम बाधित हुआ वहीं दिल्ली के हाई कोर्ट, तीस हजारी, कड़कड़डूमा और साकेत अदालत में हड़ताल का व्यापक असर दिखा। सारे काम काज बंद हो रहे। सुप्रीम कोर्ट के वकील इंडिया गेट पहुंच कर पुलिस के खिलाफ नारे लगा कर दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई की मांग की।
मंगलवार को इस विवाद में नया मोड़ तब आया जब पुलिस वाले सड़क पर उतर गए। सुबह से ही दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने काफी संख्या में पुलिसकर्मियों का जमावड़ा होने लगा इसके बाद वहां कई हजार पुलिस वाले जमा होकर नारे लगाने लगे। सभी पुलिस कमिश्वर अमूल्य पटनायक को हटाने की मांग करने लगे। विरोध बढ़ता ही जा रहा था। इन लोगों को समझाने के लिए आए आला अधिकारियों को निराशा ही हाथ लगी। पुलिस वाले अपनी मांग पूरी कराने के लिए अड़े हुए थे।
पुलिसकर्मियों की मांगें है कि सभी स्तर के जजों की पुलिस सुरक्षा वापस ली जाए। इसके साथ ही हिंसा में शामिल सभी वकीलों पर आपराधिक मुकदमा चले। हिंसा से प्रभावित सभी पुलिस ऑफिसर्स द्वारा की गई शिकायत पर मुकदमा तत्काल दर्ज किया जाए। इसके साथ ही अदालतों से पूरी तरह से पुलिस सुरक्षा हटाई जाए। ट्रैफिक पुलिस वकीलों से कोई नरमी ना बरते। वकीलों और उनके स्टाफ की दिल्ली के तमाम थानों व पुलिस कार्यालय में एंट्री बंद हो। पुलिस अधिकारी व पुलिसकर्मियों के लिए पुलिस प्रोटेक्शन एक्ट लागू हो। इसके अलावा दिल्ली पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों के लिए संगठन बहाल हो एवं दिल्ली की सरकार को कोई पुलिसकर्मी सहयोग न करे।
दिल्ली हाई कोर्ट ने रविवार को इस विवाद में स्वत: संज्ञान लेकर विशेष सुनवाई की। इसमें मुख्य पीठ ने पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच कर 6 सप्ताह में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। इसके साथ ही जांच पूरी होने तक वकीलों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
सुबह से चल रहा प्रदर्शन शाम होते होते काफी बढ़ गया। पुलिस वालों ने अपने परिजनों को भी इस धरने में शामिल कर लिया। इधर 10 हजार पुलिसवाले अपने मुख्यालय के सामने देर शाम तक जमे रहे। इस कारण विकास मार्ग पर जाम लग गया और आइटीओ की तरफ जाने वाले भयानक जाम से परेशान दिखे। कई लोगों ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि जाम के कारण उनकी ट्रेन छूट गई।
शाम होते ही दिल्ली पुलिस के जवानों ने अपनी मांगों के माने जाने पर धरना खत्म करने का एलान किया। इसके बाद वहां से जाम खुलवाया गया। लोगों ने जाम खुलते ही राहत की सांस ली। इधर पुलिस वालों ने कहा कि हमारें मांगें मान ली गई हैं हम अब धरना सामाप्त कर रहे हैं।
पटनायक के पूरे भाषण के दौरान जबर्दस्त नारेबाजी जारी रही। ‘पुलिस कमिश्नर कैसा हो किरण बेदी जैसा हो’ जैसे नारों के बीच पुलिस कमिश्नर को वापस लौटना पड़ा। जब पुलिस आयुक्त के आने के बाद भी प्रदर्शन खत्म नहीं हुआ तो पुलिसकर्मियों के परिजन भी प्रदर्शन में शामिल हो गए। बता दें 1988 में तीस हजारी कोर्ट में वकीलों और पुलिसकर्मियों के बीच संघर्ष हुआ था। उस समय किरन बेदी दिल्ली पुलिस में डीसीपी थीं। उन्होंने पुलिस वालों का साथ दिया था।
इस विवाद में देशभर के पुलिस एसोसिशएन से दिल्ली पुलिस को साथ मिला। जिस तरह से यह विवाद बढ़ता जा रहा था उसी तरह देश के विभिन्न राज्यों से पुलिस एसोसिशएन का समर्थन दिल्ली पुलिस को मिलने लगा।