मथुरा, वृंदावन में होली के उत्सव की शुरुआत बसंत पंचमी से ही हो जाती है। बरसाने में लट्ठ, Laddu और फूलों से भी Holi खेली जाती है। Laddu मार-मारकर होली खेलने की यह परंपरा काफी अनोखी होती है। होली तक यानि पूरे 8 दिनों तक ब्रज, मथुरा, वृंदावन में Holi खेली जाती है। ब्रज में बसंत पंचमी पर होली का डंडा गड़ने के साथ ही ब्रज के सभी मंदिरों और गांव में Holi महोत्सव की शुरुआत हो जाती है। यह 40 दिनों तक चलता है, लेकिन खासतौर से Holi महोत्सव फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी से यानि Laddu फेक Holi से शुरू होता है। होली के त्योहार को गोकुल, वृंदावन और मथुरा में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां रंग वाली होली से पहले Laddu, फूल और छड़ी वाली होली भी मनाई जाती है। ब्रज की Holi में शामिल होने के लिए देश और दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं।
द्वापर युग से हुई शुरुआत
Laddu होली की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है कि द्वापर युग में बरसाने की होली खेलने का निमंत्रण लेकर सखियों को नंदगांव भेजा गया था। राधारानी के पिता बृषभानजी के न्यौते को कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया और स्वीकृति का पत्र एक पुरोहित जिसे पंडा कहते हैं उनके हाथों बरसाना भेजा। बरसाने में बृषभानजी ने नंदगांव से आए पंडे का स्वागत किया और थाल में Laddu खाने को दिया। इस बीच बरसाने की गोपियों ने पंडे को गुलाल लगा दिया। फिर क्या था पंडे ने भी गोपियों को लड्डूओं से मारना शुरु कर दिया। तब लेकर आज तक इसे परंपरागत रूप से Laddu और फूलो की Holi बड़ी उत्साह के साथ मनाई जाती है।