Contest between NDA and Mahagathbandhan

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर व गोवा के चुनाव परिणाम क्या बिहार की राजनीति पर असर डालेंगे?

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के चुनाव परिणाम आने से पहले एग्जिट पोल के नतीजे सामने आ गए हैं. इनमें अधिकतर एजेंसियां पंजाब छोड़ शेष चार राज्यों में भाजपा की सत्ता वापसी दिखा रही है. विशेषकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मणिपुर के बारे में एग्जिट पोल में भाजपा (एनडीए) की जीत को लेकर तो कोई संशय ही नहीं. यूपी में तो कई एजेंसियां भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए की लहर बता रही हैं. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि क्या इन चुनाव परिणामों का असर बिहार की राजनीति पर भी असर डाल सकते हैं? ऐसी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि इन राज्यों के चुनाव प्रक्रिया के दौरान बिहार की राजनीति में भी काफी कुछ हलचल हुई है.

तारापुर व कुशेश्वर स्थान विधान सभा उपचुनाव में अकेले-अकेले लड़ने के साथ ही विधान परिषद चुनाव में राजद व कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. इसी तरह एनडीए की अंदरुनी राजनीति भी गर्म है. दरअसल, बिहार में भाजपा के साथ सरकार का नेतृत्व कर रहा जदयू यूपी में स्वयं भी 26 सीटों पर मैदान में है. इसके साथ ही भाजपा के सहयोग से बिहार में मंत्री मुकेश सहनी भी यूपी में 55 सीटों पर चुनाव मैदान में हैं. इसी चुनाव प्रक्रिया के दौरान एक चर्चा यह भी हुई कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देश में तीसरा मोर्चा में लाने की कवायद की जा रही है और इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है.

राजनीति के जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार को लेकर चल रही चर्चा में सबसे खास बात यह कि राष्ट्रपति पद को लेकर चर्चा को जब नीतीश कुमार ने नकारा भी तो उनका अंदाज यही बता रहा है कि अगर उनके एंगल से कुछ सकारात्मक हुआ (यानी भाजपा को कम से कम यूपी चुनाव में हार मिली) वह इस चर्चा को आगे बढ़ा भी सकते हैं. दरअसल, यह चर्चा बीते विधान सभा उपचुनाव से ही शुरू हो गई थी जब सीएम नीतीश ने चुनावी सभा में यह कह दिया था कि यह उनका आखिरी चुनावी सभा है. इसके बाद तो प्रधानमंत्री पद से लेकर राष्ट्रपति पद तक के लिए नीतीश कुमार का नाम बार-बार सामने आने लगा.

पीएम मोदी ने की सीएम नीतीश की तारीफ
भाजपा-जदयू नेताओं के बीच बयानबाजियों का तल्ख सिलसिला और जातिगत जनगणना को लेक तेजस्वी यादव व नीतीश कुमार की मुलाकात व एक मंच पर आने के बाद इस चर्चा को और हवा मिली. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में ही एक इंटरव्यू में डॉ. राम मनोहर लोहिया और जार्ज फर्नाडीज की श्रेणी में रखते हुए नीतीश कुमार को सच्चा समाजवादी बता ने के बाद यह भी लगा कि एनडीए में कहीं कोई परेशानी नहीं है क्योंकि शीर्ष नेतृत्व में एक दूसरे के प्रति सम्मान है. पीएम मोदी के बयान के बाद बिहार भाजपा व जदयू के बीच बयानबाजियां भी थम गईं. पर इसी दौरान एक और राजनीतिक हलचल हुई.

पीके-नीतीश मुलाकात से बढ़ी सियासी हलचल
विभिन्न दलों के लिए चुनाव की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार से मुलाकात की. चर्चा छिड़ गई कि कुछ तो है जो भीतर ही भीतर हो रहा है. बता दें कि वर्ष 2015 में जदयू-राजद की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाले प्रशांत किशोर को जदयू ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से हटाते हुए पार्टी से निकाल दिया था. बाद में नीतीश कुमार के रिश्ते अच्छे नहीं रहे थे. लेकिन, कहा जा रहा है कि पीके और नीतीश की इस मीटिंग की पहल सीएम नीतीश ने ही की थी. नीतीश ने ही प्रशांत किशोर को बुलवाया था और स्वयं उन्होंने ही मुलाकात की खबर बताई.

नीतीश के नाम पर विपक्षी-सहयोगी एक हुए
हालांकि, बाद में पीके-नीतीश मीटिंग को राष्ट्रपति पद के चुनाव से जोड़ने की बात को शिगूफा बताया गया. मुलाकात के कारण इसलिए भी तलाशे जाने लगे क्योंकि तेजस्वी यादव ने इससे पहले तेलंगाना के सीएम केसी राव से मुलाकात की थी. इसके बाद उन्होंने तमिलनाडु के सीएम स्टालिन से भी मीटिंग की थी. शरद पवार व उद्धव ठाकरे से भी मीटिंग की चर्चा होती रही. इस बीच नीतीश को राष्ट्रपति बनाए जाने की मांग को राजद और कांग्रेस ने बिहार के लिए गौरव बता दिया. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी सपोर्ट किया. इसके बाद जदयू महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद नीतीश कुमार दूसरे ऐसे नाम होंगे. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि हमारे संबंध एनडीए से बेहतर हैं, इसलिए एनडीए से बाहर नहीं जाएंगे.

बिहार सीएम की कुर्सी और तेजस्वी के बीच कौन?
बहरहाल, सियासी जानकार बताते हैं कि कोई भी सियासी चर्चा तभी होती है जब कहीं न कहीं आग लगी हो. दरअसल, समर्थकों की निगाहें पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के परिणामों पर हैं. विशेषकर अगर यूपी चुनाव के नतीजे (एग्जिट पोल के अनुसार) भाजपा के पक्ष में रहे तो एनडीए में हलचल की संभावना नगण्य है. लेकिन, भाजपा के लिए परिणाम सकारात्मक नहीं रहे और सत्ता में वापसी नहीं हुई तो विपक्ष मजबूत स्थिति में होगा. अगर बिहार में नीतीश की राह एनडीए से अलग होने की थोड़ी भी संभावना हुई तो विपक्ष इस मौके को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा. सियासी जानकार बताते हैं कि तेजस्वी यादव और सीएम की कुर्सी के बीच की सबसे बड़ी अड़चन भी तो सीएम नीतीश ही हैं.

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