पंकज त्रिपाठी की फिल्म ‘मैं अटल हूं’ शुक्रवार को रिलीज हो रही है. रिलीज से पहले दिल्ली में फिल्म का प्रीमियर बुधवार को था. इसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी अपने परिवार के साथ शामिल हुए. बतौर अभिनेता ये फिल्म उन्हें क्या देगी?
फिल्म के शुरूआती एक-दो मिनट में ही अगर ये संवाद सुनने को मिल जाए कि ‘मैं अटल हूं’ तो काफी हद तक फिल्म की लाइन-लेंथ समझ आ जाती है. अटल भारतीय राजनीति के सबसे लोकप्रिय नेताओं में रहे. उनकी कविताएं, उनकी भाषण शैली, उनका व्यवहार, उनकी मित्रता ‘पब्लिक डोमेन’ में है. यानि उनके जीवन की ज्यादातर घटनाओं से लोग परिचित हैं. ऐसे में अटल बिहारी वाजपेई की शख्सियत के ‘अटल’ पक्ष को फिल्म में फोकस किया गया. फिल्म के प्रचार-प्रसार में कहा भी जा रहा है- कवि जिसने रच दिया इतिहास. ये इतिहास संघ के साथ उनके सफर की शुरूआत से लेकर पोखरण परीक्षण और करगिल की लड़ाई में रचा गया. किस तरह अपने ‘अटल’ इरादों से उन्होंने संघ के कार्यकर्ता से लेकर देश के 10वें प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया. फिल्म को बनाने वाली पूरी यूनिट ने इसी ‘अटल’ पक्ष के इर्द-गिर्द काम किया है. इसीलिए दो घंटे में इतनी बड़ी शख्सियत को समेटा भी जा सका. ये काम आसान नहीं था.
बायोग्राफिकल फिल्मों के साथ सबसे बड़ी चुनौती भी यही होती है. इस चुनौती को अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी स्वीकार करते हैं. प्रीमियर खत्म होने के बाद उन्होंने कहा भी कि अटल के व्यक्तित्व को दो घंटे में समेटना बहुत मुश्किल था. ये समंदर को मुठ्ठी में भरना या गागर में सागर भरने जैसा था. पंकज त्रिपाठी ने मजाक में ये भी कहाकि 6 सीजन की वेबसीरीज बने तो शायद अटल का पूरा किरदार उसमें समाए.
पंकज त्रिपाठी के अभिनय पर जरूर होगी चर्चा
पंकज त्रिपाठी बेहतरीन अभिनेता हैं. लेकिन ये फिल्म उनके लिए अलग है. अलग इस लिहाज से क्योंकि अटल के तमाम भाषण, उनकी कविताएं, उनके बोलने का अंदाज सब कुछ लोगों को याद है. यू-ट्यूब पर भी बहुत सारे वीडियो उपलब्ध हैं. बावजूद इसके अगर प्रीमियर खत्म होने के बाद हॉल में 2-3 तरफ से आवाज आए कि ‘ये रोल आप ही कर सकते थे’ तो पंकज के लिए ये उपलब्धि है. पंकज कहते भी हैं कि उनकी कोशिश अटल की चेतना को पकड़ने की रही. उन्होंने नकल का प्रयास नहीं किया. इसीलिए एक खास अंदाज में गर्दन हिलाना, अपने वाक्यों के साथ हाथों की हरकत या बोलते-बोलते बीच-बीच में आंखें मूंद लेते वक्त भी पंकज त्रिपाठी, पंकज त्रिपाठी ही दिखे अटल बिहारी वाजपेई नहीं. बड़ी बात ये है कि ये फिल्म दर्शकों में उनके अभिनय की स्वीकार्यता या ‘एक्सेप्टिबिलिटी’ को बढ़ाएगी. जिस पंकज त्रिपाठी को स्क्रीन पर गालियां देते या हंसी मजाक करने वाले किरदारों से बड़ी पहचान मिली है उन्हें ऐसे सदय- संजीदा शख्सियत के किरदार में देखना सुखद है. दर्शक उनके इस किरदार को अच्छी तरह ‘पचाएंगे’. पूरी फिल्म में पंकज के चेहरे पर एक स्वाभाविक-सहज मुस्कान है, जो उनके किरदार को जीवंत रखती है. पंकज को कॉमेडी’ में मजा आता है अटल के व्यक्तित्व का ये हिस्सा उनके लिए सहज दिखता है- जब वो अटल का पॉपुलर संवाद बोलते हैं- शादी नहीं की है लेकिन कुंआरा नहीं हूं.
सीधे-छोटे संवादों में हैं कई राजनीतिक संदेश
एक राजनेता पर फिल्म है तो वो राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ ही चलती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की यात्रा को दिखाती है. चीन और पाकिस्तान के हमले, देश में इमरजेंसी, गांधी जी की हत्या, नेहरू का निधन, ऑपरेशन ब्लूस्टार, इंदिरा गांधी की हत्या जैसी राजनीतिक घटनाएं फिल्म का हिस्सा हैं. इन्हीं राजनीतिक घटनाओं के ‘बैकग्राउंड’ में अटल का किरदार आगे बढ़ा है. इमरजेंसी की घटना फिल्म के दूसरे हाफ में है. फिल्म में सीधे-सीधे संवाद में कई राजनीतिक संदेश भी हैं. मसलन- एक जगह अटल कहते हैं सरकार पहले अपनी चिंता करते हैं फिर देश की, जबकि संघ पहले देश की चिंता करता है. कांग्रेस की कार्यशैली, कांग्रेस के इतिहास, वंशवाद, सरकारों के गिरने-गिराने में कांग्रेस की भूमिका को दर्शाना फिल्म को ‘डायरेक्ट पॉलिटिकल’ कहानी भी बनाता है. दूसरा हाफ पूरी तरह पंकज त्रिपाठी का है. दूसरे हाफ में उनके हाव- भाव और ‘मेच्योर’ भी दिखे हैं. किसी एक फिल्म में किसी एक अभिनेता के रोल की लंबाई या स्क्रीन टाइम के लिहाज से देखें तो ये फिल्म पंकज त्रिपाठी के लिए अहम रहने वाली है. क्योंकि वो पूरी फिल्म में दिखते हैं. अटल के बचपन को छोड़ दें तो उनके छात्र जीवन, उनकी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक का सफर पंकज त्रिपाठी ने ही निभाया है. फिल्म में एक और दिग्गज कलाकार पीयूष मिश्रा ने अटल के पिता का रोल निभाया है. लेकिन पीयूष मिश्रा का किरदार फिल्म के पहले हाफ तक ही सीमित है. दयाशंकर पांडे ने भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के किरदार के साथ न्याय किया है. बायोपिक फिल्मों में ‘इंटरेस्ट’ रखते हैं तो आपको फिल्म पसंद आएगी.