नीतीश कुमार हुए सियासी ‘सफोकेशन’ के शिकार, डबल ‘L’ के बीच में फंसने से पॉलिटिकल प्लानिंग हुई चौपट, जानें

चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय। दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय। कबीर की ये पंक्तियां बहुत मार्मिक है। इसका अर्थ ये है कि चक्की दो पाटों की होती है। उसमें अन्न के दाने पिसते हैं। यह संसार एक विशाल चक्की है जो निरंतर चलते रहती है। इसी प्रकार इस मृत्युलोक के भी दो पाट है। नीचे का पाट पृथ्वी और ऊपर का पाट आकाश है। तमाम प्राणी इन दो पाट के बीच फंसे हुए हैं। बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इन दिनों दो पाट के बीच में फंसे हुए हैं। पहले से ही अटकलें लग रही थीं कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन से नाराज चल रहे हैं। महागठबंध सरकार चलाने में लालू यादव का दबाव भी वे महसूस कर रहे हैं। नीताश कुमार के लिए यह ‘सफोकेशन’ की स्थिति है। जेडीयू के भीतर भारी घमासान मचा है।

रणवीर नंदन ने समझाया डबल ‘L’ का मायने

हाल ही में जेडीयू से इस्तीफा देने वाले रणवीर नंदन ने इसी तरह की बात कह कर अटकलों को हवा दे दी है। बकौल रणवीर नंदन- नीतीश कुमार दो ‘L’ के बीच फंस गये हैं। दो ‘L’ के बीच फंस कर नीतीश कुमार ‘सफोकेशन’ फील कर रहे हैं। उन्होंने दो ‘L’ मायने भी बताये। पहला ‘L’ डीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह हैं और दूसरा ‘L’ लालू प्रसाद यादव हैं। दो ‘L’ के बीच ‘N’ यानी नीतीश उलझ कर ‘सफोकेशन’ फील कर रहे हैं। उनके पास इससे निकलने की राह नहीं दिखाई दे रही है।

भाजपा ज्वाइन करने की तारीख भी बता दी

रणवीर नंदन ने जिस दिन जेडीयू से इस्तीफा दिया था, उसी दिन से अनुमान लग गया था कि बीजेपी के साथ उनकी बात बन गई है। शनिवार को उन्होंने खुद इससे पर्दा उठा दिया। उन्होंने कहा कि वे बीजेपी ज्वाइन करेंगे। कब करेंगे, यह भी उन्होंने बता दिया। उन्होंने कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के मौके पर वे भाजपा का झंडा औपचारिक रूप थाम लेंगे। उन्होंने दावा किया कि बिहार में अगली सरकार एनडीए की ही बनेगी। लोकसभा की सभी सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार जीतेंगे।

दोहरे दबाव से परेशान हो गए हैं नीतीश

रणवीर नंदन ने पार्टी छोड़ने के बाद ये बातें भले कही हों, लेकिन इसकी भनक लोगों को पहले से ही लग चुकी थी। हालांकि नीतीश के दो पाट के बीच फंसे होने की बात बिहार के किसी नेता ने पहली बार कही है। हाल के दिनों में जेडीयू और आरजेडी के भीतर कई ऐसी स्थिति आई हैं, जिनसे यह संकेत मिल रहा था कि नीतीश की परेशानी बढ़ गई है। हालात ऐसे ही रहे तो परेशानी विकराल रूप धारण कर सकती है। जेडीयू के भीतर विवाद छिड़ा है तो आरजेडी से भी अब नीतीश असहज महसूस करने लगे हैं।

ललन- अशोक विवाद से परेशान हैं नीतीश

हफ्ते भर के अंदर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और जेडीयू कोटे की मंत्री अशोक चौधरी के बीच तल्खी की दो घटनाएं हुई हैं। पहली घटना तो जेडीयू दफ्तर में ही नीतीश की मौजूदगी में हुई। ललन सिंह ने आदेश के लहजे में अशोक चौधरी को कहा कि वे बरबीघा की राजनीति से दूर रहें। उन्हें उसी अंदाज में अशोक चौधरी ने भी जवाब दिया था कि आप कौन होते हैं किसी के कहीं आने-जाने पर रोक लगाने वाले। इस तनातनी के दौरान नीतीश कुमार की चुप्पी के दो ही संकेत निकलते हैं। पहला यह कि ललन सिंह के बारे में नीतीश को कोई भनक लग चुकी है और वे उनकी फजीहत करा कर पार्टी से बाहर जाने को मजबूर करना चाहते हों। दूसरी बात यह हो सकती है कि नीतीश लाचार हो गए हैं। पार्टी पर अब उनका कई कंट्रोल नहीं रह गया। उसके अगले दिन नीतीश अशोक चौधरी के साथ दिखते भी हैं।

ठाकुर प्रकरण पर ललन का अलग स्टैंड

आरजेडी सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में ठाकुरों को केंद्र कर जो कविता पढ़ा, उसे लेकर बिहार में बवाल मचा हुआ है। जेडीयू में सबसे पहले एमएलसी संजय सिंह ने इसका प्रतिकार किया। बाद में नीतीश के बेहद करीबी मंत्री संजय झा ने भी ऐसी कविता पढ़ने से बचने की मनोज झा को सलाह दी, जिससे जातिगत विद्वेष की बू आती हो। इन सबसे अलग ललन सिंह का बयान था कि मनोज झा ने कोई गलत बात नहीं कही है। यानी यह स्पष्ट हो गया कि जेडीयू इस मुद्दे पर दो फाड़ है। यह तो सिर्फ बाहरी पक्ष है। अंदर की बात यह है कि नीतीश की शह पर ही संजय सिंह और संजय झा ने मनोज झा की आलोचना की।

ललन की RJD के प्रति उदारता से संदेह

बिहार के सियासी गलियारे में यह बात चर्चा में है कि आरजेडी नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी से बेदखल करने की साजिश रच चुका है। आरजेडी ने ललन सिंह को प्रलोभन देकर पटा लिया है। इसीलिए आरजेडी की हर बात का ललन सिंह समर्थन करने लगे हैं। अपनी पार्टी के अंदर विद्वेष फैलाना चाहते हैं । अशोक चौधरी से उलझना या संजय सिंह और संजय झा के उलट बयान देना इसी रणनीति का हिस्सा है। उधर, सियासी जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार खुद ललन सिंह से आजिज आ चुके हैं। वरना जिस दिन अशोक चौधरी और ललन सिंह में तल्खी हुई, उसके दूसरे दिन अशोक चौधरी के मंत्रालय का कामकाज देखने वे नहीं जाते। नीतीश कुमार दूसरे दिन अशोक चौधरी के साथ दिखे। इसलिए मतलब समझना होगा कि अशोक चौधरी किसी भी दबाव में आने वाले नहीं हैं।

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